डॉ. भुवनेश्वर डेका ने की असमिया मुस्लिमों के ‘ जिकिर’ और ’ जरी ’ पर पीएचडी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 05-06-2024
Dr Bhubaneswar Deka: First Hindu PhD holder on ‘Zikr and Zari’ of Assamese Muslims
Dr Bhubaneswar Deka: First Hindu PhD holder on ‘Zikr and Zari’ of Assamese Muslims

 

दौलत रहमान / गुवाहाटी

असम के प्रशंसित विद्वान डॉ. भुवनेश्वर डेका मूल रूप से विज्ञान स्नातक थे. बाद में उन्होंने मानवता की पढ़ाई की, बीए (बैचलर ऑफ आर्ट्स) और ट्रिपल एमए (मास्टर्स ऑफ आर्ट्स) किया. विज्ञान और कला पर अपनी उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद भी, ज्ञान के लिए उनकी लालसा शांत नहीं हुई.

एक अलग धर्म से संबंधित होने के बावजूद डॉ. डेका को इस्लाम को एक धर्म और जीवन के दर्शन के रूप में समझने की तीव्र इच्छा थी, खासकर असम के संदर्भ में. उनकी जिज्ञासा ने अंततः उन्हें असम के स्वदेशी मुसलमानों के बीच प्रचलित भक्ति गीतों ‘जिकिर और जरी’ पर असम का एकमात्र पीएचडी धारक बना दिया. 2011 में प्रतिष्ठित गुवाहाटी विश्वविद्यालय ने डॉ. डेका को ‘असमिया जिकिर और जरीः एक महत्वपूर्ण अध्ययन’ नामक उनकी व्यापक शोध परियोजना के लिए पीएचडी से सम्मानित किया.

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आवाज-द वॉयस के साथ एक साक्षात्कार में डॉ. डेका ने कहा कि वे बचपन से ही जिकिर सुनते आ रहे हैं और इस तरह के भक्ति गीतों के प्रति उनका आकर्षण इसकी अनूठी एकीकृत शक्ति के कारण हर गुजरते दिन के साथ बढ़ता ही जा रहा है. उन्होंने कहा कि जिकिर ने 17वीं शताब्दी के दौरान वैष्णव संत श्रीमंत शंकरदेव (1449-1568) के भक्ति आंदोलन द्वारा स्थापित सामाजिक-सांस्कृतिक ढांचे के भीतर और अहोम (1200-1800) राजाओं के संरक्षण में असम में अपनी जड़ें जमा लीं.

यद्यपि जिकिर और जरी की धुन एक जैसी है, जिकिर पवित्र कुरान और हदीस में वर्णित इस्लाम की शिक्षाओं का प्रतीक है, जबकि जरी गीत कर्बला युद्ध त्रासदी के दुखद प्रसंगों पर आधारित हैं. जिकिर की रचना और प्रचार 17वीं शताब्दी के सूफी संत और कवि हजरत शाह मीरान ने किया था, जिन्हें अजान फकीर के नाम से जाना जाता था. अजान फकीर इराक के बगदाद से असम आए थे.

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डॉ. डेका ने कहा कि शुरू में जिकिर के बोल कुरान और हदीस के आध्यात्मिक पहलुओं पर प्रकाश डालते थे, लेकिन बाद में अजान फकीर ने श्रीमंत शंकरदेव द्वारा प्रचारित ‘सभी को गले लगाने’ के दर्शन को शामिल करके इसे लिखना शुरू कर दिया.

डॉ. डेका ने बताया, ‘‘जिकिरों को मूल रूप से इस्लाम के आध्यात्मिक गीत समझ लिया गया था और कुछ लोगों द्वारा उन्हें छिपा कर रखा गया था. चूंकि उस युग के लोग ज्यादातर अशिक्षित थे, इसलिए संभवतः जिकिर अलिखित ही रह गए, जिससे समय के साथ उनमें से कई लुप्त हो गए. समय के साथ जिकिरों को असमिया लोकगीतों जैसे बियागीत, अयनम, धैनम और टोकरी गीत आदि की तर्ज पर तैयार किया गया. श्रीमंत शंकरदेव और श्रीमंत माधवदेव द्वारा रचित बोरगीत ने भी गीत लिखते समय और जिकिर के स्वर देते समय अजान पीर को प्रभावित किया था.’’

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वर्तमान संदर्भ में श्रीमंत शंकरदेव और अजान पीर के आदर्शों की प्रासंगिकता का वर्णन करते हुए डॉ. डेका ने उदाहरण दिया कि कैसे ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद असम शांतिपूर्ण रहा. उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद भारत के अधिकांश इलाकों में सांप्रदायिक दंगे हुए थे. बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में तीखी प्रतिक्रियाएं हुईं. डेका ने कहा, ष्लेकिन असम एक अपवाद था. सांप्रदायिक दंगे की कोई घटना न होने से असम के लोगों ने साबित कर दिया कि वे श्रीमंत शंकरदेव और अजान पीर की धरती पर रहते हैं. लेकिन बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद असम में एक भी नामघर या मंदिर नहीं गिराया गया.’’

एक और पहलू जिस पर हाल ही में चर्चा हुई है, वह यह है कि आजकल कुछ गायक अलग-अलग मंचों पर अपनी धुन और संगीत में जिकिर गाते हैं. लेकिन, किसी को भी जिकिर की धुन, बोल या वाद्य बदलने का अधिकार नहीं है. दुर्भाग्य से, ऐसा हो रहा है और मूल जिकिर विलुप्त होने के कगार पर पहुंच रहा है. डॉ. डेका ने कहा, ‘‘अब समय आ गया है कि असम सरकार स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में जिकिर और जरी तथा अजान पीर पर अध्याय शुरू करे, ताकि वर्तमान पीढ़ी को इसका महत्व पता चले, वे इस गीत को सीखें और भविष्य के लिए इसे संरक्षित करें.’’