कश्मीरी पंडितों की सेवाओं का उल्लेख किए बिना नहीं लिखा जा सकता उर्दू का इतिहास

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 17-05-2022
कश्मीरी पंडितों की सेवाओं का उल्लेख किए बिना नहीं लिखा जा सकता उर्दू का इतिहास
कश्मीरी पंडितों की सेवाओं का उल्लेख किए बिना नहीं लिखा जा सकता उर्दू का इतिहास

 

गुलाम कादिर / भोपाल

उर्दू भाषा साहित्य में कश्मीरी पंडितों के मूल्यवान योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता. कश्मीरी पंडितों की नई पीढ़ी भी उर्दू भाषा को संरक्षित करने में लगी हुई है. बगैर कश्मीरी पंडितों के योगदान का उल्लेख किए उर्दू भाषा का इतिहास नहीं लिखा जा सकता.

यह कहना है मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी के निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी का. वह यहां कश्मीरी पंडितों की सेवाओं का उल्लेख किए बिना नहीं लिखा जा सकता उर्दू का इतिहास विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बोल रहे थे

संगोष्ठी में अपने विचार रखते हुए वरिष्ठ पत्रकार राजेश रैना ने कहा कि उर्दू भारत की भाषा है. इसे किसी धर्म से जोड़ना उचित नहीं. जब हम किसी भाषा को किसी धर्म से जोड़ते हैं, उसकी न सीमा सीमित हो जाती है, मर भी जाती है.

उन्होंने कहा, कश्मीरी पंडितों ने हर भाषा को अपने सीने से लगाया. जब संस्कृत भाषा थी, तो उन्होंने यह कौशल हासिल किया. इसमें महान विद्वानों को पैदा किया. फारसी के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ दिया और प्रशासन का हिस्सा बने. इसी तरह उर्दू भाषा और साहित्य को कलेजे से लगाकर सेवाएं दी हैं.

मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी संस्कृति विभाग द्वारा रविंदर भवन में उर्दू भाषा साहित्य में कश्मीरी पंडितों के योगदान पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित में प्रमुख उर्दू लेखकों और पत्रकारों ने भाग लिया. इस दौरान उर्दू भाषा और साहित्य के प्रचार में कश्मीरी पंडितों की योगदान पर न केवल प्रकाश डाला गया, शोध पत्र प्रस्तुत किए.

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मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी अपनी अनूठी उपलब्धियों के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध है. इसके तत्वावधान में इस बार उर्दू भाषा साहित्य में कश्मीरी पंडितों के योगदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई .कार्यक्रम में वे उर्दू लेखक भी आमंत्रित किए गए थे जिनकी लेखनी से उर्दू पाठक बखूबी वाकिफ हैं.

राष्ट्रीय संगोष्ठी में पत्रकार राजेश रैना मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे. प्रख्यात पत्रकार बुर्ज नाथ बेताब ने राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता की.संगोष्ठी की शुरुआत में डॉ. नुसरत मेहदी, निदेशक, एमपी उर्दू अकादमी ने कार्यक्रम के उद्देश्य के बारे में विस्तार से बताया.

उन्होंने कहा कि संगोष्ठी का उद्देश्य उर्दू भाषा और साहित्य में कश्मीरी पंडितों की मूल्यवान सेवाओं को सामने लाना और शिक्षित करना है. कश्मीरी पंडितों की नई पीढ़ी ने भी उर्दू भाषा को संरक्षित किया .

उनके बिना उर्दू भाषा इतिहास नहीं लिखा जा सकता. पत्रकार राजेश रैना ने संगोष्ठी में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उर्दू भारत की भाषा है. इसे किसी धर्म से जोड़ना उचित नहीं. जब हम किसी भाषा को किसी धर्म से जोड़ते हैं, वह न केवल दायरे में सीमित हो जाती है, मर जाती है.

उन्होंने कहा, कश्मीरी पंडितों ने हर उम्र की भाषा को अपने सीने पर ढोया. जब संस्कृत भाषा थी, उन्होंने यह कौशल हासिल किया. संस्कृत के महान विद्वान पैदा किए. फारसी के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ दिया. उसी तरह उर्दू भाषा और साहित्य को कलेजे लगाकर सेवाएं दे रहे हैं.

संगोष्ठी के अध्यक्ष, प्रतिष्ठित पत्रकार और कवि बुर्ज नाथ बेताब ने इस के आयोजन के लिए मध्य प्रदेश सरकार, संस्कृति विभाग और उर्दू अकादमी को बधाई दी. उन्होंने भोपाल के साथ कश्मीर के सहस्राब्दी संबंध, कश्मीर में राजा भोज के स्मारक और नवाब भोपाल के संबंधों पर विस्तार से प्रकाश डाला.

बताया कि इस अछूते विषय पर अभी तक पूरे देश में विचार नहीं किया गया दृ उन्होंने दावा किया कि जम्मू-कश्मीर में भी अभी तक इस विषय पर कोई कार्यक्रम नहीं आयोजित नहीं किया गया है.

प्रमुख उपन्यासकार दीपक बड़की ने कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा पर अपना उपन्यास प्रस्तुत किया. उन्होंने अपने उपन्यासों में चिनार को प्रेम के प्रतीक के रूप में संदर्भित किया और उर्दू भाषा के बीच संबंधों पर प्रकाश डाला.

जम्मू के प्रमुख उपन्यासकार खालिद हुसैन ने अपना शोध प्रबंध प्रस्तुत करते हुए कहा कि कश्मीरी पंडितों ने न केवल उर्दू भाषा और साहित्य की खेती में अपना योगदान दिया है, कश्मीरी मुसलमानों की शिक्षा और प्रशिक्षण में भी अपना खून और कलेजा लगाया है. प्रख्यात शोधकर्ता और आलोचक डॉ. मुहम्मद नोमान खान ने अपना शोध प्रबंध प्रस्तुत किया.