भारत में विज्ञान के विकास में मिर्जा इस्माइल का योगदान

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 10-03-2022
सीवी रमन के साथ मिर्जा इस्माइल
सीवी रमन के साथ मिर्जा इस्माइल

 

साकिब सलीम

नोबेल पुरस्कार विजेता सी.वी. रमन ने सर मिर्जा इस्माइल के निधन पर, एक वैज्ञानिक पत्रिका, करंट साइंस के कॉलम में लिखा, "भारतीय वैज्ञानिको को सर मिर्जा इस्माइल के दूरदर्शी ज्ञान का आभारी होना चाहिए."

अकादमिक वैज्ञानिक जर्नल शायद ही कभी राजनीतिक लोगों की श्रद्धांजलि छापते हैं लेकिन तब मिर्जा इस्माइल भी साधारण नहीं थे. शिक्षा और विशेष रूप से विज्ञान के विकास में उनके योगदान की वैज्ञानिक समुदायों में प्रशंसा हुई. मैसूर के महाराजा के सलाहकार के रूप में, फिर उनके प्रधानमंत्री और बाद में जयपुर के महाराजा के प्रधानमंत्री के रूप में भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में उनका योगदान किसी से पीछे नहीं था.

इस्माइल ने मैसूर राज्य में भारतीय विज्ञान संस्थान (आइआइएससी) और अन्य संस्थानों के विकास में गहरी दिलचस्पी ली. उनका मानना ​​​​थाकि"आधुनिकविज्ञानकीप्रगतिसे मानवप्रयासकेहरक्षेत्रमेंमानवजातिकेलिएउच्चतमसंभवलाभहै." 31जुलाई, 1934को, सर्वश्रेष्ठ भारतीय वैज्ञानिकों ने बैंगलोर में आईआईएससी में भारतीय विज्ञान अकादमी (आईएएससी) बनाने के लिए मुलाकात की. इसका उद्देश्य एक राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान और प्रकाशन विभाग की स्थापना करना था. इस्माइल को इस उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करने के लिए कहा गया क्योंकि वह देश के सभी प्रभावशाली राजनेताओं में विज्ञान के सबसे प्रसिद्ध संरक्षक थे. सी.वी. रमन ने बाद में याद किया कि इस्माइल द्वारा सत्र को संबोधित भाषण ने "विद्वानों की उपलब्धियों की सराहना और देश की उन्नति के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान के मूल्य की उनकी समझ" को व्यक्त किया.

इस अवसर पर इस्माइल ने जोर देकर कहा कि आईएएससी का कार्य "चिकित्सा, कृषि, औद्योगिक और वन अनुसंधान विभागों के घनिष्ठ सहयोग को सुरक्षित करना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए उन विभागों के बीच देश की आर्थिक भलाई के लिए इस तरह के सहयोग के महत्व पर बल देना चाहिए.”

अनुसंधान और प्रकाशनों के अलावा, उन्होंने कहा, "अकादमी को एक तरफ विज्ञान और सरकार के बीच और दूसरी तरफ विज्ञान और समाज के बीच एक कड़ी स्थापित करने के अवसरों की तलाश करनी चाहिए".

इसके साथ ही इस्माइल ने वादा किया कि यदि वैज्ञानिक बैंगलोर में आइएएससीका मुख्यालय स्थापित करते हैं, तो "मैसूर सरकार अकादमी को विशेष सुविधाएं देने पर विचार करने के लिए तैयार होगी". रमन ने बाद में लिखा कि इस्माइल की सिफारिश के बाद, मैसूर के महाराजा ने ग्यारह एकड़ जमीन उपहार में दी और आइएएससीऔर करंट साइंस के लिए वार्षिक अनुदान की मंजूरी दी.

1937में, भारतीय विज्ञान का दुर्भाग्य सामने आया जब नोबेल पुरस्कार विजेता सी.वी. रमन के साथ मतभेदों के कारण आईआईएससी के निदेशक पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा. उस समय के वैज्ञानिकों ने रमन का समर्थन किया और मांग की कि मैसूर के प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल को इसे बर्बाद होने से बचाने के लिए आइएएससीका प्रशासन अपने हाथ में लेना चाहिए. रॉयज़ वीकली में एक वैज्ञानिक ने लिखा कि इस्माइल प्रशासित मैसूर शिक्षा और औद्योगीकरण में अन्य भारतीय राज्यों से बहुत आगे था. उन्होंने लिखा, "मैसूर की असली तुलना भारत में नहीं, बल्कि जापान या जर्मनी से हो सकती है. भारतीय विज्ञान संस्थान को मिर्जा इस्माइल की प्रेरणा और भावना की जरूरत है. भारतीय विज्ञान संस्थान को मिर्जा इस्माइल को सौंप दिया जाना चाहिए."

रमन के छात्र जयरामन ने बाद में लिखा कि मिर्जा इस्माइल के कहने पर वाइसराय ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और आइआइएससी के प्रशासन को रमन को प्रोफेसर के रूप में बनाए रखना पड़ा. उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए रमन ने लिखा, "सर मिर्जा इस्माइल दोस्तों में सबसे सच्चे बने रहे ..... जरूरत पड़ने पर (उन्हें) समर्थन और सलाह देने के लिए हमेशा तैयार".

1942में, मिर्जा इस्माइल, मान सिंह द्वितीय की रियासत के प्रधानमंत्री के रूप में जयपुर चले गए. राज्य के मूल निवासी जी.डी बिड़ला ने तब तक व्यापार जगत में अपना नाम बना लिया था. लेकिन शासकों को गांधी और जन आंदोलनों के प्रति उनकी आत्मीयता पसंद नहीं आई. वह शासक और उसके मंत्रियों की आंखों में खटक रहे थे. वर्षों से वह जयपुर राज्य में अपने पैतृक शहर पिलानी में कला, विज्ञान और इलेक्ट्रॉनिक्स के कॉलेज स्थापित करना चाहते थे, लेकिन आधिकारिक अनुमति नहीं मिल सकी. इस्माइल ने जयपुर के प्रधानमंत्री के रूप में अपनी नियुक्ति के बाद तुरंत पिलानी में डिग्री कॉलेज खोलने की अनुमति दे दी. इस प्रकार भविष्य के बिड़ला प्रौद्योगिकी और विज्ञान संस्थान (बिट्स) के लिए मार्ग को साफ कर दिया.

इस्माइल का मानना ​​था कि राष्ट्रीय विकास के लिए विज्ञान आवश्यक है. उन्होंने 1932 की  भारतीय विज्ञान कांग्रेस के दौरान वैज्ञानिकों की एक सभा को बताया;

आप (वैज्ञानिकों), सज्जनों, एक महान खोज में लगे हुए हैं - सत्य की एकचित्त और अटूट खोज, जैसा कि प्रकृति आधा प्रकट करती है और आधा इसे छुपाती है. कभी-कभी यह शोध उद्देश्य में व्यावहारिक होता है. कभी-कभी यह केवल सत्य की तलाश करता है. हमारा युग यह भूलने के लिए उपयुक्त है कि बाद वाला लक्ष्य श्रेष्ठ है; और सबसे श्रेष्ठ है खोज करने का परिश्रम और अनुशासन जो असफलता को भी आत्मा की विजय बना देता है."