भारतीय फिल्मों की पहली महिला निर्माता-निर्देशक फातिमा बेगम

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 17-07-2021
भारतीय फिल्मों की पहली महिला निर्माता-निर्देशक फातिमा बेगम
भारतीय फिल्मों की पहली महिला निर्माता-निर्देशक फातिमा बेगम

 

सिनेमा । मंजीत ठाकुर

फातिमा बेगम पहली भारतीय महिला थीं जो फिल्म निर्माता और निर्देशक बनी थीं. वह भी उस दौर में जब भारतीय सिनेमा में एक्टिंग में भी महिलाओं का आना बड़ी बात होती थी. अभिनेत्री के साथ ही वह पटकथा लेखिका भी थीं.

फातिमा बेगम का जन्म 1892 में हुआ था.

वह फिल्मों में तब आई थीं, जब सिनेमा उद्योग में महिलाओं का आना अच्छा नहीं समझा जाता था. भारतीय फिल्मों की शुरुआत में नायिकाएं ढूंढे से नहीं मिलती थीं. शुरुआत में तो पुरुषों ने ही महिलाओं के किरदार निभाए. ऐसे अदाकारों में सालुंके नाम के अभिनेता काफी मशहूर रहे थे, जो दादा साहेब फाल्के की फिल्मों में नायिका बनते रहे. लेकिन एक बार जब महिलाओं ने सिल्वर स्क्रीन का रुख किया तो फिर छा गईं.

बहरहाल, पहली भारतीय मूक फिल्म के लिए दादासाहेब फाल्के को एक अपनी फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’में तारामती की भूमिका में अन्ना सालुंके को उतारना पड़ा था क्योंकि 1913 में किसी महिला ने फिल्मों में काम करना गवारा नहीं किया.

फातिमा बेहम ने उर्दू थियेटर में अपने लिए काफी नाम कमाया था. और अर्देशिर ईरानी ने जब अपनी ‘स्टार फिल्म कंपनी’ बनाई और अपनी पहली फिल्म ‘वीर अभिमन्यु’ (1922) का निर्माण किया तो उन्होंने फातिमा को मुख्य किरदार में रखा. कुछ ही साल के भीतर फातिमा ने फिल्म कॉर्पोरेशन की नींव रख दी (जो बाद में विक्टोरिया-फातिमा फिल्म्स बन गई) और उन्होंने अपनी फिल्म बुलबुल-ए-परिस्तान (1926) का निर्देशन भी किया. हालांकि, उनकी इस फिल्म के बारे में ज्यादा सूचना उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन इस फिल्म में फातिमा की बेटी जुबैदा भी नमूदार हुई थीं जो बाद में भारत की पहली सवाक फिल्म (टॉकीज) ‘आलमआरा’, जो 1931 में रिलीज हुई, में नायिका बनीं.

पथ-प्रदर्शकः फातिमा बेगम से पहले महिलाएं फिल्मों में काम नहीं करती थीं


उसके बाद फातिमा ने ‘सती सरदाबा’ (1924) ‘पृथ्वी वल्लभ’ (1924) ‘काला नाग’ (1924) ‘गुल-ए-बकावली’ (1924) ‘मुंबई की मोहिनी’ (1925) जैसी फिल्मों में काम किया.

बतौर, निर्माता फातमा बेगम ने 1926 से 1929 के बीच नौ फिल्मों का निर्माण किया.

 बुलबुल-ए-परिस्तान एक बड़े बजट का फंतासी फिल्म थी, उसमें स्पेशल इपैक्ट्स का इस्तेमाल भी किया गया था, क्योंकि इस कहानी का कैनवास परिस्तान में सेट था. फातिमा की दो अन्य बेटियों, सुल्ताना और शहजादी ने भी मूक फिल्मों के दौर में अभिनय को अपनाया और अपनी मां की फिल्मों में काम किया.

ऐसा माना जाता है कि फातिमा ने नवाब सीदी इब्राहिम मुहम्मद याकूत खान 3 के साथ विवाह किया था, जो सचिन रियासत के आखिरी नवाब थे. लेकिन उनके निकाह का कोई सुबूत उपलब्ध नहीं है और नवाब ने फातिमा बेगम और उनकी तीन बेटियों को भी मान्यता नहीं दी थी.

लेकिन इस पारिवारिक कलह का कोई असर फातिमा बेगम की रचनात्मकता पर नहीं पड़ा. निर्देशन के साथ ही फातिमा ने अपनी फिल्मों का निर्माण भी किया. उन्होंने कोहेनूर और इंपीरियल स्टूडियो की फिल्मों में भी का म किया. सवाक फिल्मों के आने के बाद, भी वह काम करती रहीं. 1934 में उन्होंने सेवा सदन मे काम किया और इसका निर्देशन नूनूभाई बी.वकील ने किया था. फातिमा की फिल्म पंजाब लांसर्स 1937 में रिलीज हुई थी और इसके निर्देशक होमी मास्चर थे. 1983 में जब फातिमा बेगम का निधन हुआ, तब वह 91 साल की की थीं और उनका निधन गुमनामी में हो गया.

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