संदेश तिवारी/ कानपुर
महापुरुषों की मूर्तियां हमेशा से प्रेरणा स्रोत रही हैं. किसी भी शहर का इतिहास वहां स्थापित महापुरुषों की मूर्तियों से परिलक्षित होता है. प्रथम स्वाधीनता संग्राम से लेकर आजादी तक कानपुर क्रांतिकारियों का प्रमुख केंद्र रहा है. इसी वजह से यहां उनसे जुड़ी यादों का एक लंबा इतिहास है. बिठूर जहां नाना साहब पेशवा, रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे जैसे योद्धाओं की कहानियां अपने में समेटे है, वहीं शहर में चंद्रशेखर आजाद और उनके क्रांतिकारी साथियों ने आजादी की मशाल जलाई थी. इसके अलावा आजादी के बाद जिन्होंने शहर के लिए कुछ किया, उनका इतिहास भी यह मूर्तियां संजोए हुए हैं. भले ही मौजूदा पीढ़ी कई महापुरुषों को भूल गई हो, लेकिन मूर्तियां इनके द्वारा किए गए कार्यो की हमेशा याद दिलाती रहेंगी.
हर जगह का एक इतिहास होता है, भारत का भी है. कई सालों तक भारत पर अंग्रेजों ने राज किया. भारतीयों को गुलाम बना कर रखा. इस गुलामी के आगे कई लोगों ने हथियार डाल दिये और कई लोगों ने इस गुलामी से आजादी पाने के लिए जंग लड़ी. ये जंग हथियारों के साथ-साथ राजनीतिक भी थी. कुछ महान लोगों के बलिदान से और राजनीतिक सूझबूझ से आज हम आजाद है. इन महान लोगों को हम कभी न भूलें. इसलिए उनके सम्मान में उनकी प्रतिमाएं बनाई गई है.
बिठूर स्थित आजादी से पूर्व की रानी लक्ष्मीबाई मूर्ति
वैसे तो स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई में हर जगह के लोगों ने भाग लिया था, लेकिन उत्तर प्रदेश का कानपुर केंद्र था. यहां का इतिहास कई तरह की कहानियों खुद में समेटे हुए है. ये शहर रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, चंद्रशेखर आजाद जैसे कई क्रांतिकारियों के बलिदान का गवाह है. इन के बलिदान को लोग भले ही आज भूल गये हो, लेकिन कानपुर में बनी इनकी ये मूर्तियां आज भी इतिहास की कहानियां को दोहराती है.
अगर इतिहास की बात की जाए, तो अभी तक ये पता नहीं लगाया जा सका है कि भारत की पुरानी मूर्तियों में सबसे पुरानी कौन सी है, लेकिन कुछ किताबों के अनुसार ये बताया जाता है कि बिरहाना रोड स्थित भारत माता मंदिर में स्थापित भारत माता की मूर्ति सबसे पुरानी है. यह मूर्ति आजादी से पहले की है.
कानपुर के डीएवी कॉलेज के अंदर बनी मूर्ति क्रांतिकारी शालिग्राम शुक्ला की है. इस मूर्ति को वर्ष 1963 में स्थापित की गई. शालिग्राम शुक्ला हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के कानपुर चीफ थे. ये वो महान व्यक्ति है, जिनकी कहानियां इतिहास के पन्नों में खो गई है लेकिन कानपुर ने इनकी याद को संजोया हुआ है. शालिग्राम शुक्ला शहीद चंद्रशेखर आजाद के साथी थे. एक दिसंबर 1930 में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में वो चंद्रशेखर आजाद की रक्षा करने के दौरान वे शहीद हो गये.
पेशवा स्मारक में तात्या टोपे की प्रतिमा
कानपुर के बिठूर के अंदर जाते ही रानी लक्ष्मीबाई की एक ऊंची मूर्ति बनी है. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा को कानपुर प्रधिकरण द्वारा बनवाया गया है. इसके अलावा बिठूर के नानाराव पार्क में नाना साहब और तात्या टोपे के साथ ही अजीमुल्ला खां की प्रतिमाएं भी बनवाई गयी है. इस तमाम प्रतिमाओं से आप सोच सकते है, कि स्वाधीनता संग्राम में ये शहर कितना बड़ा केंद्र था.
कानपुर के सीएसए कृषि विश्वविद्यालय में आजादी पूर्व की चंद्र शेखर आजाद प्रतिमा।
अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का कानपुर से अटूट रिश्ता था. इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि कानपुर में चंद्रशेखर आजाद की दर्जनों मूर्तियां बनी हुई है. कानपुर के विवि में उनकी दो और प्रतिमाएं हैं. इसके अलावा गोल चौराहा, नवाबगंज, डीपीएस नवाबगंज, गोविंदनगर, सिरकी मोहाल, तेजाब मिल और दादा नगर में भी चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमाएं लगी हैं.
कानपुर में बड़ा चौराहे पर कोतवाली रोड के किनारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. मुरारी लाल की प्रतिमा है. इसके आजादी के लड़ाई में इन्होंने भी अपने प्राण गवाए थे. लेकिन इतिहास के पन्नों में इनका नाम फीका पड़ गया. 3 अप्रैल 1966 को इस प्रतिमा का अनावरण यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभान गुप्ता ने किया था.