राकेश चौरासिया
मुसलमानों के लिए पवित्र माहे-रमजान बस शुरू होने में कुछ घंटे शेष है. लोग बाजारों में खरीददारी करके न केवल इफ्तार और सेहरी के लिए वस्तुएं खरीद रहे है, बल्कि मुस्लिम भाईयों में चांद के दीदार के लिए उत्सुकता और कौतुहल है. हालांकि देश में कई स्थानों पर चंद्र दर्शन समितियां ‘रुइयते-हिलाल कमेटीज’ हैं, लेकिन मुस्लिम लोग स्वतंत्र रूप से भी अद्धचंद्र के दर्शन करने का शिद्दत से इंतजार करते हैं. यहां हम बता रहे हैं कि रमजान के मुकद्दस चांद का दीदार कैसे करें.
रमजान के पवित्र महीने के लिए उपवास का पहला दिन इस बात पर निर्भर करता है कि नया अर्धचंद्र पहली बार कब दिखाई देता है. तिथि के आधार पर, आपके पास एक दूरबीन या एक टेलीस्कोप होना चाहिए, क्योंकि अर्द्धचंद्र की पहली झलक प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है. लेकिन भले ही आप इसे एक शाम को ऐसा न कर पाएं, लेकिन अगली रात इसे नग्न आंखों से दिखाई देना चाहिए.
न्यू क्रिसेंट सोसाइटी के निदेशक इमाद अहमद बताते हैं, ‘‘प्रत्येक इस्लामी कैलेंडर महीने की 29 तारीख को, मुसलमान सूर्यास्त के बाद चंद्रमा की तलाश में निकलते हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप 29 तारीख को अर्धचंद्र देख सकते हैं, तो उस महीने में 29 दिन होते हैं. यदि आप नहीं देख सकते हैं, तो इसका मतलब है कि उस महीने में 30 दिन होते हैं. इसीलिए, उदाहरण के लिए, कुछ वर्षों में रमजान में 29 दिन होते हैं और अन्य वर्षों में 30 दिन होते हैं .’’
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भारतीय ज्योतिष परंपरा में सहस्राब्दियों से ज्योतिषज्ञ समय और ऋतुओं को चिह्नित करने के लिए चंद्रमा का उपयोग करता रहा है. यूं तो काल गणना के लिए सूर्य की गति भी मायने रखती हैं, जिससे भारतीय पद्धति के महीने तय होते हैं. किंतु चंद्रमा की गति सूर्य से भी ज्यादा सटीक मानी जाती है. सूर्य एक राशि पर एक माह, तो चंद्रमा एक राशि पर सवा दो दिन गति संचार करता है.
इसी तरह, इस्लामी कैलेंडर ‘चंद्र दृश्य आधारित’ कैलेंडर है. इस्लामिक कैलेंडर में, एक महीने की शुरुआत नए अर्धचंद्र के दर्शन के साथ होती है. यह खगोल विज्ञान को रमजान और ईद सहित इस्लामी घटनाओं और त्योहारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाता है.
हालांकि चंद्रमा को अपने सभी चरणों से गुजरने में 29.5 दिन लगते हैं, लेकिन एक महीने में आधा दिन होना व्यावहारिक नहीं है. इसलिए एक इस्लामी महीने में 29 दिन या 30 दिन हो सकते हैं. प्रत्येक माह में कितने दिन होंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि नया अर्धचंद्र पहली बार कब दिखाई देता है.