मोहम्मद अकरम/ नई दिल्ली
आज 15 अगस्त को जब पूरा देश 77 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. ऐसे में देश के स्वतंत्रता आंदोलन में जामिया मिल्लिया इस्लामिया से जुड़े लोगों की भूमिका समझनी हो तो आपको अभी यहां आना चाहिए. इस विषय पर जामिया में दस दिवसीय प्रदर्शनी लगी है.
जब भी देश की आजादी से संबंधित कोई किताब या लेख लिखा जाएगा तो इसमें जामिया मिल्लिया इस्लामिया से जुड़े स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका का जिक्र जरूर आएगा. इस प्रदर्शनी में कई ऐसे लोगों के बारे में गूढ़ जानकारी दी गई है जो देश की आजादी के लिए हमेशा आगे रहे. यही नहीं जामिया मिल्लिया इस्लामिया से जुड़े कई ऐसे शख्स भी हैं जिन्हें अंग्रेजों की जुल्म का शिकार होना पड़ा.
जामिया की स्थापना असहयोग और खिलाफत आंदोलन के दौरान 29 अक्टूबर 1920 को अलीगढ़ में एक संस्थान के रूप में की गई थी, जिसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अहम भूमिका थी. बाद में जामिया को साल 1925 में अलीगढ़ से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया.
जामिया के पहले बैच के छात्र ने लिया स्वतंत्रता आंदालन में हिस्सा
जामिया के प्रेमचंद आर्काइव एंड लिट्रेसी सेंटर की निदेशिका सबीहा अंजुम जैदी शफिकुर्रहमान किदवई के हवाले से बताती हैं कि वह जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पहले बैच के छात्र थे. जब देश के अंदर स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था उस समय शफिकुर्रहमान किदवई महात्मा गांधी को आंध्र प्रदेश के एक रेलवे स्टेशन पर छोड़ कर वापस जा रहे थे तो उन्हें अंग्रेज पुलिस ने पकड़ कर जेल में डाल दिया था.
उन्हें जेल के जिस सेल में रखा गया था वहां पहले से सर राज गोपाल आचार्य कैद थे. राज गोपाल ने अपनी डायरी में शफिकुर्रहमान किदवई के बारे में तारीफ लिखी है.
हकीम अजमल खान का अंग्रेजों से मुकाबला
सबीहा अंजुम जैदी हकीम अजमल खान के बारे में बताती हैं कि वह जामिया के फाउंडर और पहले चांसलर, स्वतंत्रता सेनानी थे. जब अंग्रेज अपनी अंग्रेजी दवाईयां यहां (हिन्दुस्तान में) फैला रहे थे तो तो उन्होंने आयुर्वेद और यूनानी का एक संस्था स्थापित किया.
इसे आज तिब्बया कालेज से जाना जाता है. उन्होंने आयुर्वेद और यूनानी मेडिसिन को आम किया. अपने घर दरियागंज में एक हिन्दुस्तानी दवा नाम से दुकान खोली ताकि इससे गरीबों का मुफ्त इलाज किया जा सके.
जामिया जब बना तब पैसे नहीं थे. हकीम अजमल खान जैसे लोग थे, जिन्हांेने अपनी जेब से पैसे लगाए. तालीम में उनका ये योगदान हमेशा याद रखा जाएगा.
गुलाम मुल्क में वापस नहीं जाना चाहता
वह मौलाना मोहम्मद अली जौहर के हवाले से जामिया और स्वतंत्रता पर कहती हैं कि मौलाना मोहम्मद अली जौहर जामिया मिल्लिया इस्लामिया के वाइस चांसलर थे. वह हिन्दुस्तान की आजादी के लिए लड़ते रहे. 1931 में गांधी जी के साथ लंदन में प्रोग्राम में शामिल हुए. उन्होंने कहा कि मैं एक गुलाम मुल्क में वापस नहीं जाना चाहता. इससे बेहतर है कि आप मुझे किसी आजाद मुल्क में मरने के लिए जगह दे दीजिए.
जामिया के रजिस्ट्रार तकद्दुस हुसैन शेरवानी को अंग्रेजों ने जेल में बंद कर दिया था.
जामिया के प्रेमचंद आर्काइव एंड लिट्रेसी सेंटर की निदेशिका सबीहा अंजुम जैदी
वाइस चांसलर ने देश के लिए लंदन छोड़ा
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के फाउंडर रहे डॉ एम ए अंसारी जो बाद में वाइस चांसलर बने, वह जब लंदन में पढाई कर रहे थे,े उस वक्त उनकी दिलचस्पी आजादी में थी. वहां (लंदन) उनका प्रोफेशन बहुत अच्छा चल रहा था. वह इकलौते शख्स थे जहां उनके नाम पर किसी हॉस्पिटल में एक वार्ड खोला गया है. एम ए अंसारी उन सब को छोड़ कर हिन्दुस्तानी की लड़ाई में शामिल हो गए. गांधी जी के साथ हर कदम पर साथ रहे.
मौलाना महमूद हसन ने जेल में गुजारे कई साल
मौलाना महमूद हसन ने रेशमी रुमाल तहरीक चलाया था. वह जामिया मिल्लिया इस्लामिया के संस्थापकों में एक थे. उन्हांेने अलीगढ़ में जामिया की नींव रखी थी. वह महान स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका आंदोलन, जिसे द सिल्क लेटर मूवमेंट या तहरीक-ए-रेशमी रुमाल कहा जाता है, अगर सफल होता, तो भारत को 1947 में आजादी मिलने से बहुत पहले आजादी मिल जाती. उन्हांेने 1917 से 1920 तक माल्टा में कारावास में गुजारा.
सबीहा अंजुम जैदी बताती हैं कि देश जब पूरी तरह से आजाद हो गया उसके बाद से जामिया मिल्लिया इस्लामिया हमेशा देशभक्त जवानों को पैदा करता रहा. देश के विकास में इसके छात्रों ने महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं. जामिया के बच्चे पूरी दुनिया में फैले हुए हैं जो तालीम की शमा रोशन किए हुए हैं.