केरलः एकेडमी ऑफ शरिया में छात्र पढ़ रहे उपनिषद और पुराण

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 13-11-2022
केरलः एकेडमी ऑफ शरिया में छात्र पढ़ रहे उपनिषद और पुराण
केरलः एकेडमी ऑफ शरिया में छात्र पढ़ रहे उपनिषद और पुराण

 

त्रिशूर.
 
मध्य केरल के त्रिशूर जिले में एक इस्लामी संस्थान में लंबे सफेद चोगा और सफेद पगड़ी वाली पोशाक में छात्र अपने हिंदू गुरुओं की चौकस निगाहों के बीच संस्कृत में ‘श्लोक’ और ‘मंत्र’ का उच्चारण करते दिखाई पड़ते हैं. इससे इस मुस्लिम शैक्षिक संगठन में कुछ अलग समां दिखता है. 

‘गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरः, गुरुर साक्षात परम ब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः,’ कुछ इस तरह अपने प्रोफेसर के साथ छात्र संस्कृत श्लोकों का उच्चारण करते दिखाई पड़ते हैं. जब एक छात्र अन्य श्लोक सुनाता है, तो संस्कृत प्रोफेसर ‘उत्तमम’ कहता है. कक्षा में छात्र और प्रोफेसर के बीच होने वाली सभी बातचीत संस्कृत में होती है.
 
मलिक दीनार इस्लामिक कॉम्प्लेक्स (एमआईसी) द्वारा संचालित एकेडमी ऑफ शरिया एंड एडवांस्ड स्टडीज (एएसएएस) के प्राचार्य ओनाम्पिल्ली मुहम्मद फैजी ने कहा कि संस्कृत, उपनिषद, पुराण आदि पढ़ाने का उद्देश्य छात्रों में अन्य धर्मों के बारे में ज्ञान और जागरूकता पैदा करना है.
 
एमआईसी एएसएएस में छात्रों को संस्कृत पढ़ाने का एक और कारण फैजी की अपनी शैक्षणिक पृष्ठभूमि थी, क्योंकि उन्होंने शंकर दर्शन का अध्ययन किया था. उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, मुझे लगा कि छात्रों को अन्य धर्मों और उनके रीति-रिवाजों और प्रथाओं के बारे में जानना चाहिए. लेकिन संस्कृत के साथ-साथ उपनिषद, शास्त्र, वेदांतम का गहन अध्ययन आठ साल की अध्ययन अवधि के दौरान संभव नहीं होगा.’’
 
फैजी ने कहा, ‘‘इसके बजाय, विचार इनके बारे में बुनियादी ज्ञान प्रदान करना और उनमें दूसरे धर्म के बारे में जागरूकता पैदा करना है.’’ उन्होंने कहा कि भगवद गीता, उपनिषद, महाभारत, रामायण के महत्वपूर्ण अंश छात्रों को कक्षा 10 पास करने के बाद आठ साल की अवधि में चुनिंदा संस्कृत में पढ़ाए जाते हैं.
 
इन ग्रंथों का चयनात्मक शिक्षण इसलिए है, क्योंकि संस्था मुख्य रूप से एक शरिया कॉलेज है, जहां उर्दू और अंग्रेजी जैसी अन्य भाषाओं को कला में डिग्री पाठ्यक्रम के अलावा भी पढ़ाया जाता है, क्योंकि यह कालीकट विश्वविद्यालय से संबद्ध है. उन्होंने कहा, “अकादमिक कार्यभार बहुत बड़ा है. इसलिए, हम ऐसे छात्रों को लेते हैं, जो इसे संभाल सकते हैं और सख्त मानक भी बनाए रखते हैं. छात्रों को प्रवेश देने के लिए एक प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है.”
 
कुछ छात्रों ने हाल ही में मीडिया को बताया कि शुरू में अरबी की तरह ही संस्कृत सीखना कठिन था, लेकिन लगातार अध्ययन और अभ्यास करने से यह समय के साथ आसान हो जाता है. एक छात्र ने बताया, ‘‘यह शुरू में एक कठिन काम है, बिल्कुल अरबी की तरह.
 
लेकिन अगर हम इसका लगातार अध्ययन करें, बार-बार इसका अभ्यास करें, जैसे अरबी के साथ किया, तो यह समय के साथ आसान हो जाता है. नियमित कक्षाएं और परीक्षण भी हमें इसे सीखने में मदद करते हैं.’’ एक अन्य छात्र ने कहा कि वह संस्कृत सीखने और ‘श्लोक’ सुनने के लिए उत्साहित रहते हैं.
 
अपने सहपाठी की तरह, उनका भी विचार था कि अरबी की तरह, ‘यदि आप प्रयास करते हैं, तो सीखना आसान हो जाता है.’
 
जबकि छात्रों के माता-पिता या किसी और की ओर से कोई आपत्ति नहीं हुई है, एक बड़ी चुनौती छात्रों को संस्कृत, भगवद गीता, उपनिषद आदि को ठीक से पढ़ाने के लिए अच्छे संकाय की तलाश रही है.
 
प्रिंसिपल फैजी ने कहा, ‘‘यही कारण है कि हम सिर्फ सात साल पहले ही संस्कृत पढ़ाना शुरू करने में सक्षम हो पाए और यह भी कारण है कि यह केवल इस शाखा में पढ़ाया जा रहा है - सात में से एक.’’ उन्होंने कहा कि हमारे यहां एक उत्कृष्ट फैकल्टी है, जिन्होंने छात्रों के लिए एक अच्छा पाठ्यक्रम तैयार किया है.
 
प्राचार्य ने कहा कि छात्रों की ओर से भी प्रतिक्रिया उत्साहजनक रही है, क्योंकि उन्होंने संस्कृत सीखने में रुचि दिखाई है. संकाय में से एक, प्रोफेसर केके यतींद्रन ने मीडिया को बताया कि जब उन्हें वहां पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया गया था, फैजी ‘‘इस बात से चिंतित थे कि क्या मुझे एक अरबी संस्थान में पढ़ाने के बारे में आपत्ति होगी क्योंकि मैं एक हिंदू था.’’ ‘‘मैंने कहा कि यहां कोई हिंदू या मुस्लिम मुद्दा नहीं है. मैं वहाँ पढ़ाने के लिए तैयार होकर आ रहा हूँ. इसलिए मुझे इस तरह की कोई आपत्ति नहीं है.’’ 
 
उन्होंने यह भी कहा कि जब लोग उन्हें माथे पर चंदन का तिलक लगाए संस्थान की ओर जाते देखते हैं, तो पूछते हैं कि मैं वहां क्यों जा रहा हूं. यतींद्रन के अनुसार, ‘‘मैं उन्हें बताता हूं कि मैं वहां संस्कृत पढ़ाने जा रहा हूं और वे कहते हैं कि यह एक अच्छा काम है जो मैं कर रहा हूं.’’
 
फैजी ने भी कहा कि उन्होंने किसी भी तरफ से कोई नकारात्मक या हतोत्साहित करने वाली टिप्पणी नहीं सुनी है. उन्होंने कहा, ‘‘जिस किसी ने भी इसके बारे में सुना, उसने केवल इसकी प्रशंसा की और हमें प्रोत्साहित किया.’’
 
एमआईसी एएसएएस में संस्कृत पढ़ाने वाले डॉ. रमेश ने कहा कि वहां के छात्रों ने वहां आने से पहले कभी संस्कृत के बारे में नहीं सुना. उनके अनुसार, ‘‘उन्होंने इसे स्कूल में भी नहीं सीखा है. लेकिन जैसे-जैसे हम एक चरण से दूसरे चरण में जाते हैं, छात्र संस्कृत में थोड़ा-बहुत बोल पाते हैं, ‘पद्म’ सीखते हैं और कुछ ‘श्लोक’ भी समझने में सक्षम हो जाते हैं.’’