दक्कनी हिंदू-मुस्लिम कवि- शायरों को एक धागे में पिरोने वाले अलीमुद्दीन अलीम

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 21-12-2023
Deccani Hindu-Muslim poet - Alimuddin Aleem, who weaves the threads of nature among the poets
Deccani Hindu-Muslim poet - Alimuddin Aleem, who weaves the threads of nature among the poets

 

कलीम अजीम/ पुणे

महाराष्ट्र सुधारकों की भूमि कही जाती हैं.उसी तरह उसका एक प्रांत मराठवाडा संतो की सर जमीन मानी जाती हैं.जनाबाई, नामदेव, ज्ञानेश्वर, रामदास, चांद बोधले आदि संत मराठवाड़ा की भूमि से निकले.अपने कार्यों से मशहूर हुए.कुछ विद्वानों की माने तो मराठवाडा उर्दू की जन्मभूमी रही हैं.

मध्यकाल में उर्दू-दकनी के प्रसिद्ध कवि वली दकनी तथा सिराज औरंगाबादी यहीं पले बढे.शोहरत पाई.हमारे आज के शायर, कवि, शोधकर्ता ‘अलीमुद्दीन अलीम’ भी इस मराठवाड़ा के हैं.अलीमुद्दीन ‘अलीम’ अपनी दो अहम किताबों के लिए पहचाने जाते हैं.'तज़किरा ए शोरा ए मराठवाडा' : जिल्द अव्वल - इब्तेदा से 1950 तक’ और दूसरी किताब 'तज़किरा ए शोरा ए मराठवाडा' : जिल्द दूव्वम – 1951 से ता हाल’ तक.

यह किताबे मराठवाड़ा के 100 सालों के उर्दू-दकनी कवि, शायर और संतो के रचनाओं का संग्रह हैं.कुल 1200 पन्नों में बिखरे यह दस्तावेज मराठवाडा के अदबी दुनिया को समझने के लिए एक अहम स्रोत हैं,जिसमें कुल 800 से ज्यादा शायरों की रचनाएं संकलित हैं.

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किताबों में उर्दू के जन्म से लेकर अब तक के कवियों की रचनाएं शामिल हैं.सिर्फ रचनाओं का संकलन नहीं हैं, बल्कि रचनाकारों के खाके (अल्पचरित्र) भी लिखे गए हैं.जिसमें मध्यकालीन दौर के कई जाने माने शायरों की दुर्लभ रचना पुन:प्रकाशित की गई हैं.

अलीमुद्दीन ‘अलीम’ की पैदाइश 1983में अंबाजोगाई, जिला बीड़ में हुई.यह शहर औरंगाबाद से 200किलोमीटरदूर स्थित है.वह पेशे से अध्यापक हैं.नौकरी के लिए उन्हें 2001में  मुंबई में स्थानांतरित होना पड़ा.उनकी शुरुआती शिक्षा अंबाजोगाई के मिल्लिया से उर्दू मीडियम से हुई.शहर के जाने माने कॉलेज स्वामी रामानंद तीर्थ से उन्होंने ग्रेजुएशन किया.एम.ए. उर्दू के लिए वे बीड के मिल्लिया पहुंचे.

उनके वालिद अजीमुद्दीन ग्रज्युएट हैं.वह भी उर्दू के शौकीन थे.घर में कई रिसाले, किताबे होती थी.यही वजह रही की, अलीमुद्दीन अलीम को बचपन से पढ़ने और लिखने का शौक रहा.स्कूली किताबों के अलावा उर्दू नावेल, अफसाने और शायरी पढ़ते थे.रोजाना घर में उर्दू अखबार आता था.उनके इसी शौक के वजह से उन्होंने उर्दू साहित्य में एम.ए. किया.

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सिलेबस की पढाई के दौरान वह उर्दू अदब की ओर ज्यादा खींचते चले गए.शुरुआती दौर में उनकी रचनाए बीड से प्रकाशित उर्दू रोजनामचा ‘दावत’, ‘रहबर’ में आती रही.उसी के साथ प्रदेश के प्रतिष्ठित उर्दू अखबार ‘औरंगाबाद टाइम्स’ में भी जगह बनाती रही.जैसा कि होता आया है, शुरुआती दौर की उनकी भी रचनाए इश्क-माशूक पर केंद्रित थी.फूल, पौधे, चिड़िया, खेत-खलिहान आदि पर वे लिखते रहे.

मगर जितना भी वे लिखते सारा का सारा प्रकाशित नहीं करते.कुछ चुनिंदा नज़्में, ग़ज़लें प्रकाशन की शोभा बनती.मगर वक्त के साथ उनकी भूमिका और सोच में काफी बदलाव आते गया.2008में मुंबई स्थानांतरण के बाद वे प्रगतिशील लेखक संघ की महफिलों से वाबस्ता हुए.जिसके पास उनकी रचनाओं में अलग-अलग विधाए रेखांकित होती गई.

मुंबई का महानगरीय जीवन, कॉरपोरेट सेक्टर, शिक्षा के बदलते नियम तथा वर्तमान सियासत पर विश्लेषण मिलता है.पलायन तथा उसके दर्द कोई बड़ी जगह उनकी रचनाओं में मिलती है.तरक्की पसंद तहरीक की ऐतिहासिक विरासत, उसके कर्ता धर्ता और अदब की आलोचना है.

प्रगतिशील लेखक संघ के वर्तमान हलचलों से उनकी लिखावट में बदलाव आते रहे.अब वह शायरी, गजलों के साथ सम सामाईक अदबी हलचलों पर गद्य लेखन भी करने लगे.उन्होंने समकालीन साहित्य की समीक्षा भी की हैं. 

मुंबई के तमाम अदबी हलचलों में उनका जाना-आना रहता हैं.निमंत्रण पर वे अपनी रचना भी पेश करते हैं.उनकी पहचान उनका लेखन कार्य हैं.उनकी इन किताबों की वजह से उन्हें समूचे भारत भर में पहचाना जाता हैं.

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शोध कार्य

ऊपर उल्लिखित उनकी किताबें कई मायनों में अहम हैं.एक तरह से पीएचडी के अनुसंधान से बढ़कर यह कार्य हैं.'तज़किरा ए शोरा ए मराठवाड़ा' का पहला भाग फरवरी 2019में प्रकाशित हुआ.650पन्नों की इस किताब को प्रकाशित करने के लिए उन्हें केंद्र सरकार की और से अनुवाद राशि मिली.

कौमी काउंसिल बराए-फ़रोग़-ए-उर्दू ज़बान, यानी राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद, नई दिल्ली ने उन्हे इस किताब के लिए सहयोग दिया.इस किताब में मध्यकालीन दौर यानी सन 1275से लेकर सन 1950तक के शायरों की रचनाएं संकलित हैं.इसमें दकनी और उर्दू भाषी कवियों के रचनाओं का एकत्रीकरण किया गया हैं.

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यह संग्रह कई मायनों मे खास हैं.इसमें दुर्लभ रचनाएं एकत्रित की गई हैं,जिसे अलीमुद्दीन अलीम ने कई पुरानी पत्रिका, समाचार पत्रों तथा किताबों के माध्यम से इकट्ठा किया हैं.इसके अलावा जिन कवियों तथा साहित्यकारों ने रचना लिखी पर वह प्रकाशित नहीं हो सकी, ऐसी दुर्लभ रचनाओं का भी संकलन इसमें किया गया है.

उसके लिए उन्होंने सार साल तक संशोधन किया.अपनी अध्यापन कार्यों से जैसे जैसे फुरसत मिलती वह इस काम को करते.दिवाली और गर्मियोंकी छुट्टियों मे मराठवाड़ा प्रदेश का दौरा करते. पहले भाग की खासियत यह है किइसमें संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव, रामदास और मोहम्मद आलम खान आदि सूफी संतों की रचनाएं शामिल हैं.

संतो के दकनी रचनावली इस किताब का अहम हिस्सा हैं.इसके अलावा ली औरंगाबादी (औरंगाबाद), सिराज औरंगाबादी (औरंगाबाद), बशर नवाज (औरंगाबाद), अशरफ बयांबानी (अंबड), बुरहानुद्दीन गरीब (खुलताबाद), आरिफ बिल्ला (खुलताबाद) इत्यादि कवियों की रचनाओं का संकलन इस महत्वपूर्ण ग्रंथ में किया गया हैं.इसके अलावा 17वी सदी के मशहूर तवायफों की दुर्लभ रचनाओं को इस संकलन में शामिल किया गया है.

मराठवाड़ा के 8जिलों के 8विभाग इस ग्रंथ में किए गए हैं.इस ग्रंथ का निर्माण शोधकर्ता छात्र, अभ्यासक, पीएचडी आदि अनुसंधान कार्य को ध्यान में रखकर किया गया हैं.अलीमुद्दीन अलीम के इस महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य के लिए सन 2019का महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी सन्मान प्राप्त हुआ हैं.उन्हे यह सन्मान न्यू टैलेंट कैटगरी में मिला हैं.

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दूसरा भाग भी इसी तरह कई मायनों में अहम हैं.इसे केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले कौमी काउंसिल बराए-फरोग-ए-उर्दू ज़बान का विशेष अनुदान राशि मिली हैं.2022में प्रकाशित यह किताब 450 पन्नों की हैं.

इस किताब में कवियों की रचना तथा उनके अल्पचरित्र हैं.इसमें प्रकाशित और अप्रकाशित कई रचना शामिल की गई हैं,जिसके लिए उन्होंने प्रदेश के कई जिलों का दौरा किया.अप्रकाशित रचनाएँ संकलित की.इन दोनों किताबों में एक और चर्चित तो दूसरी ओर दुर्लक्षित कवियों के रचनाओं का सम्मेलन मिलता है.इन शायरों की रचनाएं पढ़कर मराठवाड़ा में अदबी हलचल और उसके महत्व को समझा जा सकता है.

लेखक ने इस किताबों में कवियों के रचना और उनके संदर्भ पर भी सटीक टिप्पणियां की है.प्रसिद्ध रचनाओं के विषय और उसके इतिहास को भी रेखांकित किया है.जगह-जगह समकालीन सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ को भी रेखांकित किया गया है.

किताब में कई जगह साहित्यिक विवादों पर भी पर्दा उठाया गया है.दोनों किताबों में अलग-अलग विचारधारा वाले साहित्य के प्रतिनिधि को उनके अलग-अलग विचारधाराओं से निर्देशित करने की कोशिश की गई है.

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अलीमुद्दीन अलीम इन दिनों समकालीन काव्य और उसकी आलोचना पर काम कर रहे हैं.इस तरह अपनी रचनाओं को भी प्रकाशित करने वाले हैं। इस तरह प्रगतिशे लेखक संघ के विशेषता दूर और वर्तमान पर भी वह आलोचनात्मक लेखन कर रहे हैं। अपनी व्यस्त दिनचर्या के बाद भी वह पढ़ने और लिखने के लिए पर्याप्त समय निकाल पाते हैं.

(लेखक समसामयिक घटनाओं के भाष्यकार तथा साहित्य, संस्कृति पर लिखनेवाले स्वतंत्र टिप्पणीकार है.)