दिल्ली सरकार का निजी स्कूलों की फीस नियंत्रित करने के लिए नया कानून

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 12-12-2025
Delhi government's new law to control fees of private schools
Delhi government's new law to control fees of private schools

 

नई दिल्ली

दिल्ली सरकार ने दिल्ली स्कूल एजुकेशन (फीस निर्धारण और पारदर्शिता में नियमन) अधिनियम, 2025 को अधिसूचित कर दिया है, जो निजी स्कूलों की फीस को नियंत्रित करने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक नया ढांचा लागू करता है।

इस अधिनियम को विधानसभा में पारित किए जाने के चार महीने बाद, उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना की मंजूरी के बाद बुधवार को अधिसूचित किया गया। अधिनियम में फीस के अनुमत शीर्षक, लेखांकन प्रथाएँ और अतिरिक्त शुल्क पर प्रतिबंध जैसी विस्तृत व्यवस्थाएँ शामिल हैं। इसके तहत कैपिटेशन फीस और कानून के तहत अनुमोदित राशि से अधिक किसी भी शुल्क की वसूली पूरी तरह से निषिद्ध है।

अधिनियम के अनुसार, सभी निजी अनुदान रहित मान्यता प्राप्त स्कूलों को केवल निश्चित श्रेणियों के तहत सूचीबद्ध शुल्क लेने की अनुमति होगी, जैसे कि पंजीकरण शुल्क, प्रवेश शुल्क, ट्यूशन फीस, वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क।

  • पंजीकरण शुल्क अधिकतम 25 रुपये,

  • प्रवेश शुल्क 200 रुपये,

  • कैशन मनी 500 रुपये (ब्याज सहित वापसी योग्य)

  • विकास शुल्क वार्षिक ट्यूशन फीस का अधिकतम 10 प्रतिशत

अधिनियम यह भी सुनिश्चित करता है कि सभी उपयोगकर्ता-आधारित सेवा शुल्क नाफा-नुकसान के बिना ही वसूले जाएँ और उन छात्रों पर लागू न हों जो उस सेवा का उपयोग नहीं करते।

कानून में यह स्पष्ट किया गया है कि अधिनियम में सीधे तौर पर अनुमति न मिलने वाला कोई भी शुल्क अवैध शुल्क माना जाएगा। स्कूलों को पारदर्शी लेखांकन मानकों का पालन करना होगा, स्थायी संपत्ति रजिस्टर बनाए रखने होंगे और कर्मचारियों के लाभों के लिए उचित प्रावधान सुनिश्चित करना होगा। किसी भी छात्र-से वसूले गए कोष को किसी अन्य कानूनी इकाई जैसे कि स्कूल के प्रबंधन ट्रस्ट या सोसाइटी में स्थानांतरित करना प्रतिबंधित है। अधिशेष राशि या तो वापस की जाएगी या भविष्य की फीस में समायोजित की जाएगी।

यह अधिनियम सभी निजी अनुदान रहित स्कूलों पर समान रूप से लागू होगा, जिसमें अल्पसंख्यक संस्थान और गैर-सरकारी भूमि पर बने स्कूल भी शामिल हैं। साथ ही, अधिनियम स्कूलों को यह निर्देश देता है कि बकाया या विलंब शुल्क के कारण छात्रों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई, जैसे परिणाम रोकना, नाम काटना या कक्षा में प्रवेश रोकना, नहीं की जा सकती।

अधिनियम की एक महत्वपूर्ण विशेषता है सालाना स्कूल-स्तरीय फीस विनियमन समिति, जिसे प्रत्येक स्कूल को 15 जुलाई तक गठित करना होगा। समिति में पैरेंट-टीचर एसोसिएशन से लॉटरी के माध्यम से चुने गए पांच माता-पिता शामिल होंगे, जिसमें महिलाओं का अनिवार्य प्रतिनिधित्व और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और सामाजिक-शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व भी होगा। शिक्षा निदेशालय का एक प्रतिनिधि और स्कूल प्रबंधन से अध्यक्ष भी समिति में शामिल होगा।

स्कूलों को 31 जुलाई तक अपनी प्रस्तावित फीस संरचना समिति को सौंपनी होगी। समिति फीस को मंजूरी दे सकती है या घटा सकती है, लेकिन इसे बढ़ा नहीं सकती। एक बार मंजूरी मिलने के बाद, फीस अगले तीन शैक्षणिक वर्षों तक स्थिर रहेगी।

अंतिम फीस संरचना को स्कूल के नोटिस बोर्ड पर हिंदी, अंग्रेज़ी और माध्यम भाषा में प्रदर्शित करना अनिवार्य होगा और जहां लागू हो, स्कूल की वेबसाइट पर भी अपलोड किया जाएगा। समिति यह भी निर्धारित करेगी कि स्कूल किन शीर्षकों के तहत शुल्क ले सकते हैं, ताकि प्रक्रिया में समानता और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।