यूक्रेन को क्रीमिया तो मिला मगर…

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 27-04-2022
क्रीमिया का युद्ध (फोटो सौजन्यः सोशल मीडिया)
क्रीमिया का युद्ध (फोटो सौजन्यः सोशल मीडिया)

 

कूटनीति । हरजिंदर

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से बीसवीं सदी के आखिरी दशक तक का यूक्रेन का इतिहास दरअसल उसके रूसीकरण का ही इतिहास है. इस दौरान वह सोवियत संघ का हिस्सा रहा और उस यूक्रेन के इतिहास को आप सोवियत संघ से अलग करके नहीं देख सकते. लेकिन फिर भी वहां कुछ घटनाएं जरूर ऐसे हुईं जो काफी महत्वपूर्ण थीं. इसमें सबसे महत्वपूर्ण थी क्रीमिया का यूक्रेन में विलय.

क्रीमिया वह जगह थी जहां दूसरे विश्वयुद्ध की सबसे भयानक लड़ाई लड़ी गई. काले सागर तक अपनी पहुंच बनाने की कोशिश में हिटलर की सेना ने इस प्रायद्वीप को लगभग पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दिया. यहीं पर 40 हजार से भी ज्यादा यहूदियों का नरसंहार हुआ. मई 1944 में जब सोवियत सेना ने यहां से जर्मनी और रोमानिया की फौज को खदेड़ा तो यह जगह एक तरह से रूस के कब्जे में आ गई.

रूस ने इसे क्रीमियन ओबलास्ट का दर्जा दिया, यानी एक ऐसा क्षेत्र जो सीधे उसके नियंत्रण में था. बाद में इसे एक स्वायत्त गणराज्य का दर्जा दे दिया गया जो रूस के नियंत्रण में ही था.

क्रीमिया की वैधानिक स्थिति अगले आठ साल तक यही रही. इस दौरान रूस ने वहां चीजों को अपने ढंग से ढालना शुरू किया. सोवियत प्रशासन का सबसे बड़ा नजला गिरा क्रीमिया के तातार लोगों पर. तुर्की मूल के इन लोगों के बारे में धारणा यह थी कि उन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नाजी सेना का साथ दिया था.

क्रीमिया में तातार लोगों की आबादी दो लाख के आस-पास थी. सोवियत सेना ने इन्हें बड़े पैमाने पर, पूरी निर्दयता के साथ, जबरन वहां से विस्थापित किया और उन्हें हजारों किलोमीटर दूर बसा दिया.

क्रीमिया से निकालने और दूर दराज में बसाने की इस कोशिश में आठ हजार से ज्यादा तातार लोगों की मृत्यु हो गई. कुल 80 हजार परिवार विस्थापित हुए जिनके पास वहां 3,60,000 एकड़ जमीन की मिल्कियत थी. इनमें से ज्यादातर तातार इस्लाम के अनुयाई थे और हनफी सुन्नी समुदाय की पृष्ठभूमि के थे.

इतिहास में जब भी सोवियत शासन के अत्याचारों का जिक्र होता है इस घटना को जरूर याद किया जाता है. वे लोग अपनी इस सरजमीं पर 45 साल बाद तभी लौट सके जब सोवियत संघ का पतन हो गया.

स्टालिन के बाद जब निकिता ख्रुश्चेव ने सोवियत सत्ता संभाली तो उन्होंने स्टालिन की इस विस्थापन नीति की काफी अलोचना की. यह बात अलग है कि उन्होंने भी तातार लोगों की वापसी का रास्ता तैयार नहीं किया.

लेकिन ख्रुश्चेव ने क्रीमिया की स्थिति को जरूर बदल दिया. 19 फरवरी 1954 को सुप्रीम सोवियत के प्रेसीडियम ने क्रीमिया को यूक्रेन के हवाले करने का फैसला किया. यह कहा गया कि सांस्कृतिक और भौगोलिक रूप से क्रीमिया यूक्रेन के ज्यादा नजदीक है इसलिए इसे यूक्रेन के साथ ही रहना चाहिए. इससे क्रीमिया का स्वायत्त दर्जा जरूर खत्म हो गया. सोवियत सरकारों के दौरान क्रीमिया को लेकर जितने भी फैसले हुए उसमें क्रीमिया के लोगों की राय कभी भी नहीं ली गई.

दिलचस्प बात यह है कि साठ साल बाद जब पूतिन सरकार ने क्रीमिया को यूक्रेन से छीना तो उनका तर्क यह था कि यूक्रेन भौगोलिक और सांस्कृति रूप से क्रीमिया रूस के ज्यादा नजदीक है.

सोवियत सरकार के दौरान क्रीमिया को भले ही यूक्रेन को सौंप दिया गया हो लेकिन उसका रूसीकरण जारी रहा. रूसी लोग वैसे ही वहां बड़ी संख्या में थे, रूसी आबादी को और भी बड़े पैमाने पर वहां बसाया गया. जल्द ही वह रूस के प्रांत की तरह ही हो गया. पूतिन ने इसी का फायदा उठाया.