संस्कृति संगमः यहां होती है उर्दू में रामलीला

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
श्री विजय रामलीला कमेटी
श्री विजय रामलीला कमेटी

 

राकेश चौरासिया / फरीदाबाद

सन सैंतालिस के बंटवारे के दौरान औद्योगिक नगरी फरीदाबाद के हिस्से में उर्दू की रामलीला भी आई. तत्कालीन फ्रंटियर प्रोविंस के हिन्दूजन अपने साथ अपनी संस्कृति भी लाए, जिसमें उर्दू भाषा की रामलीला भी शामिल थी. हालांकि दर्शकों को उर्दू की कम जानकारी के कारण अब इसका लगातार सरलीकरण हो रहा है. सख्त पाए के उर्दू लफ्जों को अब आसान भावों में व्यक्त किया जाने लगा है. लेकिन अब भी जो रामलीला होती है, उसके मूल स्वरूप में उर्दू अपनी पूरी प्रतिष्ठा में विद्यमान है, जिनमें शेरो-शायरी की भरपूर मिकदार है. 

रामलीला भारत का नहीं, बल्कि संसार का विषय है. यह कहां, कब और किस तरह नहीं होती. इंडोनेशिया में उसकी भाषा (बहासा) में होती है, तो अफ्रीका में अफ्रीकी जुबान में. मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम और अब तो पश्चिम के कई मुल्कों में भी रामलीला होने लगी है.

रामलीला जो मूलतः देववाणी संस्कृत में महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित हुई. उसे गुसाईं तुलसीदास जी ने अवधी, भोजपुर, ब्रज, बुंदेली आदि भाषा और बोलियों की खिचड़ी भाषा में श्रीराम चरित मानस के रूप में प्रस्तुत किया.

किंतु श्री रामायण और श्री रामलीला का विकास काल यहीं तक सीमित नहीं रहा. पुरुषों के लिए मर्यादा स्थापित करने वाले श्री राम के चरित्र को आत्मसात करने की प्यास जब अन्य भाषा-भाषियों में जगी, तो इसका अन्य भाषाओं में भाषांतरण और मंचन भी होने लगा.

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रामलीला स्क्रिप्ट  


फ्रंटियर से आई उर्दू रामलीला

कुछ ऐसी ही कहानी ‘उर्दू की रामलीला’ की है. जब 1947 में संयुक्त भारत का दुर्भाग्यपूर्ण विभाजन हुआ, तो वर्तमान पाकिस्तान के नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस के लाखों लोगों ने वर्तमान भारत में पलायन किया.

न्यू टाउन कनेक्शन

फरीदाबाद कभी बल्लभगढ़ तहसील का एक प्रमुख कस्बा हुआ करता था. पंडित नेहरू ने यहां न्यू टाउन बसाया और उनकी आजीविका के लिए उद्योग-धंधे भी लगवाए. नतीजतन यह एक बड़े औद्योगिक शहर में विकसित हो गया.

यहां रच-बस गए फ्रंटियर के लोग अपनी जमीन-जायदाद, मकान-दुकान, धंधे, धन-संपत्ति आदि छोड़कर यहां आए थे. कुछ लोग दस्ती तौर पर जो सामान अपने साथ ला सकते थे, वह भी लाए.

उसी मालो-असबाब में उर्दू रामलीला की स्क्रिप्ट भी आई, जो तब फ्रंटियर के इलाकों में लोकप्रिय थी.

बस अरैबिक की जगह देवनागरी

मेरे मित्र और उर्दू रामलीला के सूत्रधार पंडित विश्वबंधु शर्मा का 4 मई, 2021 की सुबह कोरोनावायरस के संक्रमण से निधन हो गया. सुरसाधक पंडित  विश्वबंधु शर्मा ने बहुत पहले इस संवाददाता को बताया था कि बंटवारे के बाद जब हमारे बुजुर्ग यहां आए, तो वे अपने सार्थ उर्दू रामलीला की स्क्रिप्ट भी लाए थे. वह तब अरैबिक लिपि में थी, क्योंकि तब कोहाट, बन्नू, डेरा इस्माइल खां और डेरा गाजी खां (अब पाकिस्तान में) आदि इलाकों के हमारे बुजुर्गों की जुबान उर्दू ही थी. उन्होंने बताया कि लेकिन फरीदाबाद में हिंदी बोली जाती थी. यहां जब अगली पीढ़ी आई, तो वह हिंदी जानने वाली थी, तो उनकी सुगमता के लिए उस उर्दू रामलीला को अरैबिक के स्थान पर देवनागरी में लिपिबद्ध किया गया.

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पंडित  विश्वबंधु शर्मा 

पंडित  विश्वबंधु शर्मा के अनुसार अरैबिक से देवनागरी में रूपांतरण के बावजूद उर्दू रामलीला की स्क्रिप्ट में बहुत बदलाव नहीं हुआ. बस लिपि का अंतर आ गया और उर्दू के संवाद रिवाजो-रवायत के मुताबिक बदस्तूर जारी रहे.

विजय रामलीला और श्रद्धा रामलीला

फरीदाबाद में उर्दू रामलीला की विजय रामलीला कमेटी द्वारा आयोजित की जाती है और बाद में इसका मंचन सेक्टर 15 की श्रद्धा रामलीला कमेटी द्वारा भी किया जाने लगा.

बाबू राजेंद्र प्रसाद ने दिए 1000

एक मजेदार दृष्टांत यह भी है कि यहां के तत्कालीन बुजुर्गों ने प्रथम राष्ट्रपति और फरीदाबाद विकास बोर्ड के अध्यक्ष बाबू राजेंद्र प्रसाद से कहा कि वे यहां अपनी परंपरा के अनुसार रामलीला करना चाहते हैं. तब बाबू राजेंद्र प्रसाद ने यहां रामलीला के प्रथम आयोजन के लिए 1000 रुपए नकद दिए थे. इस तरह यहां उर्दू रामलीला शुरू हुई थी.

भाषा सरलीकृत हुई

विजय रामलीला कमेटी के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व महापौर अशोक अरोड़ा के पुत्र भरत अरोड़ा ने आवाज-द वॉयस को बताया कि उर्दू रामलीला में अब बहुत तब्दीली आ चुकी है. चरित्रों की संवाद अदायगी में वर्तमान पीढ़ी की उर्दू के बारे में कम जानकारी के कारण बहुत से हिंदी शब्दों को भी स्थान दिया जाने लगा है. अब भाषा काफी सरलीकृत हो गई है.

इनका रहा योगदान

जरूरत के मुताबिक टेकचंद, लखीराम, जेठाराम आदि अमरनाथ आदि बुजुर्गों ने समय-समय पर उर्दू रामलीला का परिष्करण किया.

कालक्रम में उर्दू रामलीला का आज भी जो स्वरूप बचा हुआ है, उसमें हर जगह उर्दू मुस्कराती नजर आती है.

नंद लाल बत्रा

विजय रामलीला कमेटी के अलावा सेक्टर-15की श्रद्धा रामलीला कमेटी भी इस परंपरा के अनुसार संवाद अदायगी में उर्दू लफ्जों का प्रचुरता में इस्तेमाल करती है.

सेक्टर-15की श्रद्धा रामलीला में लक्ष्मण की भूमिका अभिनीत करने वाले अनिल चावला के अनुसार लाहोर से आए नंद लाल बत्रा ने 1976 में इस रामलीला की स्क्रिप्ट लिखी थी.

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रामलीला के एक दृश्य में ग्यारहवें रुद्रावतार हनुमान और जनकसुता मैया सीता का संवाद

रामलीला के शायराना संवाद

मेघनाद की शक्ति से मूर्छित लक्ष्मण को देखकर भावविह्वल श्री राम कहते हैं, “तूने ही, मेरे लिए छोड़ा, भाई, प्यारा वतन, लात मारी ऐश पर, छोड़े सभी साथी, सजन. हाय! जब मैं अब अवध में जाऊंगा, इस भाई बिन, क्या कहूंगा मर गया, लंका में भाई बेकफन.”

अंगद और रावण संवाद के लफ्ज ये हैं, “ये भिखमंगों की बाते हैं, जा मांगो भीख बजारों में, सीता को लेना चाहते हो, तो लेना तलवारों से. हो न अंधे इस कदर, इस मोह के जंजाल में, एक दिन आना पड़ेगा, मौत के भी गाल में. इस रुखे-ताबा पे होगी, मुर्दनी छाई हुई, तेरी शान होगी वक्त की ठोकर से ठुकराई हुई. ”

वनवास की खबर लगते ही जब भरत जंगल पहुंचते हैं, तो उनका सामना क्रोधित भाई लक्ष्मण से होता है, तो लक्ष्मण कुपित होकर कहते हैं, “कुटिल नीति तेरी तुझको यहां तक खेंच लाई है, मुकम्मल राज करने की हवस दिल में समाई है. खबर करके चले आए, तुझे तख्ते अयोध्या दें, अकेले देखे वनवासी, उस जालिम की चढ़ाई है. मिलेगा तख्त के बदले, तुझे तख्ता भरत अब तो, यकीं कर आप ही तूने कजा अपनी बुलाई है. सहाई हों तेरे शंकर, तो शंकर की कसम मुझको, करूंगा सर कलम तेरा, मेरे रघुवर सहाई हैं.”

सीता हरण प्रसंग में दशानन जगद्जगदंबा मैया सीता से कहता है, “कर दिया है बेबस, रघुवीर को तकदीर ने, कर दिया बस में मेरे, तुझको मेरी तदबीर ने, भुलाओ राम का चिंतन, करो सत्कार रावण का, खड़ा है रथ तुम्हारे वास्ते, तैयार रावण का.”

भगवान देवेंद्र देवेंद्र ने दो धनुष शारंग और पिनाक बनाए थे. पिनाक भगवान शंकर के पास था और शारंग भगवान विष्णु के पास है. युद्धेच्छा से विरत भगवान शिव ने धनुष पृथ्वी पर फेंक दिया, जो राजा सीरद्धज जनक के पूर्वज देवरथ को मिला. जिसे प्रक्षालन के दौरान सीता ने एक तरफ खिसका दिया. स्वयंवर में जिस धनुष का प्रभु श्री राम ने भंजन किया. भंजन के घोर गर्जन से अनुमान लगाकर भगवान विष्णु के षष्ठम अवतार भगवान परशुराम अपने रौद्र रूप में पधारे, जिनका भाई लक्ष्मण से भीषण संवाद हुआ.

लक्ष्मण कहते हैं, “कुल्हाड़े ऐसे-ऐसे तो हजारों बार देखे हैं, छुरी के घाव देखे हैं, तंवर के वार के देखे हैं, बड़े योद्धा, बड़े बलवान और खूंखार देखे हैं, जो मरने से नहीं डरते, वही सरदार देखे हैं.”

जवाब में परशुराम कहते हैं कि “तू अगर काल से बढ़कर सितमगर होगा, बजर से सख्त या फौलाद से बदतर होगा, नाहर होगा, शरर होगा या पत्थर होगा, आतिशे कहर या तूफान का मंजर होगा.”