मदरसा कार्यक्रम के जरिए मदरसों में तालीम में मदद दे रहा टाटा ट्रस्ट

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 28-01-2024
मदरसा कार्यक्रम के जरिए मदरसों में तालीम में मदद दे रहा टाटा ट्रस्ट
मदरसा कार्यक्रम के जरिए मदरसों में तालीम में मदद दे रहा टाटा ट्रस्ट

 

मंजीत ठाकुर

देश में मुस्लिम समुदाय शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है. सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय होने के बावजूद मानव विकास सूचकांकों के कई मानकों पर मुस्लिमों की स्थिति नाजुक है. 2006 में आई सच्चर कमिटी की रिपोर्ट में भी मुस्लिमों की साक्षरता दर करीबन 60 फीसद बताई गई थी.

रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि मुस्लिमों में 6 से 14 साल की उम्र के बीच के बच्चों में से 25 फीसद से अधिक बच्चों ने न तो कभी किसी स्कूल का मुंह देखा है या अगर उन्होंने दाखिला लिया भी तो पढ़ाई बीच में छोड़ दी.

इस समुदाय के महज 24 फीसद बच्चों ने मैट्रिक (दसवीं) की परीक्षा पूरी की है और यह राष्ट्रीय औसत 42.5 फीसद से काफी नीचे हैं. हर पचीस बच्चों में से एक ने ही ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की है और 50 में से एक बच्चे ने पोस्ट-ग्रेजुएशन किया है.

रोजगार के मसले पर देखा जाए तो इस रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर मुस्लिम बच्चे या तो स्वरोजगार में लगे हैं या फिर उनका कामकाज असंगठित क्षेत्र से जुड़ा है.

ऐसी परिस्थिति में बदलाव लाने के लिए टाटा ट्रस्ट ने अपना एक मदरसा कार्यक्रम चलाया है जिसमें ऐसी शैक्षिक संस्थाओं के साथ काम किया जाता है जो ऐसे इलाकों में काम करते हैं जहां मुस्लिम आबादी अधिक है.

इस जुड़ाव का मकसद अध्यापन की गुणवत्ता में सुधार करने के साथ ही शिक्षा की प्रक्रिया को बेहतर बनाने का है. इसमें एक्टिविटी आधारित रवैए को पाठ्यक्रम में शामिल करने में सहायता दी जाती है.

इसका उद्देश्य मदरसों में बच्चों को पढ़ाई जाने वाली गणित, विज्ञान और भाषाओं में सीखने की प्रक्रियाओं को समृद्ध करना है.

इस दिशा में टाटा ट्रस्ट ने कुछ कदम उठाए हैं. जिसके तहत, मदरसा शिक्षकों को शिक्षण और सीखने की आधुनिक अवधारणाओं में प्रशिक्षण देना है. इनमें बाल-केंद्रित शिक्षण पद्धतियां जो सहभागी, संवादात्मक और रचनात्मक शिक्षा की भावना पर आधारित हैं.

ट्रस्ट के सहयोगियों और शिक्षाविदों द्वारा प्रशिक्षित मदरसा शिक्षकों को मदरसों में नियुक्त किया जाता है, ताकि वे दूसरे मदरसा शिक्षकों को अध्यापन की तकनीक तथा पाठ्य सामग्री तैयार करने में मददगार साबित हो सकें. ट्रस्ट मदरसा शिक्षकों के साथ नियमित जुड़ाव के साथ काम करता है.

ट्रस्ट पढ़ाई में अंतरों को पाटने क लिए शिक्षा शिविर भी आयोजित करता है. इसके साथ ही विज्ञान और गणित की ओर बच्चों को आकर्षित करने के लिए एक बेहतर वातावरण भी तैयार करने की कोशिश की जाती है. इन शिविरों में बच्चों को सुनने, पढ़ने और लिखने जैसे कौशल के विकास में मदद मिलती है.

टाटा ट्रस्ट के कुछ साझीदार संगठन भी इस काम में मदद करते हैं. इन संगठनों का काम कक्षाओं के अनुरूप वर्कबुक और भाषा सिखाने वाली सामग्री मसलन फ्लैश कार्ड तैयार करके उपलब्ध कराना है.

ट्रस्ट ने मदरसों में शिक्षा में प्रौद्योगिकी के लिए एकीकृत दृष्टिकोण (आईटीई) और दीनी और दुनियावी (आईडीडी) को एकीकृत करने जैसे मॉड्यूल भी पेश किए हैं.

आईटीई बच्चों को पाठ्यक्रम-संबंधी परियोजनाओं को शुरू करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना सिखाता है. मदरसों में छात्र अपने वर्तमान ज्ञान को बढ़ाने, बाहरी दुनिया से जुड़ने और ऑनलाइन शिक्षण संसाधनों के उपयोग के माध्यम से पाठ्यपुस्तक सामग्री की अपनी शिक्षा विकसित करने के लिए इंटरनेट का उपयोग करते हैं. इस पहल को छह संगठनों द्वारा अपनाया गया है, और इस वक्त यह 5,000 बच्चों तक पहुंच रहा है.

आईडीडी को पहले पश्चिम बंगाल के चार मदरसों में संचालित किया गया और उसके बाद से इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार के किशनगंज और मुंबई के एक हिस्से तक विस्तारित किया गया है.

इस पहल का उद्देश्य विज्ञान, गणित और सामाजिक विज्ञान को इस्लाम के दीनी तालीम से जोड़ना है ताकि बच्चे देख सकें कि इस्लाम की शिक्षाएँ विज्ञान की दुनिया से अलग नहीं हैं.

इस पहल के हिस्से के रूप में, छात्र विश्व मानचित्र पर भारत और अरब का मानचित्र बनाते हैं, और पैगंबर मोहम्मद के हिजरत पर प्रकाश डालते हैं.

इसी तरह उनके लिए एक परियोजनामुस्लिम वैज्ञानिकों प्रोजेक्ट तैयार करने की,इस्लामी वास्तुकला और इस शैली को प्रतिबिंबित करने वाली ज्यामितीय आकृतियों का अध्ययन; मानव शरीर के जोड़ो पर एक पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन बनाने और इसे नमाज आदि के दौरान विभिन्न मुद्राओं में शामिल जोड़ों से जोड़ने जैसी गतिविधियां शामिल हैं.

यह गतिविधियां विज्ञान, गणित और भूगोल को इस्लामी जीवन शैली के साथ एकीकृत करने के लिए एक शैक्षणिक ढांचा प्रदान करती हैं. मदरसा शिक्षकों को पाठ योजनाओं के माध्यम से ये संबंध बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.

ट्रस्ट ने एक कैस्केड दृष्टिकोण अपनाया है जहां कुछ 'मॉडल' मदरसे अपने आस-पास के क्षेत्रों में मदरसों के एक समूह को संभालते हैं. अब तक, ट्रस्ट लगभग 400 मदरसों के साथ काम करता है, जिनमें से 75 मॉडल मदरसे हैं.

सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों को कवर करने के लिए इन क्षेत्रों में मदरसा बोर्डों के साथ जुड़ने पर ध्यान केंद्रित किया गया है. नालंदा जैसे संसाधन भागीदार प्रशिक्षण और संसाधन मैनुअल विकसित करके ट्रस्ट की पहल को लागू करने में मदद करते हैं जो मदरसों को इन शिक्षण संस्थानों में प्रणालीगत सुधार के लिए माता-पिता, स्थानीय अधिकारियों और मदरसा बोर्डों को शामिल करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.

मदरसों में शिक्षा प्रक्रियाओं को आधुनिक बनाने के लिए नीति और कानून को प्रभावित करने के लिए ट्रस्ट अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और राज्य शिक्षा बोर्ड जैसे सरकारी निकायों के साथ मिलकर काम करता है.