मुसलमान हज क्यों करते हैं, क्या है इतिहास ?

Story by  फिरदौस खान | Published by  [email protected] | Date 17-05-2024
Why Hajj, what is the history?
Why Hajj, what is the history?

 

-फ़िरदौस ख़ान

हज इस्लाम के पांच सुतूनों में से एक है. इस्लाम के पांच सुतूनों में कलमा, रोज़ा, नमाज़, ज़कात और हज शामिल है. हर मुसलमान का अरमान होता है कि वह हज करे, क्योंकि हज भी अल्लाह तआला की रज़ा हासिल करने का एक ज़रिया है. आज हम बताएंगे कि हज कैसे शुरू हुआ और कुछ अरसे बाद थम भी गया और फिर दोबारा कब शुरू हुआ. 

 हज कब शुरू हुआ

अल्लाह के नबी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने परवरदिगार के हुक्म से अपने प्यारे बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के साथ मिलकर मक्का में पत्थर की एक इमारत तामीर की थी. इसे अल्लाह का घर कहा जाता है. क़ुरआन करीम में इसका ज़िक्र है.

अल्लाह तआला ने फ़रमाया है- “ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब हमने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के लिए ख़ाना-ए-काबा की तामीर की जगह मुहैया कर दी और उनसे कहा कि हमारे साथ किसी चीज़ को शरीक न ठहराना और हमारे घर को तवाफ़ करने वालों और क़याम करने वालों और रुकू करने वालों और सजदे करने वालों के लिए पाक साफ़ रखना.

और लोगों के दरम्यान हज का ऐलान कर दो कि वे तुम्हारे पास पैदल और दुबले ऊंटों पर सवार होकर दूर दराज़ के रास्तों से चले आएं, ताकि वे दुनिया व आख़िरत के फ़ायदे के लिए हाज़िर हों और चन्द मुक़र्रर दिनों के अंदर अल्लाह का नाम लेकर उन चौपायों को ज़िबह करें, जो अल्लाह ने उन्हें अता किए हैं. फिर तुम लोग क़ुर्बानी का गोश्त ख़ुद भी खाओ और बदहाल फ़क़ीरों को भी खिलाओ.

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फिर लोगों को चाहिए कि वे अपनी कशाफ़्त दूर करें और अपनी नज़रें पूरी करें और अल्लाह के क़दीम घर ख़ाना-ए-काबा का तवाफ़ करें. यही हुक्म है. और जो अल्लाह की हुरमत वाली चीज़ों की ताज़ीम करता है, तो यह उसके परवरदिगार के यहां उसके लिए बेहतर है.

और तुम्हारे लिए तमाम चौपाये हलाल कर दिए गये हैं, सिवाय उन जानवरों के जिनकी तफ़सील तुम्हें पढ़कर सुना दी गई है. लिहाज़ा तुम बुतों की निजासत से बचा करो और झूठी बातों से भी परहेज़ किया करो. तुम सिर्फ़ अल्लाह ही के होकर रहो. उसके साथ किसी को शरीक न ठहराओ.

और जो अल्लाह के साथ किसी को शरीक करता है, तो वह ऐसा है जैसे आसमान से गिर पड़े. फिर उसे कोई परिन्दा उचक ले जाए या हवा उसे किसी दूर दराज़ की जगह पर ले जाकर फेंक दे. यही हुक्म है. और जो अल्लाह की निशानियों की ताज़ीम करता है, तो बेशक यह ताज़ीम भी दिलों के तक़वे से ही हासिल होती है.

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तुम्हारे लिए इन क़ुर्बानी के चौपायों में मुक़र्रर मुद्दत तक बहुत से फ़ायदें हैं. फिर उन्हें क़ुर्बानी के लिए क़दीमी घर ख़ाना-ए-काबा तक पहुंचना है. और हमने हर उम्मत के लिए क़ुर्बानी मुक़र्रर कर दी है, ताकि वे उन चौपायों को ज़िबह करते वक़्त अल्लाह का नाम लें, जो अल्लाह ने उन्हें अता किए हैं.

लिहाज़ा तुम्हारा माबूद माबूदे यकता है. फिर तुम उसी के फ़रमाबरदार बन जाओ. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम आजिज़ी करने वालों को जन्नत की खु़शख़बरी सुना दो. ये वे लोग हैं कि जब उनके सामने अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है, तो उनके दिल सहम जाते हैं और जब उन पर कोई मुसीबत आ जाती है, तो सब्र करते हैं. और पाबंदी से नमाज़ पढ़ते हैं और हमने जो कुछ उन्हें अता किया है, उसमें से अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं.

और हमने क़ुर्बानी के ऊंट को भी अल्लाह की निशानियों में से क़रार दिया है. इसमें तुम्हारे लिए ख़ैर है. फिर तुम उन्हें क़तार में खड़ा करके अल्लाह का नाम लो. फिर जब वे ज़िबह होकर पहलू के बल ज़मीन पर गिर जाएं, तो उनके गोश्त में से तुम खु़द भी खाओ और सवाल न करने वाले मोहताजों को भी खिलाओ और सवाल करने वाले मोहताजों को भी खिलाओ.

इसी तरह हमने उन्हें तुम्हारे ताबे कर दिया है, ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो. अल्लाह को न क़ुर्बानी का गोश्त पहुंचता है और न उसका ख़ून. लेकिन अल्लाह की बारगाह में तुम्हारा तक़वा पहुंचता है. अल्लाह ने चौपायों को इसलिए तुम्हारे क़ाबू में किया है, ताकि तुम उन्हें ज़िबह करते वक़्त अल्लाह की तकबीर कहो, जैसे उसने तुम्हें हिदायत दी है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम मोहसिनों को जन्नत की ख़ु़शख़बरी सुना दो.(22: 26-37)

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हज दोबारा कब शुरू हुआ 

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बाद के ज़माने में मक्का के लोगों ने बुतों की पूजा करनी शुरू कर दी. उन लोगों के अपने-अपने बुत थे. काबे में बहुत से बुत रख दिए गये, जिनकी तादाद 360थी. फिर वक़्त ने करवट ली और अल्लाह के आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में काबे से सारे बुत हटा दिए गये और उसे उसकी पहली हालत में लाया गया.

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा के साथ एक सफ़र किया और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत को फिर से क़ायम किया. इसी को हज कहा जाता है. हज पांच दिन में मुकम्मल होता है और इसका आख़िरी अरकान क़ुर्बानी है. क़ुर्बानी का यही दिन ईद उल अज़हा के नाम से जाना जाता है. इसी दिन हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुक्म से अपने बेटे इस्माईल अलैहिस्सलाम को क़ुर्बान किया था. 

हज इंसान को तमाम बुराइयों से बचने की तरग़ीब देता है. क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है- “हज के चन्द महीने हैं यानी शव्वाल, ज़ुलक़ादा और ज़िलहिज्जा. फिर जो इन महीनों में नीयत करके ख़ुद पर हज लाज़िम कर ले, तो वह हज के दिनों में न बेहयाई करे, न कोई और गुनाह करे और न किसी से झगड़ा करे. और तुम जो भी नेकी करोगे, तो अल्लाह उसे ख़ूब जानता है. और तुम आख़िरत के सफ़र का सामान जुटा लो.

और बेशक सबसे बेहतर ज़ाद राह परहेज़गारी है. और ऐ अक़्लमंदो ! हमसे डरते रहो. और तुम पर इस बात में कोई गुनाह नहीं है कि अगर तुम हज के दिनों में तिजारत के ज़रिये अपने परवरदिगार का फ़ज़ल भी तलाश करो. फिर जब तुम अराफ़ात से वापस आओ, मशअरुल हराम के पास अल्लाह का ज़िक्र किया करो और उसका ज़िक्र इस तरह करो जैसे तुम्हें हिदायत दी गई है.

और बेशक इससे पहले तुम गुमराह थे. फिर तुम वहीं से जाकर वापस आया करो, जहां से और लोग वापस आते हैं. और अल्लाह से मग़फ़िरत चाहो और बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है. फिर जब तुम हज के अरकान मुकम्मल कर चुको, तो मिना में अल्लाह का ख़ूब ज़िक्र किया करो जैसे अपने बाप दादाओं का ज़िक्र करते हो या उससे भी ज़्यादा ज़िक्र किया करो.

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फिर लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं, जो कहते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमें दुनिया में ही अता कर दे और ऐसे शख़्स के लिए आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं है. और उनमें से कुछ लोग ऐसे भी हैं कि जो दुआ मांगते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमें दुनिया में भी अच्छाई अता कर और आख़िरत में भी अच्छाई दे और दोज़ख़ के अज़ाब से महफ़ूज़ रख. यही वे लोग हैं, जिनके लिए उनकी नेक कमाई में से हिस्सा है.

और अल्लाह जल्द हिसाब करने वाला है. और गिनती के उन चन्द दिनों में अल्लाह का ख़ूब ज़िक्र किया करो. फिर जो मिना से वापसी में दो ही दिन में चल पड़ा, तो उस पर भी कोई गुनाह नहीं है. और जो तीसरे दिन तक ठहरा, तो उस पर भी कोई गुनाह नहीं है. लेकिन यह हुक्म उसके लिए है, जो परहेज़गार हो. और अल्लाह से डरते रहो और जान लो कि बेशक तुम सबको उसके हुज़ूर में जमा किया जाएगा.(2: 197-203)

रसूल अल्लाह के ज़माने में शुरू हुआ हज आज तक जारी है और क़यामत तक जारी रहेगा. क़ाबिले ग़ौर बात ये भी है कि कोरोना महामारी के दौरान लगी तालाबंदी के वक़्त भी हज की रस्म मुकम्मल की गई, हज को जारी रखा गया.  हज के दौरान इंसान तमाम बुराइयों से दूर रहता है.

ये इंसान को एक पाक साफ़ ज़िन्दगी शुरू करने का मौक़ा देता है. सही बुख़ारी की एक हदीस के मुताबिक़ अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जिस शख़्स ने अल्लाह के लिए इस शान के साथ हज किया कि न कोई बुरी बात हुई और न कोई गुनाह तो वह उस दिन की तरह वापस होगा जब उसकी माँ ने उसे जन्म दिया था. 

इस्लाम में हाजियों को बहुत ही अहमियत दी गई है. इस बात का अंदाज़ा इस हदीस से लगाया जा सकता है, जिसमें अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि ऐ अल्लाह ! हज करने वालों की मग़फ़िरत फ़रमा, और उसकी भी मग़फ़िरत फ़रमा जिसके लिए हाजी मग़फ़िरत की दुआ करे.        

(लेखिका आलिमा हैं. उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है)