हर्ष कपाड़िया मुंबई की 200 साल पुरानी क्रॉफर्ड मार्केट जामा मस्जिद गए तो क्या हुआ, जानिए !

Story by  शाहताज बेगम खान | Published by  [email protected] | Date 10-10-2022
हर्ष कपाड़िया मुंबई की 200 साल पुरानी क्रॉफर्ड मार्केट जामा मस्जिद गए तो क्या हुआ ?
हर्ष कपाड़िया मुंबई की 200 साल पुरानी क्रॉफर्ड मार्केट जामा मस्जिद गए तो क्या हुआ ?

 

शाहताज खान/ मुंबई 

जब हर्षद कपाडिया नमाज अदा करते समय किए जाने वाले विभिन्न चरणों को समझने की खातिर मुफ्ती और लाइब्रेरियन अब्दुल मतीन के सामने खड़े हुए, तो उनका पहला सवाल था- क्या माफी मांगना नमाज का हिस्सा है ?

आखिरकार इस 66 वर्षीय शख्स ने मुंबई के क्रॉफर्ड मार्केट के पास जामा मस्जिद जाने की अपनी इच्छा पूरी कर ही ली. वह स्कूल के समय से आते-जाते इस मस्जिद को देखते हुए बड़े हुए हैं.
 
रविवार तक मस्जिद का दौरा और इसके बारे में अन्वेषण कपाड़िया साहब के के लिए रहस्य ही था. मगर यह दौरान और उनकी जिज्ञासा अब पूरी हो चुकी है. मस्जिद के दौरे के क्रम में उनके साथ महिलाएं भी थीं.
 
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हर्ष कपाड़िया के सवाल के जवाब में मतीन ने बताया-माफी मांगना नमाज का उतना ही हिस्सा है, जितना सज्दे सहित शरीर के अन्य पोस्चर और नमाज के अनुसार रकात. अलग-अलग नमाज में रकात भिन्न-भिन्न होते हैं. कपाडिया को बताया गया कि कुरान में नमाज का कई बार उल्लेख मिलता है.
 
मस्जिद की यात्रा में कपाडिया सहित छह लोग शामिल थे. मस्जिद में प्रवेश करते ही बताया गया कि जब कोई व्यक्ति यहां आता है, तो उसे क्या करना चाहिए. इसके अलावा उन्हें विभिन्न प्रकार की नमाज और उनके समय, उन्हें कैसे करना है, मस्जिद के दो प्रार्थना कक्ष, अलंकृत डिजाइनों वाली संरचना और इसमें स्थित पुस्तकालय के बारे में जानकारी दी गई.

जुमा मस्जिद की देखभाल करने वाले ट्रस्ट के अध्यक्ष शोएब खतीब ने कहा, इबादत के लिए जाने से पहले खुद को साफ करना महत्वपूर्ण है.विचार यह है कि हम जिस ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, उसके सामने हम शुद्ध खड़े हो.
 
कपाड़िया और उनके साथियों को तीन बार मुट्ठियां, टखनों तक पैर, कोहनियों तक हाथ, चेहरा और गर्दन के पिछले हिस्से को साफ करने यानी वजू के बारे में भी बताया गया. कहा गया कि यह अनिवार्य है. कुछ लोग गरारे भी करते हैं और थोड़ा सा पानी नथुने में भर लेते हैं. ताकि सांसों की दुर्गंध न आए.
 
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मतीन ने बताया, नमाज की ज्यादातर बातें वैज्ञानिक हैं. मिसाल देकर समझाया-जब आप अपनी गर्दन के पिछले हिस्से को साफ करते हैं, तो रक्त संचार बेहतर होता है. ठीक उसी तरह जैसे जब आप प्रार्थना करते समय अपने सिर को जमीन से छूते हैं.
 
मुंबई की 200 साल से अधिक इस पुरानी मस्जिद में, नमाजियों के वजू के लिए कुछ नल और प्राकृतिक जलाशय यानी एक छोटा हौद है धोने का विकल्प होता है, जिसमें मछलियां और कछुआ भी रहते हैं.
 
तालाब को कोविड -19 महामारी के दौरान साफ किया गया था. इस कार्य में कई महीने लग गए थे. खतीब ने कहा, मछली को विशाल मछली टैंक में स्थानांतरित करने में बस दो महीने का समय लगा.
 
मौलाना तौसीफ बंगी ने  प्रार्थना कक्ष के बाहर, प्रार्थना की दिशा, उपदेश का स्थान, प्रार्थना करने वाले मौलाना की प्रार्थना चटाई और जुम्मा (शुक्रवार) की प्रार्थना के बारे में बताया.
 
यह भी बताया कि जुम्मा की नमाज केवल बड़ी मस्जिदों में होती है, जहां नमाजियों को कालीन पर जटिल डिजाइनों के माध्यम से चिह्नित लाइनों पर कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना होता है. कंधों को छूना अनिवार्य भी है और भाईचारे की निशानी भी.
 
इस मस्जिद, जिसमें एक बार में 5,000 लोग बैठ सकते है. इसमें एक निचला और एक ऊपरी प्रार्थना कक्ष है, जिसमें बाद में न्यूनतम खंभे और बीच में 500 किलोग्राम का झूमर लटका हुआ है.
 
मौलाना ने समझाया, मस्जिद निर्माण के समय इंजीनियरिंग नहीं थी. इसके बावजूद बहुत सुंदर डिजाइन है. हमारे पास भूतल के प्रार्थना कक्ष के कुछ हिस्सों में छत नहीं है, ताकि आवाज ऊपरी हॉल तक जा सके. 
 
यदि आप ध्यान दें, तो हॉल भर जाने पर झूमर घूम जाएगा. झूमर के शौकीन एक आगंतुक उदयन शाह ने कहा. ऐसा इसलिए है, क्योंकि कंपन लकड़ी के फर्श से गुजरते हैं.
 
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प्रार्थना कक्षों के बाद, आगंतुकों को पुस्तकालय दिखाया गया जिसमें अरबी, उर्दू और फारसी में 18,000 से अधिक पुस्तकें हैं. कुछ अंग्रेजी में भी किताबें हैं. पुस्तकालय में 2,000 पांडुलिपियों में से सबसे पुरानी 600 साल पुरानी है, जबकि कुरान कॉफी-टेबल के आकार वाले से लेकर छोटे बॉक्स में फिट हो सकने वाली भी है.
 
हाथ से लिखी गई अधिकांश कुरान को पृष्ठों के बीच बटर पेपर के साथ संरक्षित किया गया है ताकि स्याही खराब न हो. कुछ का फारसी में अनुवाद  है. मुंबई में इस तरह की पहली कुरान यहां संग्रहित है.
 
आगंतुकों ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि इस तरह की यात्राएं गलतफहमियों को दूर करने और लोगों को एक साथ लाने के लिए आयोजित की जाएं. उन्होंने कहा कि ऐसी यात्राओं को अधिक बार आयोजित किया जाना चाहिए और विभिन्न धर्मों के पूजा स्थलों का नेतृत्व करना चाहिए.
 
एक गृहिणी और पेडर रोड की निवासी सुधा शाह ने कहा, यह पहली बार है जब मैं किसी मस्जिद में गई हूं. “मैं हमेशा से मुसलमानों की जीवन शैली को देखना और समझना चाहती थी.
 
मेरे स्कूल के दोस्त ने मुझे इसके बारे में बताया था. मस्जिद की वास्तुकला दुनिया से बाहर है, जबकि उनकी प्रार्थना प्रणाली हमारे समान है. वे भी परमेश्वर के आगे सिर झुकाते हैं, और हमारे समान सफाई करते है.”
 
कपाड़िया ने कहा, “बाहर की दुनिया में बहुत सारी भ्रांतियां हैं. यह अच्छा है कि यह धर्मांतरण के बारे में नहीं है.आने के महत्व पर जोर देते हुए हिमेश ने कहा, आखिरकार हमें साथ रहना है. यह महत्वपूर्ण है कि ऐसी यात्राओं का आयोजन किया जाए. यह भाईचारे को बढ़ावा देगा.