संघप्रिया मौर्य और फिरदौस खान
25 जनवरी को राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मनाया जाता है. इस मौके पर जानना दिलचस्प होगा कि भारत में कौन सी जगहें हैं जो इस्लामी परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं. देश और विदेश के लोग शबाब कमाने के लिए वहां जरूर जाते हैं. इस्लामी नजरिए से मक्का, मदीना और यरूशलम, ये तीन शहर अत्यधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं. इन शहरों के मजहबी स्थलों को देखने और धार्मिक कर्मकांड करने में लाखों की संख्या में दुनिया के लोग इकट्ठा होते हैं. मगर मजहबी टूरिज्म के लिहाज से भारत के भी कई शहर किसी से कम महत्व नहीं रखते हैं. कोरोना महामारी के वर्षों को छोड़ दें, तो प्रत्येक साल भारत के इन शहरों में देशी-विदेशी पर्यटकों की भारी भीड़ उमड़ती है.
भारत के इस्लामी लिहाज से महत्व रखने वाले कुछ खास शहरों और वहां स्थित मजहबी स्थलों की निर्माण शैली को न सिर्फ भारत में, बल्कि विदेशों में भी सराहा जाता है. इनमें दिल्ली की जामा मस्जिद, अजमेर शरीफ की ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह, निजामुद्दीन औलिया की दरगाह, फतेहपुर सीकरी और हजरतबल दरगाह उल्लेखनीय हैं. इन महत्वपूर्ण स्थलों पर हर साल लाखों की संख्या में जायरीन जुटते हैं.
दिल्ली में ख्वाजा का लंबा सिलसिला
सूफियाना सिलसिले से जुड़े लोग दिल्ली के महबूबे-इलाही हजरत शेख निजामुद्दीन औलिया और उनके प्यारे मुरीद हजरत अमीर खुसरो साहब की मजार पर भी बड़ी संख्या में जुटते हैं.
जायरीन हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह, हजरत ख्वाजा अब्दुल अजीज बिस्तामी, हजरत ख्वाजा बाकी बिल्लाह, हजरत ख्वाजा अली अहमद एहरारी, हजरत सैयद बदरुद्दीन शाह समरकंदी, हजरत सैयद महमूद बहार, हजरत सैयद सदरुद्दीन शाह, हजरत सैयद आरिफ अली शाह, हजरत सैयद अबुल कासिम सब्जवारी, हजरत सैयद हसन रसूलनुमा, हजरत सैयद शाह आलम, हजरत मौलाना शेख जमाली और कमाली, हजरत मौलाना फखरुद्दीन फख्र-ए-जहां, हजरत मौलाना शेख मजदुद्दीन हाजी, हजरत मौलाना नासेहुद्दीन, हजरत शम्सुल आरफीन तुर्कमान शाह, हजरत शाह तुर्कमान बयाबानी सुहरवरदी, हजरत शाह सरमद शहीद, हजरत शाह सादुल्लाह गुलशन, हजरत शाह वलीउल्लाह, हजरत शाह मुहम्मद आफाक, हजरत शाह साबिर अली चिश्ती साबरी, हजरत शेख सैयद जलालुद्दीन चिश्ती, हजरत शेख कबीरुद्दीन औलिया, हजरत शेख जैनुद्दीन अली, हजरत शेख यूसुफ कत्ताल, हजरत शेख नसीरुद्दीन महमूद चिराग-ए-देहली, खलीफा शेख चिराग-ए-देहली, हजरत शेख नजीबुद्दीन मुतवक्किल चिश्ती, हजरत शेख नूरुद्दीन मलिक यारे-पर्रा, हजरत शेख शम्सुद्दीन औता दुल्लाह, हजरत शेख शहाबुद्दीन आशिकउल्लाह, हजरत शेख जियाउद्दीन रूमी सुहरवरदी, हजरत मखमूद शेख समाउद्दीन सुहरवर्दी, हजरत शेख नजीबुद्दीन फिरदौसी, हजरत शेख रुकनुद्दीन फिरदौसी, हजरत शेख एमादुद्दीन इस्माईल फिरदौसी, हजरत शेख उस्मान सय्याह, हजरत शेख सलाहुद्दीन, हजरत शेख अल्लामा कमालुद्दीन, हजरत शेख बाबा फरीद (पोते), हजरत शेख अलाउद्दीन, हजरत शेख फरीदुद्दीन बुखारी, हजरत शेख अब्दुलहक मुहद्दिस देहलवी, हजरत शेख सुलेमान देहलवी, हजरत शेख मुहम्मद चिश्ती साबरी, हजरत मिर्जा अब्दुल कादिर बेदिल, हजरत शेख नूर मुहम्मद बदायुंनी, हजरत शेख शाह कलीमुल्लाह, हजरत शेख मुहम्मद फरहाद, हजरत शेख मीर मुहम्मदी, हजरत शेख हैदर, हजरत काजी शेख हमीदुद्दीन नागौरी, हजरत अबूबकर तूसी हैदरी, हजरत नासिरुद्दीन महमूद, हजरत इमाम जामिन, हजरत हाफिज सादुल्लाह नक्शबंदी, हजरत शेखुल आलेमीन हाजी अताउल्लाह, हजरत मिर्जा मुल्लाह मजहर जाने-जानां, हजरत मीरानशाह नानू और शाह जलाल, हजरत अब्दुस्सलाम फरीदी, हजरत खुदानुमा, हजरत नूरनुमा और हजरत मखदूम रहमतुल्लाह अलैह की मजारों पर भी जाते हैं. यहां हजरत बीबी हंबल साहिबा, हजरत बीबी फातिमा साम और हजरत बीबी जुलेखा की मजारें भी हैं, जहां महिला जायरीन जाती हैं. दिल्ली में पंजा शरीफ, शाहेमर्दां, कदम शरीफ और चिल्ला गाह पर भी जायरीन हाजिरी लगाते हैं.
यूं तो हर रोज ही मजारों पर जायरीनों की भीड़ होती है, लेकिन जुमेरात के दिन यहां का माहौल कुछ अलग ही होता है. कव्वाल कव्वालियां गाते हैं. दरगाह के अहाते में अगरबत्तियों की भीनी-भीनी महक और उनका आसमान की तरफ उठता सफेद धुआं कितना भला लगता है. जायरीनों के हाथों में फूलों और तबर्रुक होते हैं.
मजारों के चारों तरफ बनी जालियों के पास बैठी औरतें कुरान शरीफ की सूरतें पढ़ रही होती हैं. कोई औरत जालियों में मन्नत के धागे बांध रही होती हैं, तो कोई दुआएं मांग रही होती है.
देश के सात प्रमुख धार्मिक स्थल
अब हम आपको इन इबादतगाहों की जटिल वास्तुकला, ऐतिहासिक महत्व और गौरव की सैर कराते हैं और बताते हैं कि आप यहां कब और कैसे पहुंच सकते हैं..
सबसे पहले बात जामा मस्जिद की. यह भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है और पुरानी दिल्ली में स्थित है. इसका निर्माण बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से तीन गेटवे, चार टावर और दो मीनारों के साथ लगभग 1200 वर्ग मीटर के क्षेत्र में किया गया है.
यह मस्जिद 40 मीटर ऊंची है और मुसलमानों के पवित्र शहर मक्का की तरफ मुंह करके शान से खड़ी है, जिससे पर्यटक पांच किलोमीटर दूर से देख सकते हैं. इसकी नक्काशी इसे और भी खास बनाती है. इस संरचना को मेहराब दीवारों के नीचे, स्तंभों और फर्श पर भव्य वर्क और फूलों के डिजाइन से सजाया गया है.
कब जाएंः
जामा मस्जिद ईद के त्योहार के दिनों में सबसे ज्यादा गुलजार होती है. रमजान के महीनों में जामा मस्जिद और चांदनी चौक की सड़कों पर चहल-पहल और रंगीनियत कई गुना बढ़ जाती हैं. इस दौरान मस्जिद में हर किसी को इफ्तार परोसा जाता है और सड़कों पर स्वादिष्ट स्ट्रीट फूड स्टॉल लगे होते हैं. वैसे दिल्ली जामा मस्जिद देखने के लिए जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च का है.
कैसे पहुंचेः
जामा मस्जिद तक पहुंचने के लिए सबसे अच्छा तरीका मेट्रो ट्रेन और पब्लिक ट्रांसपोर्ट हैं. चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेशन पर उतरकर आप यहां आसानी से पैदल पहुंच सकते हैं.
अन्य विकल्प रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डों से मिलने वाली बसें, टैक्सी, कोच, ऑटो रिक्शा और दिल्ली सरकार की पर्यटक बसें हैं. पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से जामा मस्जिद की दूरी ज्यादा नहीं है. वहां से पैदल यहां तक पहुंचा जा सकता है. आईएसबीटी कश्मीरी गेट से भी है यह महज एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. वहीं कनॉट प्लेस और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी चार किलोमीटर है.
अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह केवल देश ही नहीं, दुनियाभर में प्रसिद्ध है. यहां हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार है. यह भारत के पवित्र स्थानों में से एक है, जहां हर धर्म के लोग चादर-फूल चढ़ाने आते हैं.
सूफी संत के सम्मान और स्मृति में यह दरगाह मुगल बादशाह हुमायूं ने बनवाई थी. यह समृद्ध मुगल शैली के वास्तुकला की अनूठी मिसाल है. दरगाह तक पहुंचने के लिए चांदी के बने कई विशाल दरवाजे से गुजरते हुए इसके आंगन तक पहुंचा जा सकता है. इसके बीचोबीच दरगाह बनी हुई है.
सफेद मार्बल पत्थरों से चारों ओर की सीढ़ियां, दीवारें, जाली और झरोखे बने हैं. गुंबद पर सोने की प्लेटिंग है. कब्र के चारों ओर चांदी की रेलिंग और मार्बल का सुंदर जालीदार पर्दा है. इसके गुंबद में अल्लाह के 99 पवित्र नामों को 33 खूबसूरत छंदों में लिखा गया है.
कब जाएं
अजमेर शरीफ जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च है. इस दौरान दरगाह में उर्स मेला लगता है. अगर आपको भीड़ भाड़ से परहेज नहीं है, तो आप बेहिचक इन महीनों में यहां आ सकते हैं.
कैसे पहुंचे
यह दिल्ली से लगभग 400 किलोमीटर और अजमेर बस अड्डे से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. आप यहां तक ट्रेन से आना चाहते हैं, तो दिल्ली समेत लगभग सभी बड़े शहरों से आपको नियमित ट्रेनें मिल जाएंगी. स्टेशन से आप कैब बुक करा सकते हैं या स्थानीय बस ले सकते हैं.
राजस्थान का अजमेर शहर देश के लगभग सभी प्रसिद्ध शहरों से हवाई मार्ग से जुड़ा है. जयपुर हवाई अड्डा अजमेर शहर का सबसे नजदीकी है.
डल झील के पश्चिमी किनारे पर बसा हजरतबल कश्मीर में सबसे महत्वपूर्ण इस्लामी स्थलों में से एक है. इसकी प्राचीन सफेद संगमरमर की सुंदरता डल झील के पानी में दिखाई देती है. मान्यता है कि दरगाह में इस्लाम के आखिरी नबी पैगंबर मोहम्मद के बाल रखे गए हैं.
यह दरगाह इतनी खूबसूरत है कि इसका दीदार करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. कोई भी कश्मीर घूमने आता है, तो दरगाह की जियारत किए बिना नहीं रहता. इसकी वास्तुकला बेहद खूबसूरत है. इसका निर्माण सफेद संगमरमर से किया गया है. इसके कई दरवाजे हैं जिनसे अंदर जा सकते हैं. दरगाह के आसपास कई खूबसूरत गार्डन हैं, जिसका नजारा यकीनन आपका मन चुराएगा .
कब जाएं
कश्मीर का सुहावना मौसम आपके स्वागत के लिए हमेशा तैयार रहता है. लेकिन अप्रैल-अक्टूबर के महीने यहां आने के लिए बेहतरीन हैं. इन महीनों में बर्फबारी का सामना नहीं करना पड़ेगा.
कैसे पहुंचे
दिल्ली से कश्मीर की इस पवित्र जगह पर जाने की दूरी लगभग 800 किलोमीटर है. यहां के लिए श्रीनगर एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है. श्रीनगर से भारत के अन्य भागों के लिए नियमित उड़ानें संचालित होती हैं. यहां से आप किराए की टैक्सी या सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट के जरिए यहां तक पहुंच सकते हैं.
हाजी अली दरगाह दक्षिणी मुंबई में एक टापू पर स्थित है. अरब सागर से घिरी यह दरगाह मुंबई के सबसे बड़े आकर्षणों में एक है. अलग-अलग मजहब के हजारों लोग रोजाना हाजी अली की मजार पर चादर और फूल चढ़ाने आते हैं.
चट्टानों पर बने हाजी अली दरगाह में मुस्लिम संत पीर हाजी अली शाह बुखारी की कब्र है. यहां मकबरे के अलावा एक शानदार मस्जिद भी है. मस्जिद मुगल वास्तुकला से निर्मित है. मीनारों और गुंबद भी इससे अलंकृत हैं. 4500 स्क्वॉयर मीटर में फैली यह दरगाह जरीदार लाल और हरी चादर से ढकी रहती है. इसके मुख्य हॉल में संगमरमर के स्तंभ बने हुए हैं, जिनके ऊपर कांच पर कलाकारी की गई.
कब जाएं
दरगाह सड़क से लगभग 400 मीटर की दूरी पर एक छोटे से टापू पर बनाई गई है. यहां तक पहुंचने के लिए मुख्य सड़क से एक पुल बना हुआ है. इस पुल की ऊंचाई काफी कम है. इसके दोनों ओर समुद्र है. इसलिए दरगाह तक लो टाइड के समय ही जाया जा सकता है. बाकी समय में यह पुल पानी के नीचे डूबा रहता है. यानी मानसून में आप यहां नहीं जा सकते हैं.
कैसे पहुंचे
ट्रेन के जरिए आप आसानी से मुंबई पहुंच सकते हैं. दिल्ली से मुंबई की दूरी 1412 किलोमीटर है. दरगाह का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन छत्रपति शिवाजी टर्मिनल है. यहां से टैक्सी, ऑटो किराए पर ले सकते हैं या बस के जरिए दरगाह तक पहुंच सकते हैं.
शेख सलीम चिश्ती की दरगाह सफेद संगमरमर की बेहद खूबसूरत नक्काशी का उदाहरण है. आगरा के ताजमहल की तरह, यहां से 35 किलोमीटर दूर इस दरगाह तक है. यह सूफीज्म की नजरिए से भारत के स्थानों में से एक है.
आज भी दरगाह पर जियारत करने और मन्नत का धागा बांधने यहां देश-विदेश से लोग आते हैं. शेख साहब एक प्रसिद्ध सूफी संत रहे हैं. सूफी मतानुसार, हिंदू-मुस्लिम में कोई भेद किए बिना उन्होंने अपनी रहमत लुटाई.
दरगाह में मुख्य समाधि के चारों ओर संगमरमर की जाली है, जिस पर बारीक नक्काशी का काम किया गया है. यहां लोग मन्नत का धागा बांधते हैं. मुख्य कक्ष के दरवाजे पर कुरान की आयतें लिखी है. जिस परिसर में चिश्ती की दरगाह है, उसके उत्तरी भाग में बादशाही दरवाजा, पश्चिमी हिस्से में जामा मस्जिद और सामने यानी दक्षिणी भाग में बुलंद दरवाजा है.
कब जाएं
फतेहपुर सीकरी में फरवरी से अप्रैल और जुलाई से नवंबर के बीच जाया जा सकता है, क्योंकि यहां का मौसम इस दौरान काफी सुहावना होता है. बाकी के महीनों में मौसम सर्द या बहुत गर्म होता है, जोकि परेशानी का कारण बन सकता है.
कैसे पहुंचे
यह शहर आगरा से लगभग 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और दिल्ली से यहां तक आने के लिए आपको लगभग 343 किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी. फतेहपुर सीकरी में हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन नहीं है. लेकिन यह सड़क मार्ग से आसपास के शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. टूरिस्ट वाल्वों, डीलक्स और रोजाना आने वाली उत्तर प्रदेश रोडवेज की बस पकड़कर आप यहां आ सकते हैं. आगरा से फतेहपुर सीकरी का सफर आप किसी स्थानीय बस, टैक्सी या कैब से भी कर सकते हैं.
चार मीनार भारत की प्रमुख ऐतिहासिक और सांस्कृतिक इमारतों में से एक है. यह हैदराबाद में पर्यटन के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. चार मीनार से हैदराबाद की अलग पहचान बनती है. बता दें कि यह न सिर्फ भारतीय इस्लामी वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है, उत्कृष्ट वास्तुशिल्प की बेहतरीन निशानी भी है. इसे कुतुब शाह और भागमती के अटूट प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है.
चार मीनार की खासियत इसकी मीनारें और बालकनी हैं. इसे इसकी सजावट के लिए भी जाना जाता है. इसके सबसे ऊपर के हिस्से में जाना चाहते हैं तो आपको 149 घुमावदार सीढ़ियां चढ़नी होंगी. चार मीनार के अंदर कई भूमिगत सुरंगें भी हैं, जो गोलकोंडा किले को जोड़ती हैं.
कब जाएं
यहां आने के लिए अक्टूबर से मार्च तक का समय अनुकूल है. तब हैदराबाद का मौसम बेहद सुखमय होता है. इस मौसम में आप चार मीनार के अलावा चौमुहल्ला पैलेस, शाहली बंदा, काली कामन पत्थरचट्टा और आसपास स्थित मक्का मस्जिद भी देख सकते हैं. चार मीनार हर दिन सुबह 9 बजे से शाम 5ः30 बजे तक खुलती है.
कैसे पहुंचे
आप दिल्ली से यहां आ रहे हैं, तो आपको ट्रेन या हवाई मार्ग से पहले हैदराबाद पहुंचना होगा. चार मीनार बस स्टेशन से पांच किलोमीटर दूर स्थित है. पंच मोहल्ले में मक्का मस्जिद के पास जान विरार बस स्टॉप चार मीनार का सबसे नजदीकी बस स्टैंड है. इसकी दूरी 800 मीटर है. साइट पर जाने के लिए 10 से 12 मिनट का समय लगेगा. हैदराबाद डेकन रेलवे स्टेशन, करीब चार किलोमीटर दूर चार मीनार का निकटतम रेलवे स्टेशन है.
चार मीनार से राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा लगभग 20 किलोमीटर दूर है. यहां से चार मीनार पहुंचने में लगभग 45 मिनट लगेंगे.
बड़ा इमामबाड़ा शिया समुदाय के लिए महत्वपूर्ण स्थालों में से एक है. यह उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में स्थित है. इसका निर्माण आसिफुद्दौला ने 1784 में कराया था. बड़ा इमामबाड़ा को भारत की चमत्कारी वास्तुकलाओं में गिना जाता है. इसकी पूरी इमारत लखनवी ईटों और चूने के प्लास्टर से बनी है.
बड़ा इमामबाड़ा को भूल-भुलैया के नाम से भी जाना जाता है. अंदर जाने के लिए 1000 से भी ज्यादा छोटे-छोटे रास्तों के जाल हैं, जबकि बाहर निकलने के लिए सिर्फ दो रास्ते. इसमें एक और सुंदर संरचना है, जिसे बावड़ी कहा जाता है. यह पांच मंजिला सीढ़ीदार कुआं है. इस जगह की सबसे रोचक बात यह है कि ये ना तो पूरी तरह से मस्जिद है और ना ही मकबरा. कमरों के निर्माण और दीवारों में इस्लामी प्रभाव स्पष्ट झलकता है.
कब जाएं
आप यहां किसी भी मौसम में जा सकते हैं.
कैसे पहुंचें
दिल्ली से पहले आपको उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुंचना होगा. अगर आप हवाई अड्डे या फिर चार बाग स्टेशन से आ रहे हैं तो यहां के लिए आसानी से पब्लिक ट्रांसपोर्ट मिल जाएगा. चारबाग रेलवे स्टेशन और बड़ा इमामबाड़ा 5.3 किमी दूर स्थित है. दिल्ली से ताज एक्सप्रेस हाईवे और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस के जरिए 554 किमी की दूरी तय करके यहां पहुंचा जा सकते हैं.