आगराः दो मुल्कों की सरहदों में ऐसी तल्खी आई कि मुरीद ही नहीं आ पाते अपने पीर के उर्स में

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 09-09-2022
आगराः दो मुल्कों की सरहदों में ऐसी तल्खी आई कि मुरीद ही नहीं आ पाते अपने पीर के उर्स में
आगराः दो मुल्कों की सरहदों में ऐसी तल्खी आई कि मुरीद ही नहीं आ पाते अपने पीर के उर्स में

 

आवाज- द वॉयस/ आगरा

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक खास मुकाम रखने वाली खानकाह सरताज-ए-आगरा सैयदना हजरत अमीर अबुल उला का 383वां उर्स रविवार से चल रहा है. सरताज-ए-आगरा के नाम से मशहूर हजरत अमीर अबुल उला के मुरीद सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, ईरान और ईराक में भी हैं. जब भी उर्स होता है इन मुल्कों से मुरीद अपने पीर के उर्स में हाजिरी लगाने के लिए जरूर आते हैं.

मगर पिछले कई सालों से पाकिस्तान से जायरीन पूरी तरह से आना बंद हो गए तो आर्थिक संकट से गुजर रहे अफगानिस्तान से मुरीद नहीं आए. वहीं कोरोना की वजह से बांग्लादेश, ईरान और ईराक से भी किसी भी जायरीन ने इस बार उर्स में शिरकत नहीं की. जबकि कोरोना से पहले यानी 2019 तक इन जायरीन आते रहे हैं.

दरगाह के सज्जादानंशी सज्जादानशीं और मुतवल्ली सैय्यद मोहतशिम अली अबुल उलाई कहते हैं कि पाकिस्तान से पहले अकीदतमंद आते थे लेकिन पिछले कई सालों से कोई भी मुरीद दरगाह पर हाजिरी लगाने के लिए नहीं आया.

पाकिस्तान से वीजा लेने में काफी दिक्कतें हो रही हैं. दूसरा दोनों मुल्क के बीच रिश्ते भी ठीक नहीं. इसलिए जयरीनों का आना पूरी तरह से बंद हो गया है. वहां के जायरीन उर्स को फेसबुक लाइव या यूट्यूब के माध्यम से देख लेते हैं.

नायब सज्जादा सैयद विरासत अली शाह अबुल उलाई ने बताया कि एक दौर था तब पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से बड़ी संख्या में जायरीन उर्स में शिरकत करके दरबार में हाजिरी लगाते थे लेकिन अब पाकिस्तान.हिंदुस्तान के बीच संबंध ठीक न होने की वजह से ये लोग भी नहीं आ पा रहे. उन्हें वीजा मिलने में बड़ी मुश्किल आती है. इसलिए धीर-धीरे अकीदतमंदों का आना लगभग बंद ही हो गया है.

नायब सज्जादा सैयद इशात अली शाह अबुल उलाई ने बताया कि अब सरहदों पर खिंची लकीरों ने अकीदतमंदों के कदमों को भी रोक दिया है. इसमें हम कुछ नहीं कर सकते. दो देशों के बीच का मामला है. हमारी सरकार ने कुछ जानबूझकर ही सख्ती की होगी. इसलिए वीजा की प्रक्रिया को कठिन कर दिया है. 

इस बार तो बांग्लादेश से भी जायरीन नहीं आए, जबकि पिछले कोरोना से पहले की साल तक तो बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की थी. रही बात अफगानिसतान की तो वहां के हालात तो पहले से ही ठीक नहीं चल रहे. वहां लोगों के सामने आर्थिक संकट गहराया हुआ है. ऐसे में वे लोग कैसे शिरकत कर सकते थे.  पाकिस्तान से पिछले एक दशक से लोग नहीं आ रहे हैं. न ही हमने कोई दावतनामा भेजा है.

नायब सज्जादा सैयद कैफ अली शाह अबुल उलाई ने कहा कि जब दो देशों के बीच संबंध ठीक नहीं होते तो नागरिक भी एक दूसरे देश में आना-जान कम कर देते हैं. एक दौर था जब उर्स में सैकड़ों की संख्या में विदेशी आते थे लेकिन अब एक भी नहीं आता. अब तो फेसबुक पेज पर जाकर ही दुनिया के किसी भी कोने में बैठा आदमी उर्स में शिरकत कर लेता है.

संक्षिप्त इतिहास

हज़रत सैयद अमीर अबुल उला अपने दादा और वालिद के साथ मुगल बादशाह की हुकूमत के दौरान समरक़ंद से लाहौर होते हुए दिल्ली के क़स्बा नरेला पहुँचे. वहाँ पर क़याम फ़रमाया. इसी दौरान हज़रत अमीर अबुल उला की पैदाइश हुई. कुछ अरसा वहाँ क़याम करने के बाद फतेहपुर सीकरी पहुँचे. यहां पर बादशाह अकबर से मुलाक़ात हुई.

अकबर की दरख़्वास्त पर आपने यहाँ क़याम करना मंज़ूर किया. आप बहुत छोटे थे तभी वालिद का फतेहपुसीकरी में ही इंतकाल हो गया. उनके जनाजे को दिल्ली ले जाया गया और वहीं मदरसा लाल दरवाज़ा के क़रीब सुपर्द-ए.-क किया गया.

दरगाह के सज्जादानंशी सज्जादानशीं और मुतवल्ली सैय्यद मोहतशिम अली अबुल उलाई

आपके दादा ने आपको नाना ख़्वाजा फ़ैज़ुल मारूफ के सुपुर्द कर दिया. आपके नाना ख़्वाजा फ़ैज़ुल मारूफ़ ख़्वाजा फ़ैज़ी बर्दवान बंगाल में हाकिम मान सिंह की तरफ़ से निज़ामत के उहदे पर तैनात थे. अमीर अबुल के दादा इंतकाल के बाद उनके नाना हजरत अमीर अबुल उलाह को अपने साथ बर्दवान ले गए. वहीं पर उन्होंने तालीम हासिल की. वे अल्लाह की इबादत में मशगूल रहते.  उन्होंने बंगाल से कहीं दूर जाकर इबादत में मशग़ूल होना चाहा लेकिन मुगल शहंशाह-ए-वक़्त अकबर का इंतकाल हो गया.

नूरुद्दीन जहाँगीर 1037 हिजरी 1627 ई. में बदशाह बने तो उन्होंने हजरत अमीर अबुल उला और उनके नाना के खूब चर्चे सुने. सत्ता संभालने के बाद मुगल बादशाह जहांगीर ने एक फ़रमान जारी किया कि सूबेदार, मंसबदार, नाज़िम और उमरा-ए-आगरा शाही दरबार में हाज़िर हों ताकि उनकी ज़हानत, क़ाबिलीयत, वज़ाहत और शख़्सियत को परखा जाए. शाही फ़रमान सुनते ही बर्दवान आगरा पहुँच गए. दरबार में जहांगीर ने दनकी आज़माइश की ख़ातिर नारंगी पे निशाना लगाने को कहा. इस पर हज़रत अमीर अबुल उलाह निशाना लगा दिया.

ख़ुशी में जहांगीर ने एक जाम शराब का आपकी ओर बढ़ाया लेकिन आपने नज़र बचाकर शराब को आस्तीन में डाल दिया. बादशाह ने ये देख लिया और नाराजगी जाहिर की.

फिर जाम दिया और उन्होंने फिर से वैसा ही अमल किया. इस पर जहांगीर ने कहा कि क्या तुम ग़ज़ब-ए-सुल्तानी से नहीं डरते हो. इस पर उन्होंने फ़रमाया मैं ग़ज़ब-ए-खुदा-ओ-ररसूल से डरता हूँ न कि ग़ज़ब-ए-सुलतानी से. जब बात आगे बढ़ी तो अल्लाह के हुक्म से दो शेर हजरत अमीर अबुल उलाह के बराबर से आकर खड़े हो गए.

इस मौजिजा को देखकर जहांगीर ने मांफी मांगी और उन्हें एक हुकूमत की बेहतरी के लिए काम करने की अपील की. इस पर उन्होंने बादशाह जहांगीर को माफ कर दिया. बादशाह ने हुकूमत में इंसाफ को कायम करने की जिम्मेदारी उन्हें दी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया.