शाद अजीमाबादीःबिहार का ऐसा शायर जिसके अल्लामा इकबाल भी थे मुरीद

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 07-01-2022
शाद अजीमाबादीःबिहार का ऐसा शायर जिसके अल्लामा इकबाल भी थे मुरीद
शाद अजीमाबादीःबिहार का ऐसा शायर जिसके अल्लामा इकबाल भी थे मुरीद

 

जन्मः 8 जनवरी,1846      मृत्युः 7 जनवरी,1927


serajसेराज अनवर  / पटना
 
ढूूंढोगे अगर मुल्कों-मुल्कों मिलने के नहीं, नायाब हैं हम‘
 
बिहार और देश का साहित्यिक जगत आज एक ऐसे शायर को याद कर रहा है,जिसके बारे में कहा जाता है कि वह नहीं होते तो शायद अल्लामा इकबाल भी न होते.
 
मिर्जा असदुल्लाह खां गालिब से थोड़े बाद और इकबाल से थोड़ा पहले इस शायर ने अपनी शायरी का ऐसा रंग जमाया कि नवाब मिर्जा खां दाग देहलवी से लेकर हसरत मोहानी,फानी बदायूनी,अमीर मीनाई सरीखे समकालीन शायरों से उनका मर्तबा बड़ा हो गया.
 
उन्होंने लब ओ रुख्सार,प्यार-मुहब्बत वाली शायरी के लब-ओ-लहजे को न सिर्फ बदल कर रख दिया, चिंतन और गम्भीर शायरी की ऐसी बुनियाद रखी कि कलीम उद्दीन अहमद जैसे बड़े आलोचक को भी उनकी साहित्यिक अजमत का एतराफ करना पड़ा.अल्लामा इकबाल ने तो उनके सम्मान में मुकम्मल शोकगीत ही लिख डाली.
 
उस अजीम हस्ती का नाम शाद अजीमाबादी है. आज उनकी 95 वीं पुण्यतिथि है. आज ही के दिन 7 जनवरी,1927 को इस अजीम शायर ने आखिरी सांस ली थी.इत्तिफाक यह कि एक दिन बाद यानी कल उनकी जयंती भी है.शाद ने 8 जनवरी,1846 को आंख खोली थी.
 
बिहार के साहित्यकारों का मानना है कि शाद जितने बड़े शायर थे,राजकीय स्तर पर उन्हें नजरअंदाज किया गया.उनका मजार अतिक्रमित है. बिहार सरकार की ओर से पुण्यतिथि या जयंती पर कोई सरकारी आयोजन नहीं होता.
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कोविड महामारी के अनियंत्रित परस्तिथि के मद्देनजर इस बार निजी कार्यक्रम भी नहीं किए जा रहे हैं. परिवार के लोग ही सिर्फ चादरपोशी कर सकेंगे.
 
कौन थे शाद अजीमाबादी ?

‘शाद‘ अजीमाबादी पटना सिटी के रहने वाले थे. उनका मूल नाम सैयद अली मुहम्मद था. उन्होंने उर्दू साहित्य में न सिर्फ बिहार का नाम बल्कि पूरे मुल्क का नाम रौशन किया.
 
“सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में” जैसी इंकलाबी नज्म लिखने वाले बिस्मिल अजीमाबादी उनके शागिर्द थे,जिन्होने यह नज्म 1921 में लिखी थी. जिस कागज पर यह नज्म उकेरी गई, उस पर उनके उस्ताद शायर शाद अजीमाबादी ने सुधार भी किया है.
 
इसकी मूल प्रति आज भी बिस्मिल अजीमाबादी के परिवार के पास सुरक्षित है. इसकी नकल पटना के खुदाबख्श ओरिएंटल लाइब्रेरी में रखी हुई है. शाद कई साल तक पटना में मजिस्ट्रेट रहे.
 
उनकी साहित्यिक सेवाओं के बदले में सरकार ने ‘खान बहादुर’ के खिताब से नवाजा था. शाद को अपने युग का मीर कहा गया है.शाद ने उर्दू अदब के हर पहलू पर काम किया, कसीदा, मर्सिया, मसनवी, कतआ, रुबाई और गजल सभी शैलियों पर उन का कलाम मौजूद है.
 
गजल आपको बहुत प्रिय था. उर्दू साहित्य में शहंशाह-ए-गजल मिर्जा गालिब सी हैसियत हासिल है. इनके चाहने वाले देश-दुनिया के हर कोने में हैं.भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित शेर-ओ-सुखन संग्रह में अयोध्या प्रसाद लिखते हैं कि शाद के  यहां  मीर-ओ-दर्द का गुदाज, मोमिन की नुक्तासंजी, गालिब की बुलंद परवाजी और अमीर-ओ-दाग की सलासत सब एक ही वक्त में ऐसी मिली-जुली नजर आती हैं कि अब जमाना मुश्किल से ही कोई दूसरी नजीर पेश कर सकेगा.
 
शाद ने अरबी, फारसी और दीनीयात की शिक्षा योग्य शिक्षकों से प्राप्त की.इस्लाम के साथ अन्य धर्मों का भी अध्यन किया.मानवता उन के अंदर कूट कूट कर भरी हुई थी.शाद अंग्रेजी और हिंदी भाषा भी जानते थे. उनका ननिहाल हरियाणा के पानीपत में था.नानी घर जाने के दौरान उनकी मुलाकात हाली और सर सैयद से भी हुई थी.
 
अल्लामा इकबाल थे मुरीद

उर्दू के बेमिसाल शायरों में से एक अल्लामा इकबाल शाद के मुरीद थे. शाद को 25 अगस्त,1924 को लिखे गए खत इकबाल लिखते हैं, कि अगर अजीमाबाद (पटना) लाहौर (उस वक्त पंजाब) से दूर न होता तो वह खुद शाद अजीमाबादी से दर्स लेने अजीमाबाद यानी पटना आते.
 
अजीमाबाद और उसके आसपास का इलाका, ऐसी सरजमीन रही है जहां फनकार तो पैदा हुए, लेकिन उनकी कद्र उस सरजमीन पर नहीं हुई. शाद अजीमाबादी के साथ भी ऐसा ही हुआ.
 
उन्हें वो इज्जत-ओ-शोहरत वहां नहीं मिली जिसके वो हकदार थे. शायद वो भी यही समझते रहे कि अच्छे शायर और फनकार तो दिल्ली, आगरा,लखनऊ और हैदराबाद जैसे शहरों में पैदा होते हैं.शाद अजीमाबादी को पहचाना तो अल्लामा इकबाल ने पहचाना.
 
रफ्ता-रफ्ता शाद और उनकी शायरी पहचानी गई.उन पर लेख लिखे जाने लगे.उनके फन पर कुछ काम हुआ लेकिन अभी बहुत कुछ काम होना बाकी है.
 
उनकी यादगार पुस्तकें
 
मयखाना इल्हाम” के नाम से उनका दीवान छपा.मर्सिया,रुबायात,मसनवी और नसर की कई किताबें उनकी यादगार हैं.उनकी मशहूर किताबें “फरोग हस्ती” 1857 में,“कुल्लियाते शाद” 1975 में और “रुबाइयात” बेहद लोकप्रिय रहीं.
 
1857 की क्रांति के नायक पटना के “पीर अली”पर लिखी उनकी नावेल भी बहुत मशहुर हुई. शाद अजीमादी को उर्दू शायरी में बहुत ऊंचा मुकाम हासिल है. कई लोग शाद की अदबी हैसियत गालिब के बराबर भी रखते हैं.
 
असरदार शायरी करने वाले इस शायर को कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल इनकी शायरी पढ़ाई और शोध की जाती है.
 
शाद की कुछ मशहूर शायरी

ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम

जो याद न आए भूल के फिर ऐ हम-नफसो वो ख्वाब हैं हम

तमन्नाओं में उलझाया गया हूं

खिलौने दे के बहलाया गया हूं

अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज आया

जिंदगी छोड़ दे पीछा मिरा मैं बाज आया

खामोशी से मुसीबत और संगीन होती है
तड़प ऐ दिल तड़पने से जरा तस्कीन होती है‘  
ले तो लूं सोते में उसके पांव का बोसा मगर
ऐसी बातों से वह काफिर बदगुमां हो जाएगा‘  

उर्दू साहित्यकारों का नजरिया
 
बिहार के उर्दू साहित्यिक जगत का मानना है कि शाद शायरी की दुनिया में बिहार के नायाब गौहर हैं, मगर उन्हें उतना सम्मान नहीं मिला.
 
khursheedखुर्शीद अकबर-ःखुर्शीद अकबर का शुमार बिहार के  नामचीन शायर और आलोचक के रूप में होती है.उनका कहना है कि रासिख अजीमाबादी के बाद शाद बेशक बिहार के दूसरे बड़े शायर हैं.उनकी जितनी पजीराई होनी चाहिए उतनी हुई नहीं.
 
वह तो नवशक्ति निकेतन की मेहरबानी है जो शाद साहब की पुण्यतिथि और जयंती पर उनकी कब्र की साफ-सफाई और कार्यक्रम आयोजित करती है.सरकार जैसे सियासी रहनुमाओं की जयंती और पुण्यतिथि मनाती है शाद के सम्मान में भी राजकीय समारोह होना चाहिए.हालांकि,राजभाषा विभाग अपने स्तर से शाद को याद करता है.इसबार उनकी किताब पर पुरस्कार देने का भी एलान किया है.
 
खुर्शीद अकबर शाद को गालिब के हमपल्ला नहीं मानते.वह कहते हैं कि गालिब-गालिब है.जबकि कलीम उद्दीन अहमद ने उर्दू गजल की रचना में मीर,गालिब के साथ शाद को भी बराबरी पर रखा है.
 
खालिद इबादी-ःखालिद इबादी गम्भीर शायरी करते हैं.बिहार के टॉप पांच शायरों में उनकी गिनती होती है.उनका कहना है कि शाद अजीमाबादी न होते तो शायद इकबाल भी न होते.
 
शाद ने शायरी की पूरी सोच को बदल कर रख दी.आलोचक कलीम उद्दीन अहमद बड़े बड़ों को नहीं मानते मगर उन्होंने भी शाद की शायरी का एतराफ किया है.
 
शाद की दो कुलियात का एडिट कलीम उद्दीन अहमद ने किया.इक़बाल ने शाद इंतेकाल पर ताजीयती नजम लिखी.इबादी कहते हैं कि शाद ने शायरी के मायने बदल दिए.जिंदगी की बुनियादी अहम मसायल पर सवाल खड़े किए.
 
अपने समकालीन शायरों में वह बड़े दर्जे के थे.शायरी की सरहद तीन चीजों से बंधी होती है.अल्लाह,कायनात और इंसान.जब अदब में इस पर  डिस्कस होने लगे तो शायर की गंभीरता,सोच का पता चलता है.शाद को उनके दौर के लोगों ने स्वीकार किया है.
 
razaअहमद रजा हाशमी-अहमद रजा हाशमी बुनियादी तौर पर पत्रकार हैं,लघु कथा कहने-लिखने का शौक है.साहित्यिक पायदान पर कदम बढ़ा रहे हैं.हाशमी कहते हैं कि शाद अजीमाबाद की हस्ती थे.
 
मगर राज्य सरकार इनके नाम पर कोई अवार्ड देती है न कार्यक्रम आयोजित करती है.इनके नाम का पार्क अवैध कब्जा में है,मजार भी खस्ता हालत में है.लोगों ने उसे भी अतिक्रमण कर रखा है.
 
उनके नाम पर मार्ग का एैलान किया गया था,वह शिलापट्ट भी चोरी हो गया.युवा साहित्यकार-पत्रकार ने आवाज द वायस को बताया उनके मजार को विकसित करना चाहिए.
 
उनके नाम पर पुरस्कार की घोषणा और राजकीय समारोह आयोजन हो.शाद अंतरराष्ट्रीय ख्याति के शायर थे. शाद की रचनाओं में मुल्क का दिल  धड़कता है.
 
नवशक्ति निकेतन ने याद रखा

 
हर वर्ष करती है याद.शाद अजीमाबादी की मजार पर लगभग 40 वर्षों से सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था नवशक्ति निकेतन द्वारा जयंती और पुण्यतिथि पर यादों की महफिल सजायी जाती है.
 
सचिव कमल नयन श्रीवास्तव,एहसान अली अशरफ एवं संयोजक रजी अहमद के मुताबिक सात जनवरी 2018 को महापौर सीता साहू ने शाद अजीमाबाद गली के नाम पर इस गली का नामकरण किया,लेकिन आज तक शिलापट्ट भी नहीं लगी.इस अजीम शायर की स्मृति में राज्य सरकार पुरस्कार की घोषणा भी नहीं कर सकी. न शाद एकेडमी स्थापित हुई और न ही स्मारक बना.
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शिया वक्फ बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन इरशाद अली आजाद ने शाद एकेडमी स्थापित करने का एलान किया था.जबकि बिहार सरकार के तत्कालीन सूचना और जनसंपर्क मंत्री नीरज कुमार ने स्मारक बनाने का वादा किया था.
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वार्ड 49 के हमाम पर स्थित शाद पार्क एक दशक बाद भी अवैध कब्जे में है.सम्भवतः इन्हीं स्थितियों को लेकर शाद अजीमाबादी ने कहा था -
 
ये पर्दा पोशाने वतन तुमसे इतना भी न हुआ,
कि एक चादर को  तरसती  रही  तुर्बत मेरी।

नवशक्ति निकेतन  द्वारा हर वर्ष मशहूर शायर व कवि सम्मानित किए जाते हैं. वर्ष 2022 के शाद सम्मान के लिए नामों की घोषणा कर दी गई है. कोरोना के संक्रमण को देखते हुए इस बार कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जा रहा.
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हालात बेहतर होते ही घोषित नामों को सम्मान से नवाजा जाएगा. हिंदी साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए डा. भावना शेखर और उर्दू साहित्य के लिए प्रो. सैयद शाह हसीन अहमद को शाद अजीमाबादी सम्मान 2022 से सम्मानित किया जाएगा.जबकि नीलांशु रंजन, डा. जियाउर रहमान जाफरी एवं डा. आनंद मोहन झा को साहित्य एवं समाजसेवा सम्मान 2022 दिया जाएगा.
 
आज ही के दिन 1927 में पटना सिटी के हाजीगंज स्थित लंगर गली में शाद ने आखिरी सांस ली थी.

जिंदगी की दुश्वारियों से मोहब्बत करने वाला शायर को आवाज द वायस का खिराज ए अकीदत