शांति स्वरूप भटनागरः वैज्ञानिक से रुहानी और रूमानी शायर तक

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
शांति स्वरूप भटनागर
शांति स्वरूप भटनागर

 

साकिब सलीम

प्रोफेसर शांति स्वरूप भटनागर (1894 - 1955) को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है. एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक, जिनके चुंबकत्व-रसायन विज्ञान के क्षेत्र में योगदान ने उन्हें वैज्ञानिकों के बीच एक प्रसिद्ध नाम बना दिया, भटनागर वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के पहले अध्यक्ष थे.

भारत सरकार (भारत सरकार) ने उन्हें दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया. 1958 से, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट अनुसंधान के लिए भारत सरकार द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी (एसएसबी) के लिए शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है. इस पुरस्कार को एक वैज्ञानिक के लिए भारत में सर्वोच्च सम्मान माना जाता है.

रसायन विज्ञान के क्षेत्र में भटनागर के कारनामे एक सामान्य ज्ञान है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि वह एक उर्दू शायर भी थे. उन्हें जीन के माध्यम से उर्दू साहित्य से प्यार मिला. उनके नाना मुंशी हरगोपाल तुफ्ता, महान कवि मिर्जा असदुल्ला खान गालिब के सबसे प्रिय शिष्यों में से एक थे.

भटनागर ने कम उम्र में ही उर्दू शायरी लिखना शुरू कर दिया था. उन्होंने जिन कविताओं की रचना की, वे उनके अपने आनंद के लिए थीं और उन्हें प्रकाशित होने के लिए कभी किसी पत्रिका में नहीं भेजा गया. उन्होंने कभी नहीं माना कि उनकी कविता प्रकाशित होने लायक थी. जिन भावनाओं को वह महसूस करते थे, वे ज्यादातर आवारा कागजों पर लिखी गई थीं. ये आवारा कागज खराब हो गए या एक समय में खो गए. अपनी पत्नी लाजवंती की जिद पर उन्होंने एक बार इन कविताओं को एकत्र कर फैज झिंझानवी को दे दिया, जिनसे एक चोर ने उन्हें अन्य कीमती सामान के साथ चुरा लिया. इसके बाद उन्होंने कभी अपनी कविताओं को प्रकाशित कराने की कोशिश नहीं की. हालाँकि, वह उर्दू कवियों और बुद्धिजीवियों की बैठकों में नियमित थे.

अपनी पत्नी लाजवंती की मृत्यु के बाद, भटनागर ने अपनी उन पत्रों का एक संग्रह खोजा, जिन पर वर्षों से उन्होंने कविताएँ लिखी थीं. अपनी पत्नी से बहुत प्यार करने वाले भटनागर ने लाजवंती की इस इच्छा को पूरा करने का फैसला किया. कविताएँ मुंशी नवल किशोर प्रेस को भेजी गईं और जल्द ही एक पुस्तक प्रकाशित हुई. इस किताब का नाम लाजवंती था.

भटनागर के अनुसार, नाम इसलिए चुना गया क्योंकि उन्होंने अपनी एक कविता, बीवी और किताब (पत्नी और किताब) में लिखा था,

मेरी बीवी ने कहा एक दिन जो मैं होती किताब

तेरे दीद-ए-शौक से हर वक्त रहती फैजयाब

(एक दिन मेरी पत्नी ने कहा, अगर मैं एक किताब होती, तो तुम हमेशा मुझे जुनून से देखते)

भटनागर लिखते हैं, “अब लाजवंती एक किताब है और इसके पन्ने मेरे द्वारा हमेशा खुले रहेंगे, क्योंकि मेरी पत्नी चाहती थी कि उसका माथा एक किताब के पन्ने हों, जो मेरे पन्ने पलटने पर मेरे स्पर्श का आनंद ले सकें.”

लाजवंती, भटनागर का उर्दू शायरी का संग्रह पहली बार 1946 में प्रकाशित हुआ था. इसमें मौलवी अब्दुल हक, ख्वाजा हसन निजामी, ख्वाजा मोहम्मद शफी देहलवी, कुंवर मोहिंदर सिंह बेदी सहर और सर तेज बहादुर सप्रू की प्रस्तावनाएँ थीं.

अब्दुल हक का मानना था कि भटनागर की भाषा शुद्ध है, फिर भी समझने में आसान है. निजामी ने लिखा है कि उनकी कविता के आधार पर उन्हें माहिर-उल-कलाम (एक विशेषज्ञ कवि) कहा जा सकता है. सप्रू ने लिखा, “उर्दू साहित्य में आपकी (भटनागर की) विशेषज्ञता, उनकी विज्ञान की महारत से कम पीछे नहीं है.” उनकी राय में, भटनागर की कविता विशिष्ट दर्शन और काव्य कौशल को दर्शाती है. इसके अलावा, सप्रू ने 1946 में प्रकाशित इस पुस्तक को हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में देखा.

पहली कविता, खुदा (भगवान), एक विवादास्पद कविता है, जहां भटनागर ने नास्तिक विश्वास को चुनौती दी थी. एक व्यक्ति उसे यह साबित करने के लिए कहता है कि कैसे पूरे ब्रह्मांड को प्रकृति के वैज्ञानिक नियमों द्वारा समझाया नहीं जा सकता है, जिसके लिए वह प्रकृति की ओर लौटता है और तर्क देता है कि एक महाशक्ति के बिना प्रकृति का अस्तित्व नहीं हो सकता. इस लंबी कविता का सार इन्हीं शब्दों में है,

गरज मयास्सर जो चश्मा-ए-दिल हो तो उसका जलवा कहां नहीं है

(यदि किसी के पास शुद्ध हृदय से सुविचारित दृष्टि है, तो ईश्वर का रहस्योद्घाटन हर जगह है)

एक अन्य कविता, कीमिया-ओ-फल्सफा (रसायन विज्ञान और दर्शन) में, भटनागर फिर से एक बहस पैदा करते हैं. एक आदमी उन्हें बताता है कि पूर्वी दर्शन ही वास्तविक ज्ञान है, जबकि आधुनिक प्रयोग और आधारित विज्ञान ईश्वर के सत्य से विचलन है. इसके अलावा, आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी और कुछ नहीं, बल्कि दूसरों की कीमत पर धन संचय करने का एक साधन है. जहाँ, शायर उत्तर देता है कि प्राकृतिक विज्ञान का अध्ययन मनुष्य को ईश्वर के करीब लाता है. वह लिखते हैं,

अजाल के राज हैं निहां दिल-ए-मुरक्काबत में

अगर खुदा को ढुंढना है ढूंढ घास-पात में

(इन रासायनिक यौगिकों में छिपे हैं शाश्वत रहस्य, ईश्वर को पाना है तो प्रकृति में खोजो)

उनके लिए विज्ञान का अध्ययन हमें धर्म के करीब लाता है. यह उस समय के सामान्य ज्ञान के खिलाफ है.

कई लोगों द्वारा वैज्ञानिकों को भावनाओं की कमी के साथ व्यावहारिक लोगों के रूप में माना जाता है. आम धारणा के विपरीत, भटनागर ने अपनी कविता में प्रेम की गहरी भावनाओं को प्रदर्शित किया. पुस्तक का नाम न केवल उनकी पत्नी के नाम पर रखा गया था, कई कविताएँ उनकी यादों को समर्पित थीं.

मेरी राय में, ये उर्दू भाषा की कुछ बेहतरीन रोमांटिक कविताएँ हैं. ऐसी ही एक कविता, बीवी और किताब का उल्लेख पहले ही किया जा चुका है. नामा-ए-शौक, वास्तव में उनके जन्मदिन के अवसर पर लंदन से एक पत्र के रूप में लिखा गया था. यह उन उत्कृष्ट कृतियों में से एक है, जिसे हर महिला अपने पति से जन्मदिन के उपहार के रूप में प्राप्त करना पसंद करेगी. वह लिखता है,

सोचता हूं कि अब करूं क्या नजर

दिल तो पहले ही कर चुका हूं निसार

(मुझे आश्चर्य है कि मैं और क्या पेशकश कर सकता हूं, दिल आपको पहले ही दिया जा चुका है)

उनकी पत्नी लाजवंती की मौत पर लिखी गई कविता मुफारकत किसी की भी आंखों में आंसू ला सकती है. कविता दुख में डूबी भावनाओं के साथ लिखी गई थी. भटनागर ने उन पर गुस्सा दिखाया, यह तर्क देते हुए कि उन्होंने उनके साथ रहने का वादा किया था और उसे पीछे छोड़कर उनसे किया हुआ तोड़ दिया. वह लिखते हैं,

क्या नहीं है याद तुमको अपना पैमाने-ए-वफा

जा रही हो छोड कर क्या यही है शान-ए-वफा

(तुम्हें अपने वादे याद नहीं हैं, तुम मुझे छोड़ रही हो, क्या यही तुम्हारी कसमों का सम्मान है)

भटनागर पूछते हैं, वह उनके बिना घर में अकेले कैसे रहेंगे,

क्या लगे जी घर में जब तुम ही न हो पेश-ए-नजर

(दिल को उस घर में सुकून नहीं मिलेगा, जहाँ मैं तुम्हें देख नहीं सकता)

वह आगे अपने मानवीय विवशता पर विलाप करता है,

चाँद तारे तोड़ लाऊं तुमको ला सकता नहीं

उफ्फ ये मेरी ना-रसाई तुमको पा सकता नहीं

(भले ही मैं धरती पर चांद-तारे ला सकता हूं, लेकिन आपको वापस नहीं ला सकता)

एक अन्य नज्म में, भटनागर ने स्वर्ग का एक रेखाचित्र खींचा था, जहाँ चित्रगुप्त ने लाजवंती का स्वागत किया और वह अपने परिवार के सभी सदस्यों से मिलीं, जो उनसे पहले मर चुके थे. रिश्तेदारों के बीच बातचीत, जैसा कि वे उनसे भटनागर के बारे में पूछते हैं, एक उत्कृष्ट कृति है. शायर अपने पाठकों को उस दर्द का एहसास कराता है जिससे वह गुजर रहा था.

‘आ-जाओ’ ऐसी नज्म है, जिसमें भटनागर ने मृत पत्नी के लिए अपनी लालसा को शब्दों में बयां किया था. शब्द तड़पते हैं, जैसा उन्होंने लिखा,

मैं जगता हूं के शायद कहीं से आ जाओ

(मैं इस उम्मीद से जाग रहा हूं कि शायद तुम कहीं से आ जाओगी)

हिन्दी की स्थानीय बोली में लिखी गई एक और उल्लेखनीय नज्म है ‘दिन रात मैं तुमको ढूंढता हूं. शायर पागल प्रेमी की तरह बारिश, पहाड़ों, नदियों, पेड़ों, फूलों और हर जगह अपने प्रिय को खोजता है. पुस्तक का एक बड़ा हिस्सा लाजवंती की यादों को समर्पित है और भटनागर के एक रोमांटिक पक्ष को सामने लाता है. बस, यह सब कुछ नहीं है, और वह बहुत कुछ विविधता दिखाता है.

पुस्तक में कई देशभक्ति नज्म भी हैं. यह ध्यान में रखना चाहिए कि यह पुस्तक स्वतंत्रता पूर्व भारत में प्रकाशित हुई थी और इस प्रकार राष्ट्रवादी कविता लिखना एक साहसी कार्य था. ये कविताएँ भटनागर के राष्ट्रवादी दृष्टिकोण का प्रमाण हैं.

‘ठिगनी सरकार’ (बौनी सरकार) में, भटनागर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत के सचिव राज्य लियो अमेरी के साथ अपने साक्षात्कार का वर्णन करते हैं. अमेरी ने उनसे पूछा कि वह कांग्रेस, मुस्लिम लीग और सत्ता के अन्य दावेदारों के बारे में क्या सोचते हैं और इस तरह की अराजकता में अंग्रेज भारत को कैसे छोड़ सकते हैं. भटनागर ने जवाब दिया कि अगर अंग्रेज भारत छोड़ने के लिए वास्तव में ईमानदार थे, तो उन्हें ज्यादा नहीं सोचना चाहिए था और किसी भी भारतीय को सत्ता सौंपनी चाहिए थी. भटनागर ने व्यंग्य करते हुए लिखा कि सत्ता उन्हें भी हस्तांतरित की जा सकती है. एक अन्य कविता में वे भारत में ब्रिटिश सरकार की नस्लवादी नीतियों को सामने लाते हैं.

‘मरीज हर दिल अजीज’ में भटनागर ने भारत की तुलना एक मरीज और उसके नेताओं से विभिन्न स्कूलों के डॉक्टरों के रूप में की. कांग्रेस, हिंदू महासभा, मुस्लिम लीग, अकाली, आजाद हिंद फौज और अन्य समूहों में विभाजित विचारधारा वाले नेता थे. उनमें से प्रत्येक का मानना था कि देश की समस्याओं का समाधान उनके द्वारा किया जा सकता है, क्योंकि वे समस्या को दूसरों की तुलना में बेहतर समझते हैं. भटनागर का मानना था कि इसी वजह से भारत को आजादी नहीं मिल पाई. उन्होंने लिखा है,

जो खुद ही पाबंद-ए-ऐन-ओ-आन हो, वतन को आजाद क्या करेगा

(जो स्वयं विचारधाराओं और अहंकार पर आश्रित है, वह देश को कैसे मुक्त कर सकता है)

अखंड भारत का विचार भी उनकी कविता में गहराई से निहित था. यह वो समय था, जब भारत राजनीति के अभूतपूर्व सांप्रदायीकरण का सामना कर रहा था. यह महसूस करते हुए कि विश्व युद्ध के तुरंत बाद भारत मुक्त हो जाएगा, उन्होंने एक नई विश्व व्यवस्था के लिए लिखा,

ईसा का दौर आए बुद्ध का राज आए

फिर नूर-ए-मुस्तफा से ये बज्म जगमगायेगी

(मसीह का समय आएगा, बुद्ध का साम्राज्य लौट आएगा, फिर पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं से जगमगाएगी दुनिया)

पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर छोड़ने के दौरान, 16 साल तक पढ़ाने के बाद, 1640 में भटनागर ने एक चलती-फिरती नज्म लिखी, जिसमें उन्होंने उस समय लाहौर में धर्म और भाषा के नाम पर बढ़ती कट्टरता की ओर इशारा किया. उन्होंने लिखा है,

तेरा आलिम कार-जार-ए-कुफ्र-ओ-इमान हो गया

वाए किस्मत इल्म भी हिंदू-मुसलमान हो गया

(आपके (विश्वविद्यालय के) विद्वान धार्मिक द्वेष के दलदल बन गए हैं, हमारा भाग्य है कि ज्ञान हिंदू और मुस्लिम हो गया है)

हमारे समाज में महिलाओं की समस्याओं को भी उन्होंने इंगित किया था. ऐसी ही एक महिला केंद्रित कविता में वे लिखते हैं,

औरत है कौन जिसपे मुसीबत पड़ी नहीं

(कहां है वो औरत, जिसे मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ा)

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), कुलगीत का विश्वविद्यालय गान भी भटनागर द्वारा लिखा गया था, जब उन्होंने 1921-1924 तक वहां पढ़ाया था.

लाजवंती पुस्तक एक महान वैज्ञानिक के रोमांटिक, रचनात्मक, राष्ट्रवादी और सामाजिक पक्ष को दर्शाती है. जब विज्ञान के छात्र उत्पादकता उन्मुख हो रहे हैं और साहित्य, कला और मानविकी के साथ उनके जुड़ाव को हतोत्साहित किया जाता है, तो लोगों को उन महान वैज्ञानिकों के बारे में अधिक पढ़ना चाहिए, जिन्हें राष्ट्र ने बनाया है. उर्दू साहित्य में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए पुस्तक अवश्य पढ़ें.

(नोटः मैं प्रो. भटनागर के बारे में कम ज्ञात तथ्यों को मेरे ध्यान में लाने के लिए जेएनसीएएसआर के प्रो अमिताभ जोशी को धन्यवाद देना चाहता हूं. जोशी शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, 2009 के प्राप्तकर्ता हैं और फारसी और उर्दू कविता भी लिखते हैं.)