हिंदुस्तानी सिनेमा के शुरुआती दौर की गायिका और नायिका खुर्शीद

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 17-09-2022
बीते जमाने की मशहूर अभिनेत्री खुर्शीद
बीते जमाने की मशहूर अभिनेत्री खुर्शीद

 

सिनेमा-विनेमा/ मंजीत ठाकुर

भारतीय सिनेमा के शुरुआती दौर के स्तंभों की बात करें तो उनमें एक चमकता हुआ नाम खुर्शीद बानो का है, जिनको परदे पर सिर्फ खुर्शीद के नाम से जाना जाता है. पिछली सदी में तीस और चालीस के दशक में खुर्शीद की तूती बोलती थी और रंजीत मूवीटोन की 1942 में आई फिल्म भक्त सूरदास में उनके गीतों और अभिनय ने उनको अपार लोकप्रियता दिलाई थी.

खुर्शीद ने बंटवारे के वक्त 1948 में पाकिस्तान जाने से पहले हिंदुस्तान में करीबन 30 फिल्मों में काम किया था. उनकी पहली फिल्म लैला मजनूं थी जो 1931 में रिलीज हुई थी और उनकी सबसे मशहूर फिल्मों में से एक है तानसेन जो 1943 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म में उनकी जोड़ी एक्टर-सिंगर के.एल. सहगल के साथ खूब दमी थी.

असाधारण अभिनय प्रतिभा के साथ एक आकर्षक व्यक्तित्व वाली खुर्शीद एक कुशल गायिका भी थीं. सहगल के साथ एक सामान्य पंजाबी पृष्ठभूमि की वजह से उनकी जोड़ी काफी सहज लगती थी. सहगल भी खुर्शीद के साथ बिल्कुल सहज थे. कोई आश्चर्य नहीं कि सहगल और खुर्शीद को उस दौर की सुपरस्टार जोड़ी के रूप में सराहा गया.

1912के आसपास लाहौर की चुनियां तहसील में जन्मी खुर्शीद ने 1931में कलकत्ता के मदन थिएटर्स के साथ अपने पेशेवर करियर की शुरुआत की. मदन उस समय की अग्रणी भारतीय फिल्म कंपनी थी, जिसके पास पूरे देश में बहुत सारे सिनेमाघर थे.

मूक फिल्मों के दौर में नायिकाएं ज्यादातर एंग्लो-इंडियन समुदाय से आती थीं और ग्लैमरस देशी नामों के तहत फिल्मों में शामिल हुईं. स्क्रीन नाम शेहला के साथ खुर्शीद ने मदन थियेटर्स लैला मजनू में अपनी शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने शकुंतला में सह-अभिनेत्री थीं. चित्रा बकावली, हाठीली दुल्हन, मुफलिस आशिक (1933)उनकी उस दौर की फिल्में थीं. वह शौरी की कमला मूवीटोन प्रोडक्शन राधे श्याम में और फिर स्वर्ग की सीढ़ी में एक नायिका के रूप में भी दिखाई दीं.

दुर्भाग्य से, लाहौर में बनी यह सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप रहीं और कलाकारों और तकनीशियनों को कलकत्ता और बॉम्बे में अपनी किस्मत आजमाने के लिए मजबूर होना पड़ा.

खुर्शीद 1935में बंबई चली गईं और सितारा फिल्म के जरिए उन्होंने अपनी पहचान बनाई. उन्हें इससे पहले सरोज की फिल्म मुराद (1937) में जाने-माने नायक जयराज के साथ देखा गया था, जिन्होंने दावा किया था कि खुर्शीद तीसरी नायिका थीं, जिन्हें उन्होंने स्क्रीन पर चूमा था, अन्य दो हीरोइनों में एक माधुरी (मीना कुमारी की सबसे बड़ी बहन) माई हीरो (1930) में और दूसरी शी की नायिका ज़ेबुनिशा थीं.

1940में उन पर किस्मत मेहरबान हुई और फिल्म होली के साथ वह स्टारडम की ओर बढ़ चलीं, जिसमें उसने मोतीलाल के साथ अभिनय किया. उनके प्रसिद्ध गीत ‘पहले जो मोहब्बत से इन्कार किया होता’ने उन्हें अपने दिनों की अग्रणी गायन अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर दिया.

इस सफलता ने उन्हें भक्त सूरदास में सहगल के साथ अभिनय करने के लिए चुने जाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया. सहगल के साथ युगल गीतों के अलावा, जैसे चांदनी रात और तारे खिले हों और जिस जोगी का जोग लिया, खुर्शीद ने पंछी बनवारा चांद से प्रीत लगाये और मधुर मधुर गा रे मनवा जैसे यादगार एकल गाने भी गाए.

अगले साल 1943 में उन्होंने तानसेन में सहगल के साथ अपनी दूसरी फिल्म में उनकी चमक और गहरी हुई. खुर्शीद को आला सितारे के रूप में पहचान मिली और केवल दो साल बाद अपने गृहनगर लाहौर की खूबसूरत और प्रतिभाशाली कलाकार नूरजहां से आगे निकल गईं. फिल्म के शुरुआती दृश्य में खुर्शीद को उस कमाल के राग, घट घन गोर, गोर, मोर मचाये शोर को गाते हुए दिखाया गया है. अन्य धुनों में प्रसिद्ध युगल गीत अधिक बलपन के साथी और उनके एकल बारसो रे बरसो काले बदरवा शामिल थे.

1947में पाकिस्तान जाने से पहले उन्होंने मोहम्मद रफ़ी के साथ 'आगे बढ़ो' में गाना गाया था. 1946में, उन्होंने कारदार प्रोडक्शंस के एक अभिनेता लाला याकूब से शादी की. 1956में याकूब से अलग होने के बाद उन्होंने बिजनेसमैन इरशाद भैमियान से शादी कर ली. इसके बाद, उन्होंने फिल्मों से संन्यास ले लिया और खुद को समाजसेवा के काम में लगा दिया. कई गायक अभिनेताओं ने उनकी शैली की नकल करने की कोशिश की, लेकिन ज्यादा सफलता नहीं मिली. खुर्शीद का लंबी बीमारी के बाद अप्रैल, 2001में कराची में निधन हो गया.

फिल्मों में और गायन में गुणग्राही आज भी खुर्शीद के प्रशंसक हैं. हिंदुस्तानी फिल्म के इतिहास में खुर्शीद एक मील का पत्थर रही हैं.