कश्मीर के खत्म होते सूफियाना संगीत को फिर से जिंदा करने की कोशिशों में जुटा है ये नौजवान

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 20-10-2022
उमर फारूक भट
उमर फारूक भट

 

 

एहसान फ़ाज़िली/ श्रीनगर

उसकी उम्र तीस से कम ही है लेकिन पिछले 15 साल से यह नौजवान कश्मीर की खत्म होते संगीत की कला को पुनर्जीवित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है.इसके लिए उमर फारूक भट सूफियाना संगीत के सबसे वरिष्ठ कलाकारों से प्रशिक्षण हासिल कर रहे हैं.           

मध्य कश्मीर जिले के बडगाम के गोपालपोरा इलाके के उमर फारूक भट का झुकाव सूफियाना संगीत से था, जिसे वे बचपन से ही ‘कश्मीर का आध्यात्मिक संगीत’कहते हैं. यह क्षेत्र कश्मीर लोककला का केंद्र रहा है, जिसे लोकप्रिय रूप से ‘बंदे पाथेर’और लोक संगीत के रूप में जाना जाता है.

उन्होंने 2011 में पास के सरकारी हायर सेकेंडरी स्कूल, वाथोरा से मैट्रिक की परीक्षा पास की. उसके बाद से ही वह सूफियाना संगीत का प्रशिक्षण ले रहे हैं और 2016 में रेडियो कश्मीर में वह बी ग्रेड के कलाकार के रूप में रजिस्टर हो गए. हालांकि, यह रेडियो कश्मीर अब ऑल इंडिया रेडियो कहलाता है.

2008से शीर्ष ए ग्रेड सूफियाना कलाकारशेख मोहम्मद याकूब से वह सूफियाना संगीत में प्रशिक्षण ले रहे हैं. वह क्रालपोरा, बडगाम में कलीनबाफ मेमोरियल सूफियाना संगीत संस्थान के एक पंजीकृत छात्र भी हैं, और संतूर के एक प्रशिक्षित कलाकार हैं. 

सितार, तबला और गायन. उन्होंने आकाशवाणी, दूरदर्शन, राज्य संगीत कार्यक्रमों और जम्मू-कश्मीर कला, संस्कृति और भाषा अकादमी में कई प्रदर्शन किए हैं.

आवाज- द वॉयस से बात करते हुए वह कहते हैं, "मेरे पास आजीविका का कोई साधन नहीं है, मेरा ध्यान संगीत पर है, सूफियाना संगीत (कश्मीर का), जो कश्मीर का आध्यात्मिक संगीत है."वह कहते हैं, "कश्मीर में अब इस संगीत कला से जुड़े कुछ ही घराने हैं". उनका मानना है कि इसके संरक्षण के लिए सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए.

उन्होंने कहा, "अभी तक, ध्यान केवल हल्के सुगम संगीत या लोक संगीत के मरने पर है", न कि पारंपरिक संतूर, सितार और गायन पर. "हमारा अपना शास्त्रीय संगीत मर चुका है", उन्होंने अफसोस जताया.

लेकिन उमर फारूक ने उम्मीद नहीं खोई है, क्योंकि वह याद करते हैं कि कुछ लड़कियां इस तरह के संगीत से आकर्षित हो रही थीं और गायन के अलावा सितार, संतूर और तबला पर प्रदर्शन कर रही थीं. 

उमर को उस्ताद मोहम्मद याकूब शेख से एक गीत पर नोटेशन मिला है, जो उन्हें लगता है कि कश्मीर की इस संगीत कला को विकसित करने और पुनर्जीवित करने में एक महान कदम था क्योंकि वह इसे "हमारा अपना शास्त्रीय संगीत" कहकर पुकारते हैं.

वह कहते हैं, "मैं इस क्षेत्र में काम जारी रखना चाहता हूं और इसे संरक्षित करने के लिए काम करना चाहता हूं क्योंकि अगर इसे सरकार की ओर से उचित ध्यान नहीं दिया जाएगा तो कला तुरंत गायब हो जाएगी."

वह कहते हैं, "केवल इसे खत्म होने से तभी रोक सकते हैं अगर हम इसके अगली पीढ़ी तक पहुंचा सकें."

सरकार का ध्यान आकर्षित करने के अपने प्रयासों मेंइस युवा कलाकारनेउपायुक्त, बडगाम, एस एफ हमीद से मुलाकात भी की है. जिन्होंने उन्हें हरसंभव मदद और समर्थन का आश्वासन दिया.

हालांकि, इससे पहले, उमर फारूक को तत्कालीन निदेशक, स्कूल शिक्षा, कश्मीर, डॉ शाह फैसल (आईएएस) द्वारा 2015 के आसपास, स्कूल और सरकार के स्तर पर प्रदर्शन का मौका देकर काफी प्रोत्साहित किया गया था. बेशक उनकी कोशिश जारी है और यह रंग भी लाएगी.