सक़ीब सलीम
सर सैयद अहमद ख़ान, जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक थे, आज भी एक बहस का विषय बने हुए हैं.एक तरफ़ उन्हें भारतीय मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा की शुरुआत करने वाला माना जाता है, तो दूसरी ओर कुछ लोग उन्हें टू नेशन थ्योरी (दो राष्ट्र सिद्धांत) का जन्मदाता मानते हैं, जो आगे चलकर भारत के विभाजन और पाकिस्तान के बनने की वजह बनी.
इस विवाद की शुरुआत एक गलत अनुवाद से होती है.19वीं सदी के आख़िर में सर सैयद के ज़्यादातर भाषण उर्दू में होते थे, जिन्हें अंग्रेज़ी अख़बार The Pioneer छापा करता था.इस अनुवाद में उर्दू शब्द "क़ौम" का अनुवाद "nation" यानी "राष्ट्र" कर दिया गया, जबकि सही अनुवाद "community" यानी "समुदाय" होना चाहिए था.
इस कारण जहां बात "हिंदू और मुस्लिम समुदायों" की होनी चाहिए थी, वह "हिंदू और मुस्लिम राष्ट्रों" के रूप में छप गई.प्रोफेसर फ्रांसेस डब्ल्यू. प्रिटचेट लिखती हैं कि, “हर उस जगह जहां Pioneer ने 'nation' लिखा है, वहां उर्दू में असल शब्द 'क़ौम' था, जिसका मतलब 'समुदाय' होता है.”
एक और अहम बात यह है कि 19वीं सदी के आख़िर में 'राष्ट्र', 'राष्ट्रवाद' और 'नागरिकता' की अवधारणाएं आज जैसी नहीं थीं.उस समय विश्व युद्ध भी नहीं हुए थे, जिनके बाद राष्ट्रों की सीमाएं और नागरिकता के विचार पक्के हुए.
प्रोफेसर शफ़ी किदवई अपनी किताब *Sir Syed Ahmad Khan: Reason, Religion and Nation* में लिखते हैं कि सर सैयद की "क़ौम" की परिभाषा आज भी उनके समर्थकों और आलोचकों के लिए बहस का विषय बनी हुई है.
प्रोफेसर हाफिज मलिक ने 'राष्ट्रवाद' की जो परिभाषा दी है कि यह एक मानसिक स्थिति और चेतना की अवस्था है,वह सर सैयद के विचारों में साफ़ झलकती है.सर सैयद के लिए 'क़ौम' का मतलब एक धार्मिक या सामाजिक चेतना थी, न कि कोई राजनीतिक नारा या भौगोलिक पहचान.उन्होंने 'क़ौम' को इंसानी फितरत से जोड़ा, जो एक इंसान को जानवर से अलग करती है.
उनके लेखों, भाषणों और संपादकीयों में 'क़ौम' का उपयोग लचीले अर्थों में किया गया है.19वीं सदी में 'क़ौम' का मतलब कभी राष्ट्र, कभी देश और कभी धार्मिक समुदाय होता था.उन्होंने कभी भी 'क़ौम' को एक तय और स्थिर परिभाषा में नहीं बांधा.
प्रोफेसर किदवई यह भी बताते हैं कि सर सैयद 'क़ौम' और 'वतन' (देश) के बीच फर्क समझते थे.1870 में जब उन्होंने तहज़ीब उल अख़लाक़ नाम की पत्रिका शुरू की, तो उसमें पहले अंक में यह लिखा था —“अपने वतन से मोहब्बत ईमान का हिस्सा है.जो अपनी क़ौम की भलाई के लिए कोशिश करता है, वह अपने मज़हब की भी भलाई करता है।”
लेकिन बाद में सर सैयद ने 'वतन' की जगह 'क़ौम' शब्द का इस्तेमाल शुरू कर दिया, क्योंकि यह पत्रिका मुख्य रूप से मुसलमानों के लिए थी.14अप्रैल 1875को आए अंक में यह लिखा था, “अपनी क़ौम से मोहब्बत ईमान का हिस्सा है,जो अपनी क़ौम को बेहतर बनाता है, वह अपने मज़हब को बेहतर बनाता है.”
शान मोहम्मद अपनी किताब Sir Syed Ahmad Khan: A Political Biography में लिखते हैं कि अलीगढ़ इंस्टीट्यूट गज़ट ने भी 'क़ौम' शब्द का अनुवाद 'nation' किया, जो गलत था.यही वजह है कि लोगों को यह गलतफहमी हुई कि सर सैयद ने दो राष्ट्र सिद्धांत की बात की थी.
गज़ट में एक जगह लिखा गया था, “प्रतियोगी परीक्षा की शुरुआत की पहली शर्त यह है कि उस देश के सभी लोग एक राष्ट्र से हों…”, जबकि असल बात थी कि सभी लोग एक समुदाय से हों.उस संदर्भ में 'community' शब्द ज्यादा उपयुक्त है.
यह सब तो बाद के विद्वानों की व्याख्या है, लेकिन खुद सर सैयद ने भी इस पर सफाई दी थी.27 जनवरी 1884को गुरदासपुर में उन्होंने कहा:“आपने इतिहास में देखा होगा और आज भी देखते हैं कि 'nation' शब्द उन लोगों के लिए इस्तेमाल होता है जो एक देश में रहते हैं.अफ़ग़ानिस्तान के सभी लोग एक राष्ट्र कहलाते हैं.
ईरान के लोग अलग-अलग धर्म मानते हैं लेकिन ईरानी कहलाते हैं.यूरोप में लोग भिन्न-भिन्न धार्मिक विश्वास रखते हैं, फिर भी एक राष्ट्र कहे जाते हैं.इसी तरह हिंदू और मुसलमान क्या किसी और देश में रहते हैं? क्या आप इसी भारत की ज़मीन पर नहीं रहते और मरकर इसी धरती में दफन या जलाए नहीं जाते?
आप यहीं जीते हैं और यहीं मरते हैं.इसलिए याद रखो कि हिंदू और मुसलमान सिर्फ धार्मिक नाम हैं, असल में हिंदू, मुसलमान और ईसाई, जो भी इस देश में रहते हैं, एक राष्ट्र हैं.जब ये सब एक राष्ट्र कहे जाते हैं, तो उन्हें अपने देश की सेवा में भी एक होना चाहिए, जो कि हम सभी का साझा देश है.”
1883 में लाहौर में उन्होंने और स्पष्ट किया था:“जब मैं 'क़ौम' शब्द कहता हूं, तो मेरा मतलब हिंदू और मुसलमान दोनों से होता है.मेरे लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती कि किसी का धर्म क्या है, क्योंकि हम धर्म की बात कम ही देखते हैं.जो बात हम सच में देखते हैं वह यह है कि हम सब एक ज़मीन पर रहते हैं और एक ही शासक के अधीन हैं.हमारे लिए फायदे के साधन एक जैसे हैं, और अकाल की तकलीफ भी हम साथ मिलकर उठाते हैं.”