इतिहास के झरोखे से : फिर अपने पांवों पर खड़ा हुआ यूक्रेन

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 23-04-2022
 फिर अपने पांवों पर खड़ा हुआ यूक्रेन
फिर अपने पांवों पर खड़ा हुआ यूक्रेन

 

इतिहास के झरोखे से

हरजिंदर
 
दूसरे विश्वयुद्ध और भीषण अकाल की मार से निकले यूक्रेन केा फिर से अपने पांव पर खड़ा करने की चुनौती काफी बड़ी थी. सोवियत व्यवस्था ने यह काम बड़ी तेजी से किया. रूस को यह समझ में आ गया था कि अगर यूक्रेन सुरक्षित नहीं है तो वह भी खतरे से बाहर नहीं रहेगा. यही वह दौर था जब यूक्रेन का बहुत तेजी से औद्योगीकरण शुरू हुआ. जल्द ही यूक्रेन की विकास दर विश्वयुद्ध के पहले की विकास दर से भी आगे निकल गई.

सोवियत शासकों को यह भी समझ में आ गया था कि संघ की इतनी बड़ी आबादी का पेट भरने की क्षमता सिर्फ यूक्रेन की ही है,लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि सब कुछ अच्छा ही हो रहा था.
 
सोवियत व्यवस्था आखिर में एक तानाशाह निजाम थी. विरोधियों, असंतुष्टों और जिन पर भी थोड़ा सा शक होता था उन्हें प्रताड़ित करने के उसके अपने तौर-तरीके थे. वहां ऐसे कुछ लोग थे जिन्होंने विश्वयुद्ध के दौरान जर्मन सेना का साथ दिया था.
 
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कुछ ने तो सिर्फ इसलिए ही जर्मन सेना का साथ दिया था कि वह शुरू के दिनों में लगातार जीतती दिख रही थी. ऐसे भी लोग थे जिनसे जर्मन सेना ने जबरन काम लिए थे. फिर बड़ी तादात में ऐसे लोग थे जो पक्के राष्ट्रवादी थे और इसलिए जर्मन व रूस दोनों का ही विरोध करते थे.
 
इसीलिए वे सोवियत व्यवस्था के भी विरोधी थे. कुछ राष्ट्रवादी सैन्य समूह भी थे जो हमें यूके्रन के नक्शे पर 1950 के दशक तक सक्रिय दिखाई देते हैं. इसके अलावा वहां रहने वाले बहुत से लोग जो जर्मन या पोलिश मूल के थे.
 
यहूदी थे जो जर्मन सेना के निशाने पर थे लेकिन सोवियत प्रशासन भी उन्हें विश्वसनीय नहीं मानता था. कज़ाक थे, तातार थे. ये सारे लोग विभिन्न कारणों से शक के दायरे में थे. ऐसे ज्यादातर लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें या तो श्रम शिविरों में भेजा गया या फिर कुछ को तो बाकायदा यातना शिविरों में भेज दिया गया.
 
बहुत से लोगों को तो काले पानी की सजा देते हुए साईबेरिया रवाना कर दिया गया. ऐसे लोगों की बीसियों हजार में थी। स्टालिन का प्रशासन तो इन्हीं अत्याचारों के लिए इतिहास में याद किया जाता है.
 
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इसलिए स्टालिन के बाद जब ख्रुशचेव ने सोवियत सत्ता संभाली तो यूक्रेन के लोगों ने कुछ राहत की सांस ली. ख्रुश्चेव मास्कों में कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी के सचिव बनाए जाने से पहले तक यूक्रेन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम सचिव थे.
 
 उन्होंने लंबे समय तक यूक्रेन में काम किया था इस लिहाज से वे यूक्रेन को अच्छी तरह जानते और समझते थे. इतना ही नहीं वे वहां पार्टी के लोगों और यहां तक कि विरोधियों से भी अच्छी तरह  से वाकिफ थे.
 
वैसे भी स्टालिन की तुलना में ख्रुश्चेव को उदार ही माना जाता है. अपने शासनकाल के शुरुआती दिनों में उन्होंने विकेंद्रीकरण की भी कुछ गंभीर कोशिशें कीं.हालांकि इससे भी कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं आया. यूक्रेन का काफी तेज सोवियतकरण जारी रहा.
 
तरह-तरह के खुफिया नेटवर्क जनता के बीच पहले की ही तरह काम कर रहे थे. जो भी लोग शक के दायरे में आते उन्हें गिरफ्तार और प्रताड़ित करने का सिलसिला भी पहले की ही तरह जारी रहा. केंद्रीय सत्ता में बैठा व्यक्ति जरूर बदल गया था, लेकिन व्यवस्था अभी भी वही थी इसलिए यूक्रेनवासियों के अनुभव ज्यादा अलग नहीं होने वाले थे. 
 
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.