गुलाम सरवर जयंती:जिनके दम से है बिहार में उर्दू रोशन

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 10-01-2022
गुलाम सरवर जयंती
गुलाम सरवर जयंती

 

सेराज अनवर / पटना
 
गुलाम सरवर जैसी कभी-कभी ही पैदा होती हैं.एक ऐसा नाम जो बेबाक पत्रकार था,ओजस्वी वक्ता था, मुजाहिद उर्दू था और निडर सियासतदां.इतनी सारी खूबियां एक साथ कम ही एक व्यक्ति में देखने को मिलती हैं. इसलिए लोग उन्हें शेर ए बिहार भी कहते थे.एक ऐसी हस्ती जिनकी लेखनी से इंदिरा गांधी भी असमंजस में पड़ जाती थीं.

अपनी बगावती पत्रकारिता के कारण गुलाम सरवर को कई बार जेल जाना पड़ा.कहते हैं कि उनके संपादकीय नेतृत्व में निकलने वाला उर्दू रोजनामा ‘संगम’ को पढ़े बेगैर लोग सुबह की चाय नहीं पीते थे.
 
संगम अखबार की एक जमाने में तूती बोलती थी.जेपी आंदोलन से लेकर उर्दू तहरीक तक गुलाम सरवर ने मुसलमानों को नेतृत्व प्रदान अपनी एक अलग पहचान बनाई.उन्होंने सत्ता के साथ कभी समझौता नहीं किया.
 
उर्दू तहरीक के अंतिम दिनों में जब अंजुमन ए तरक्की उर्दू में विभाजन की नौबत आई तो प्रो.अब्दुल मोगनी सरकार के साथ हो गए, पर गुलाम सरवर ने आवाम का साथ दिया.आज पूरा बिहार उस हस्ती की जयंती पर उर्दू दिवस के बतौर समारोह आयोजित कर उन्हें याद कर रहा है.
 
उर्दू तहरीक के झंडाबरदार

उर्दू को बिहार में द्वितीय भाषा का दर्जा दिलाने में मरहूम गुलाम सरवर की अहम भूमिका रही.बेताब सिद्दीकी,शाह मुश्ताक,तकी रहीम के साथ गुलाम सरवर भी उर्दू तहरीक के झंडाबरदारों में थे.
 
उन्होंने उर्दू के संदर्भ में बहुत अच्छा काम किया और इस भाषा को आंदोलन में बदल दिया. उन्होंने विभिन्न स्थानों पर उर्दू के लिए बैठकें और सम्मेलन किए.जिसकी गूंज न सिर्फ बिहार बल्कि उत्तरप्रदेश में भी सुनाई पड़ी.
 
70 के  दशक में उर्दू चुनावी मुद्दा बन गई. उन्होंने इसे वोट बैंक से भी जोड़ा .बिहार में उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा बनाने के लिए आंदोलन शुरू किया. इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
 
1967 के चुनाव में उन्होंने नारा दिया , जो बिहार में उर्दू को दूसरी सरकारी जबान बनाएगा,उसी को मुसलमान वोट जाएगा.बिहार भारत का पहला राज्य था जहां उर्दू को दूसरी सरकारी जुबान का दर्जा प्राप्त हुआ.
ghulam
बिहार में उर्दू आंदोलन को गुलाम सरवर ने दिशा दी. आज बिहार में उर्दू को द्वितीय भाषा का जो दर्जा प्राप्त है, वो उनके संघर्षों का परिणाम है.गुलाम सरवर अंजुमन ए तरक्की उर्दू से भी जुड़े.
 
प्रो.अब्दुल मोगनी भी अंजुमन से जुड़े थे.प्रो मोगनी अंजुमन को सरकारी संस्था बनाना चाहते थे.गुलाम सरवर इसे आवामी रखना चाहते थे.अंजुमन विभाजित हो गई.
 
प्रो.अब्दुल मोगनी का अंजुमन सरकारी हो गया. गुलाम सरवर आवाम के साथ चले गए.अंजुमन आज सरकारी है,सरकार उसे चलाने के लिए ग्रांट देती है.गुलाम सरवर के साथ ही बिहार में उर्दू तहरीक मर गई.
 
उर्दू को दूसरी भाषा का दर्जा दिए जाने के तीन दशक बाद भी उर्दू को उसका सही स्थान नहीं मिला है.अंजुमन तरक्की उर्दू सरकार का हथकंडा बन कर रह गया है.
 
उर्दू रोजनामा संगम की धार

मरहूम गुलाम सरवर ने 1952 में रोजनामा उर्दू “संगम” निकाला.यह अखबार नहीं तलवार था.संगम को उन्होंने आंदोलन का रूप दिया. इसमें उनके द्वारा लिखे गए संपादकीय को लोग उस जमाने में पढ़े बगैर सुबह की चाय नहीं पीते थे.
 
अखबार की कापी ना मिले तो लोग ब्लैक में खरीदते थे.1980 के दशक तक संगम अखबार की तूती बोलती थी. इस अखबार का प्रकाशन आज भी होता है. गुलाम सरवर ने कांग्रेस विरोधी राजनीति की.
 
अनेक दफा जेल गए.कांग्रेसियों ने उन्हें खरीदने की कोशिश की, पर उन्होंने मुफलिसी में जिंदगी गुजारना मंजूर किया. अपनी कलम को किसी कीमत पर बिकने नहीं दिया.
 
उनकी तहरीर से इंदिरा गांधी परेशान रहती थी.गुलाम सरवर अपनी तहरीरों से कांग्रेस की नीतियों को बेनकाब करते रहते थे.गुलाम सरवर मुस्लिम लीगी माने जाते थे.
 
वरिष्ठ पत्रकार रेहान गनी बताते हैं  कि गुलाम सरवर ने पत्रकारिता,सियासत व समाजी मामलों से संबंधित बिहार में जो लकीर खींची,उससे बड़ी लाइन नहीं खींची जा सकी.
 
प्रो इसराइल रजा की शब्दों में  गुलाम सरवर ने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया.उनका इस्तीफा हर वक्त शेरवानी की जेब में रहता था.युवा पत्रकार अनवारुल होदा कहते हैं कि  गुलाम सरवर बिहार के प्रमुख उर्दू पत्रकारों में से थे. उन्होंने हमेशा अपनी कलम को तलवार की तरह इस्तेमाल किया. उनके लेखन की शैली जोश और साहस से भरी थी.
ghulam
मदरसा एवं संस्कृत बोर्ड का गठन

सरवर के आह्वान पर मुस्लिम समाज कांग्रेस के खिलाफ गोलबंद हो गया. कांग्रेस सत्ता से बाहर चली गई. महामाया बाबू सीएम बने. शपथ के पहले भोला बाबू, बीपी मंडल और कर्पूरी ठाकुर सरवर साहब को दानापुर स्थित आवास पर मंत्री पद के शपथ का न्योता दिया.
 
उन्होंने अपने समाजवादी साथियों को यह कहकर विदा किया कि,मुझे पत्रकार ही रहने दीजिए. वे जेपी आंदोलन में भी पूरी शिद्दत के साथ लगे रहे. मुसलमानों को बताया कि यह आंदोलन दिल्ली की सत्ता के खिलाफ है.
 
1977 में जनता पार्टी की सरकार आई. कर्पूरी ठाकुर  के मुख्यमंत्रित्व काल में गुलाम सरवर 1977 से 79 तक बिहार के शिक्षा मंत्री बने.कर्पूरी ठाकुर के मंत्रालय में बतौर शिक्षा मंत्री गुलाम सरवर ने बिहार में मदरसा व संस्कृत बोर्ड का गठन किया.
 
सरवर बुनियादी शिक्षा पर बहुत जोर देते थे. कर्पूरी ठाकुर सरकार में शिक्षा मंत्री की हैसियत से उन्होंने संस्कृत स्कूल एवं मदरसा दोनों को सरकारी ग्रांट दिलाने की कानूनी व्यवस्था की.
 
गुलाम सरवर 1977 में सिवान विधानसभा सीट से पहली बार निर्वाचित हुए.शिक्षा मंत्री के साथ वकाफ और खेलकूद के भी मंत्री बनाए गए.फिर दरभंगा के केवटी से निर्वाचित होने के बाद बिहार विधानसभा के स्पीकर बने.कृषि मंत्रालय भी इनके जिम्मे रहा.
 
10 जनवरी,1926 को बेगूसराय में जन्म लेने वाले गुलाम सरवर का निधन कृषि मंत्री के पद पर रहते हुए 17 अक्टूबर,2004 को हुआ.अपने पिता शेख अब्दुल हमीद जो डिप्टी कलक्टर के पद पर पदस्थापित थे उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्होंने आईएएस की जगह पर पत्रकारिता की राह चुनी. 
ghulam
उर्दू काउंसिल ने किया याद

गुलाम सरवर की 96 वीं जयंती पर बिहार उर्दू अकादमी में उर्दू काउंसिल हिंद की ओर से रविवार को गुलाम सरवर स्मृति समारोह का आयोजन किया गया.इस मौके पर पूर्व मंत्री शमायल नबी ने कहा कि गुलाम सरवर अपने आप में एक संगठन थे.
 
उर्दू आंदोलन में उनकी भूमिका मौलिक और बहुत महत्वपूर्ण है. उर्दू की सेवा के लिए समर्पित उनका व्यक्तित्व बहुत ही सरल था. उनका जीवन एक उदाहरण और आदर्श है.
 
उनके जैसे उच्चस्तरीय और क्रांतिकारी नेता की आवश्यकता हमेशा महसूस की जाएगी. आज नई पीढ़ी को उनसे बहुत कुछ सीखने की जरूरत है.बिहार विधान परिषद के सदस्य प्रो. गुलाम गौस ने गुलाम सरवर के जीवन को आदर्श बताया.
 
उन्होंने कहा कि आज उसी तरह उर्दू आंदोलन चलाने की जरूरत है. ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहाद ए मुस्लिमीन के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल इमान ने कहा कि गुलाम सरवर की शैली में एक आंदोलन शुरू करने की फिर से जरूरत है.
 
बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य राष्ट्रीय नेता डॉ. तनवीर हसन ने कहा कि वे गुलाम सरवर के आंदोलन के अंतिम पंक्ति के सिपाही हैं.बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य इम्तियाज अहमद करीमी ने गुलाम सरवर के संदर्भ में उनके जीवन की कुछ रचनात्मक यादें साझा कीं.
 
उर्दू काउंसिल के महासचिव असलम जावेदां ने कहा कि यह समारोह उन्हें खिराज ए अकीदत पेश करने और उनकी खिदमात का एतराफ करने के लिए किया गया है.गौरतलब है कि आज सरकारी सतह पर भी गुलाम सरवर को खिराज ए अकीदत पेश किया जा रहा है.
 
उर्दू और पत्रकारिता को आंदोलन का रूप देने वाले मुजाहिद ए उर्दू और बेबाक सहाफी को आवाज द वायस का सलाम