दो शताब्दी पुरानी शाही रसोई में गरीब रोजेदारों के लिये तैयार हो रही इफ्तारी

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 14-04-2022
दो शताब्दी पुरानी शाही रसोई में गरीब रोजेदारों के लिये तैयार हो रही इफ्तारी
दो शताब्दी पुरानी शाही रसोई में गरीब रोजेदारों के लिये तैयार हो रही इफ्तारी

 

एम मिश्र / लखनऊ

कोरोना काल में बीते दो साल से अवध की शाही रसोई के ठंडे पड़े चूल्हों में फिर से आंच आ गई है. बादशाही रसोई में गरीब रोजेदारों के लिये इफ्तारी और खाना तैयार हो रहा है. रमजान के महीने में शाही रसोई से गरीबों को मिलने वाली इफ्तारी की 181 साल पुरानी अवध की रिवायत दो साल के ब्रेक के बाद फिर से शुरू हो गई.

अवध की गंगा-जमुनी तहजीब को जिंदा रखने के साथ ही समय-समय पर धार्मिक आयोजन करने के लिए अवध के तीसरे बादशाह मोहम्मद अली शाह ने 1839 में हुसैनाबाद ट्रस्ट की स्थापना की थी.

ट्रस्ट का मकसद नवाबों के वंशजों को वसीका देने के साथ गरीब परिवार की लड़कियों की शादी कराना, बच्चों को वजीफा देना, बेघर लोगों को रहने के लिये किराये पर मकान मुहैया कराने के अलावा इस्लामिक तिथियों में मजलिस व महफिल का आयोजन कराकर तबर्रुक बांटने का इंतजाम करना था.

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हुसैनाबाद ट्रस्ट 181 साल से अपने रवायतों पर चलते हुये मुहर्रम के 10 दिनों तक मजलिसों में तबर्रुक बांटने और रमजान के 29 दिनों तक मस्जिदों और गरीब परिवारों को इफ्तारी बांटने का काम कर रहा है.

मुहर्रम का तबर्रुक और रमजान में इफ्तारी छोटा इमामबाड़ा की शाही रसाई में तैयार किया जाता है. छोटे इमामबाड़े के प्रभारी सैयद कमर अब्बास ने बताया कि रमजान के दिनों में गरीबों के लिये इफ्तारी और खाना तैयार हो रहा है. वहीं मस्जिदों में रोजेदारों के लिये भी शाही रसोई में इफ्तारी तैयार हो रही है. उन्होंने बताया कि इसके लिये इस बार 26 लाख का बजट का प्रस्ताव प्रशासन को भेजा गया.

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कोरोना में पहली बार रुकी 181 साल की परंपरा

कमर अब्बास बताते हैं कि गरीबों को खाना बांटने के लिये 1839 में छोटे इमामबाड़े में अवध के तीसरे बादशाह मोहम्मद अली शाह शाही रसोई शुरू की थी. रमजान के दिनों में इफ्तारी और खाना बांटने के साथ मोहर्रम में तबर्रुक बांटने की परंपरा पहली बार कोरोना महामारी में दो साल तक रुकी थी.

600 गरीबों के लिये बन रही हैं सालन व दाल-रोटी

शाही रसोई में रमजान के पहले रोजे से ईद का चांद दिखने तक 600 गरीब रोजेदारों को अलग-अलग दिन में रोटी, दाल व सालन तैयार किया जाता है. वहीं हुसैनाबाद ट्रस्ट की 13 मस्जिदों में करीब 1550 रोजेदारों के लिये इफ्तारी भी शाही रसोई में ही तैयार की जाती है. छोटे इमामबाड़े के प्रभारी सैयद कमर अब्बास ने बताते हैं कि इफ्तारी में भी मेन्यू तय है, इफ्तार के सामान में मीठी गुझिया, पैटीज, चना ब्रेड मक्खन केला, चिप्स बंद मक्खन, पकौड़ी, ब्रेड पकौड़ा आदि अलग-अलग दिन के लिए तैयार की जाती है.