क्रीमिया के तातार समुदाय की ईद और टूटती उम्मीदें

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 01-05-2022
 क्रीमिया के तातार समुदाय की ईद और टूटती उम्मीदें
क्रीमिया के तातार समुदाय की ईद और टूटती उम्मीदें

 

इतिहास के झरोखे से

हरजिंदर
 
दुनिया भर के मुसलमानों के लिए ही नहीं उनके साथ और उनके आस-पास रहने वालों के लिए ईद खुशी का त्योहार होती है. लेकिन लगता है कि क्रीमिया के तातार मुसलमानों की यह ईद भी तरह-तरह की आशंकाओं के बीच ही बीतेगी. क्रीमियन तातार पूर्वी यूरोप का एक ऐसा समुदाय है, जो पिछली कईं सदी से अपनी सर-जमीन पर सर उठा कर जी सकने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उस जमीन पर जहां कभी उनका राज हुआ करता था.

तातार की उत्पत्ति के बारे में माना जाता है कि यह एक तुर्की का कबीला था जो चंगेज खान के शासन के साथ पूर्वी यूरोप के अलग-अलग हिस्सों में जा बसा. 14वीं सदी के आस-पस इस कबीले के लोगों ने इस्लाम अपना लिया.
 
इसके साथ वे स्थानीय संस्कृति के साथ भी जुड़े रहे. हर जगह के तातार अपनी स्थानीय संस्कृति से जुड़े थे, इसलिए अब हमें पूरे पूर्वी यूरोप में कईं तरह के तातर समुदाय मिलते हैं जिनमें से ज्यादातर दस्तकार और किसान हैं.
 
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इनमें सबसे बड़ा समुदाय है वोल्गा तातार का. ये रूस में वोल्गा नदी की घाटी में बसे थे. नया या पुराना रूसी साहित्य पढ़ें तो उसमें जगह-जगह तातार लोगों को जिक्र आता है. वहां उसका अर्थ वोल्गा तातार ही होता है. इसी तरह साईबेरिया में बस गए साईबेरियन तातार भी हैं. लेकिन तातार लोगों का दूसरा बड़ा समुदाय क्रीमियन तातार का ही है.
 
बाद के दौर में वोल्गा और साईबेरिया में रहने वाले तातार लोगों को उतनी खराब स्थितियों से कभी नहीं गुजरना पड़ा जितनी खराब स्थितियों से क्रीमिया में रहने वाले तातार लोगों को गुजरना पड़ा. जब क्रीमिया को रूसी साम्राज्य का हिस्सा बनाया गया तो तभी से वहां के तातार लोग संकट में रहे. उन्हें लगातार प्रताड़ित किया गया.
 
लेकिन उनकी सबसे बड़ी प्रताड़ना तब शुरू हुई जब दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हुआ. तब तातार लोगों पर यह आरोप लगा कि उन्होंने युद्ध में हिटलर की सेना का साथ दिया था. यह ठीक है कि क्रीमियन तातर समुदाय के कुछ एलीट लोगों ने नाजी फौज की मदद की थी लेकिन आम तातार दस्तकार या किसान की इसमें क्या भूमिका हो सकती थी.
 
लेकिन विश्वयुद्ध के बाद सबसे ज्यादा जुल्म उन्हीं पर हुआ. उनकी जमीने, उनके घर सब जब्त कर लिए गए और उन्हें यूक्र्रेन विस्थापित कर दिया गया.यूक्रेन की पराई धरती पर उनका जीवन बहुत खराब था.
 
दशकों तक उनकी आंखों में एक ही सपना था कि वे एक दिन क्रीमिया लौटेंगे और फिर वहीं पर ईद मनाएंगे. जब सोवियत व्यवस्था बिखरी और यूक्रेन आजाद हुआ तो उन्हें क्रीमिया लौटने का मौका भी मिल गया.
 
लेकिन क्रीमिया तब तक काफी बदल चुका था और वहां भी उनके लिए जीवन बहुत आसान नहीं था. एक तो उनकी जमीने और उनके घर उन्हें वापस नहीं दिए गए, हालांकि वे लंबे समय तक इसकी मांग करते रहे.
 
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दूसरे क्रीमिया में तब तक बड़ी संख्या में रूसी लोग बसा दिए गए थे. क्रीमिया की संस्कृति भी बदल चुकी थी.उसका आर्थिक तंत्र भी. लेकिन वे मेहनतकश थे, इसलिए विपरीत स्थितियों में भी अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करते रहे. लेकिन रूसी लोगों की बहुसंख्या और उनकी दबदबे के बीच वे दूसरे दर्जे के नागरिक बनने को मजबूर थे.
 
उनके हालात का मसला कईं बार अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठा, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला.
 
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इसके बाद मार्च 2014 में वह समय आया जब रूस ने एक बार फिर क्रीमिया पर कब्जा जमा लिया. क्रीमिया के तातार लोगों की रही सही उम्मीद भी खत्म होने लगी.  हाल में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला बोला तो ये तातार और भी दहशत में हैं.
 
यह लगभग तय हो चुका है कि यूक्रेन हारे या जीते, क्रीमिया अब उसे वापस नहीं मिलने वाला. वहां रूसी मूल के लोग बहुमत में हैं. जो किसी भी स्थिति में तातार लोगों की परेशानी का कारण बने रहेंगे.
 
समाप्त
 
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं