-फ़िरदौस ख़ान
हज़रत अली अलैहिस्सलाम की अज़मत बयान से बाहर है. अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आपके बारे में फ़रमाया- “जिसका मैं मौला हूं, उसका अली मौला है.”आप सुन्नी मुसलमानों के चौथे ख़लीफ़ा और शिया मुसलमानों के पहले इमाम हैं. आपके कई लक़ब यानी उपनाम हैं, जिनमें अल मुर्तज़ा यानी चुना हुआ, अमीरुल मोमिनीन यानी वफ़ादार लोगों का सरदार, बाब-ए-मदीनतुल-इल्म यानी इल्म के शहर का दरवाज़ा, अबू तुराब यानी मिट्टी का पिता, असदुल्लाह यानी अल्लाह का शेर, हैदर यानी शेर और वल्द अल काबा यानी काबा का बच्चा आदि शामिल हैं. मौला अली अलैहिस्सलाम को ‘मुश्किल कुशा’ भी कहा जाता है.
हज़रत अली अलैहिस्सलाम का जन्म रजब की 13तारीख़ को काबा शरीफ़ में हुआ था. इस्लामी इतिहास के मुताबिक़ हज़रत फ़ातिमा बिन्ते असद काबा शरीफ़ का तवाफ़ कर रही थीं, तभी अचानक उन्हें प्रसव पीड़ा हुई. काबा शरीफ़ की दीवार ने उन्हें अन्दर आने का रास्ता दिया यानी दीवार में एक बड़ी दरार आ गई.
वे अन्दर दाख़िल हुईं और फिर दीवार पहले जैसी हो गई. उन्होंने एक ख़ूबसूरत बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम अली रखा गया. आप रसूल अल्लाह हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चाचा अबू तालिब के बेटे हैं. आपका निकाह रसूल अल्लाह की प्यारी बेटी हज़रत फ़ातिमा ज़ेहरा सलाम उल्लाह अलैहा से हुआ था.
हज़रत अली अलैहिस्सलाम बेहद नर्म दिल ख़लीफ़ा थे. वे अपनी अवाम पर नहीं, बल्कि उनके दिलों पर हूकूमत किया करते थे. वे अपनी अवाम से अपनी औलाद की तरह मुहब्बत करते थे और उनका ख़्याल रखते थे. आपकी विद्वता, करुणा, दयालुता और बहादुरी के बेशुमार क़िस्से हैं. मनाक़िब-ए-अहले बैत के मुताबिक़ अमीरुल मोमिनीन बिन अबू तालिब मुल्क और अवाम के हालात से बाख़बर थे. वे ख़ास तौर पर यतीमों, बेवाओं, ग़रीबों से ग़ाफ़िल नहीं होते थे.
एक दिन आपने देखा कि एक औरत अपने कंधे पर पानी की मश्क रखे जा रही है. आपने उससे मश्क ली और उसके घर तक पहुंचा दी. फिर उस औरत से उसके हालात के बारे में पूछा, तो उसने कहा कि अली ने मेरे शौहर को किसी सरहद पर भेजा था, जिसका वहां क़त्ल हो गया. मेरे यतीम बच्चे हैं और उनके ख़र्च के लिए भी मेरे पास कुछ नहीं है, इसलिए ख़ुद काम करने पर मजबूर हूं.
अमीरुल मोमिनीन अपने घर लौट आए और पूरी रात परेशानी और बेचैनी में गुज़ारी. जब सुबह हुई तो आपने खाने व पीने का कुछ सामान लिया और उसके घर की तरफ़ रवाना हो गए. उनके साथियों ने कहा कि ये बोझ हमें दे दीजिए, ताकि हम उसके घर तक पहुंचा दें. इस पर आपने फ़रमाया कि क़यामत के दिन मेरा बोझ कौन उठाएगा ? आप उस औरत के घर पहुंचे और दरवाज़े पर दस्तक दी. औरत ने पूछा कि कौन है?
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि मैं वही बन्दा हूं, जिसने कल तुम्हारी पानी की मश्क तुम्हारे घर तक पहुंचाई थी. दरवाज़ा खोलो, मैं बच्चों के लिए खाने व पीने का सामान लाया हूं.औरत ने कहा कि अल्लाह तुमसे ख़ुश हो और मेरे और अली के दरमियान फ़ैसला करे.
हज़रत अली अलैहिस्सलाम घर में दाख़िल हुए और फ़रमाया कि मैं तुम्हारी मदद करके सवाबे इलाही हासिल करना चाहता हूं, इसलिए रोटी बनाने और बच्चों को बहलाने में से एक काम मेरे सुपुर्द कर दो.औरत ने कहा कि मैं रोटियां बना सकती हूं, लिहाज़ा आप बच्चों को बहलाएं. औरत ने रोटियां बनानी शुरू कीं और हज़रत अली अलैहिस्सलाम गोश्त और क़ौरमा बच्चों को खिलाने लगे. जब बच्चे लुक़मा खाते तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम बच्चों से फ़रमाते कि मेरे बेटो ! अली की वजह से तुम पर जो मुसीबत आन पड़ी है, उसके लिए उन्हें माफ़ कर देना.
जब रोटियां पक चुकीं, तो उस औरत ने कहा कि ऐ बन्दा-ए-ख़ुदा ! तन्नूर रौशन करो. हज़रत अली अलैहिस्सलाम तन्नूर की तरफ़ गए और उसे रौशन किया. तन्नूर से शोले निकलने लगे, तो आप अपने चेहरे को उसके नज़दीक ले गए, ताकि आंच चेहरे तक पहुंचे. आप फ़रमाने लगे कि ऐ अली! बेवा और यतीम बच्चों के हक़ से ग़ाफ़िल होने की सज़ा ये आग की आंच है.
तभी पड़ौस की एक औरत आई और उसने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को पहचान लिया और बच्चों की माँ से कहा कि लानत हो तुझ पर, ये अमीरुल मोमिनीन हैं.ये सुनकर वह औरत आपकी तरफ़ दौड़ी और मुसलसल कहने लगी कि या अमीरुल मोमिनीन! मैं आपसे बहुत शर्मिंदा हूं.
अमीरुल मोमिनीन इब्ने अबू तालिब ने फ़रमाया कि ऐ कनीज़-ए-ख़ुदा ! मैं तुझसे ज़्यादा शर्मिंदा हूं कि तेरे हक़ में कोताही हुई.मौला अली अलैहिस्सलाम ने तमाम आलम को मानवता, प्रेम, भाईचारे और सद्भावना का संदेश दिया है. अगर लोग आपके बताए गये रास्ते पर चलने लगें, तो दुनिया से दुख, तकलीफ़ें और परेशानियां ख़त्म हो जाएं.
मौला अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया-
अपने ख़्यालों की हिफ़ाज़त करो, क्योंकि ये तुम्हारे अल्फ़ाज़ बन जाते हैं.
अपने अल्फ़ाज़ की हिफ़ाज़त करो, क्योंकि ये तुम्हारे आमाल बन जाते हैं.
अपने आमाल की हिफ़ाज़त करो, क्योंकि ये तुम्हारा किरदार बन जाते हैं.
अपने किरदार की हिफ़ाज़त करो, क्योंकि तुम्हारा किरदार तुम्हारी पहचान बन जाता है.
कवि बहार चिश्ती नियामतपुरी की एक मनक़बत
हरम में विलादत, हरम को बताने, बुताने-हरम बुत-शिकन आ गये हैं
रिसालत को तर्ज़े-वलायत में करने, वसी-ए-शहे-ज़ुलमिनन आ गये हैं
मुबारक हो मन कुन्तो मौला की अज़मत, अलीयुन वलीउल्लाह की ख़ास रहमत
हुआ दीने-रब्बुल उला जिन पे कामिल, वो काबे में जल्व:फ़िगन आ गये हैं
बदर ओहदो-ख़ंदक़ हो या जंगे-ख़ैबर, तबूको-जमल या कि हो जंगे-सिफ़्फ़ीं
जिधर देखते थे अदू उस तरफ़ से, ये था शोर ख़ैबर शिकन आ गये हैं
सख़ावत शुजाअत इताअत इबादत, क़नाअत इमामत वलायत का ज़ेवर
शहे-मर्दाँ शेरे-ख़ुदा शेरे-यज़दाँ, पहन नूर का पैरहन आ गये हैं
जिगर गोश-ए हज़रत इमराँ के दिलबर, यही फ़ातिमा बिन्त असअद के हैदर
हबीबे-ख़ुदा की हैं दुख़तर के शौहर, पिदर शह हुसैनो-हसन आ गये हैं
रज़ा सब्र शुक्रो-महब्बत के पैकर, वफ़ा और इल्मो-हुनर फ़न के महवर
जो बादे-रिसालत ज़माने के रहबर, अख़ी-ए शहे-दो ज़मन आ गये हैं
पढ़ो खोलकर आँखें क़ुराआँ की आयत, यहूदो-नसारा का वफ़्द आया यसरब
मुकम्मल मुबाहिल को दी फ़त्हो-नुसरत, मक़ाबिल हसीं पंजतन आ गये हैं
फ़ज़ाइल में अफ़ज़ल, दलाइल में अक्मल, सलोनी के दावे में हैं जो मुकम्मल
ब सीरत मुहम्मद शबीहे-अली में, किताबे-रुसुल के मतन आ गये हैं
बहार आएगी ऐ "बहार" अब वहाँ तक, चलेगी ख़ुदा की ये दुनिया जहाँ तक
गुले-नूर खिलते रहेंगे ज़मीं पर, इमामीने-हक़ के चमन आ गये हैं
(लेखिका आलिमा हैं. उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है)