सिनेमा-विनेमाः हिंदी फिल्मों की पहली बोलती फिल्म की नायिका थी जुबैदा

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 20-08-2022
हिंदी फिल्मों की अभिनेत्री जुबैदा
हिंदी फिल्मों की अभिनेत्री जुबैदा

 

सिनेमा-विनेमा/ मंजीत ठाकुर

हिंदी फिल्मों के इतिहास में कई दिलचस्प मोड़ आए हैं लेकिन अगर सबसे अहम मील के पत्थरों में पहली टॉकी या सवाक फिल्म को माना जाना चाहिए और उसका हिस्सा रहे लोग बेशक इतिहास बनाने वाले लोग थे.

खासकर अगर हम हिंदी फिल्मो में मुस्लिमों के योगदान की बात करें तो बात काफी पीछे तक जाती है और इसलिए इस योगदान को चिह्नित करने के लिए हमें बात शुरू से शुरू करनी होगी.

1931 में आर्देशिर ईरानी के  निर्देशन में रिलीज हुई फिल्म आलम आरा ने बेशक अपने जमाने में तूफान ला दिया था. अब उस फिल्म की कोई प्रिंट बची नहीं है, लेकिन उस फिल्म की नायिका जुबैदा ने अपने नाम की छाप जो छोड़ी, वह आज भी कायम है.

जुबैदा का पूरा नाम था जुबैदा बेगम धनराजगिर. उनके फिल्मी करियर में देवदास (1937) और सागर मूवीटोन की पहली बोलती फिल्म मेरी जान भी शामिल है.

1911 में गुजरात के सूरत में पैदा हुई जुबैदा महज 12 साल की थीं जब उनकी पहली फिल्म कोहेनूर रिलीज हुई थी. जुबैदा सचिन रियासत के नवाब सिदी इब्राहिम मुहम्मद याकूत खान तीसरे और फातिमा बेगम की बेटी थीं और उनकी दो बहनों सुल्ताना और शहजादी थीं. इन दोनों ने भी फिल्मों में काम किया था और इनकी चर्चा बाद में.

जुबैदा इतनी कम उम्र में फिल्मों में आ गई थीं और वह भी तब जब इस पेशे में आना अच्छे घरों की बेटियों का काम नहीं माना जाता था.

1920 के दशक में जुबैदा बहुत सारी फिल्मों में सुल्ताना के साथ नजर आईं. और उस समय तक सुल्ताना भारतीय सिनेमा के मशहूर चेहरों में से एक बन गई थीं. इन दोनों बहनों की साथ में आई ऐसी ही फिल्म थी ‘कल्याण खजाना’जो 1924 में रिलीज हुई थी. सुल्ताना, जुबैदा की पहली ब्लॉक बस्टर फिल्म वीर अभिमन्यु में भी नमूदार हुई थीं. 1922 में रिलीज हुई इस फिल्म में उन दोनों अभिनेत्री बहनों की मां फातिमा बेगम भी अहम किरदार में थीं.

1925 में ज़ुबैदा की नौ फिल्में रिलीज़ हुईं, उनमें से ‘काला चोर’, ‘देवदासी’और ‘देश का दुश्मन’ अहम रहीं. एक साल बाद उन्होंने अपनी मां की फिल्म ‘बुलबुल-ए-परिस्तान’में अभिनय किया.

1927 में उनकी फिल्में ‘लैला मजनू’, ‘ननद भौजाई’और नवल गांधी का ‘बलिदान’ था और ये सब बॉक्स ऑफिस पर हिट रहीं. रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी पर आधारित 'बलिदान'में सुलोचना देवी, मास्टर विट्ठल और जल खंबाटा ने भी अभिनय किया था. इस फिल्म में बंगाल के कुछ काली मंदिरों में पशु बलि की सदियों पुरानी प्रथा की निंदा की गई थी और इंडियन सिनेमैटोग्राफ कमिटी ने इसकी ‘सच्ची भारतीय फिल्म’ कह कर तारीफ की और कमिटी के यूरोपियन सदस्यों ने स्क्रीनिंग के लिए इसको विदेशों में भेजने की सिफारिश की थी.

जुबैदा ने बहुत सारी मूक फिल्मों में काम किया था और बाद में आलम आरा उनके करियर में मील का पत्थर साबित हुआ. अचानक, उनकी मांग बढ़ गई और उस समय के लिहाज से उन्हें समकालीन अभिनेत्रियों के मुकाबले कई गुना अधिक मेहनताना मिलने लगा.

30 और 40 के दशक की शुरुआत में उन्होंने जल मर्चेंट के साथ एक हिट टीम बनाई और कई सफल ऐतिहासिक मिथकीय फिल्मों में सुभद्रा, उत्तरा और द्रौपदी जैसे पात्रों की भूमिका अदा की. वह एज्रा मीर की ‘जरीना’जैसी फिल्मों में जज्बाती अभिनय करने में भी कामयाबी रहीं, जिसमें वह एक जीवंत, लेकिन गरममिजाज सर्कस वाली लड़की की भूमिका निभा रही थीं. इस फिल्म में उनके चुंबन दृश्यों ने स्क्रीन पर धूम मचा दी और सेंसरशिप पर गर्म बहस छिड़ गई. ज़ुबैदा उन कुछ अभिनेत्रियों में से एक थीं जिन्होंने मूक युग से बोलती फिल्मों का सफर कामयाबी के साथ तय किया.

1934 में उन्होंने महालक्ष्मी मूवीटोन नाम की फिल्म कंपनी बनाई और उनके सहयोगी बने नानुभाई वकील और इस कंपनी ने ‘गुल-ए-सनोबर’और ‘रसिक-ए-लैला’जैसी सुपरहिट फिल्में दीं. वह 1949 तक लगातार हर साल एक या दो फिल्मों में आती रहीं. उनकी आखिरी फिल्म निर्दोष अबला थी.

जुबैदा की शादी हैदराबाद के महाराज नरसिंगिर धनराजगिर ज्ञान बहादुर के साथ हुई थी. उनकी दो संताने हुईं, बेटा हुमायूं धनराजगिर और बेटी धुर्रेश्वर धनराजगिर. धुर्रेश्वर की बेटी ही रिया पिल्लै हुईं जो काफी मशहूर मॉडल रहीं और एक वक्त मे उनका विवाह संजय दत्त के साथ हुआ था.

21 सितंबर 1988 को जुबैदा का निधन हो गया.