बीकानेरः एक मौलवी की ‘उर्दू रामायण’ बनी धार्मिक सहिष्णुता की मिसाल

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 11-11-2023
बीकानेरः एक मौलवी की ‘उर्दू रामायण’ बनी धार्मिक सहिष्णुता का प्रतिमान
बीकानेरः एक मौलवी की ‘उर्दू रामायण’ बनी धार्मिक सहिष्णुता का प्रतिमान

 

मंसूरुद्दीन फरीदी / आवाज-द वॉयस

रंज-हसरत की घटा सीता के दिल पे छा गई

गोया जूही की कली थी, ओस से मुरझा गई.

देखने को जाहिरन हनुमान जी की चल गई

वरना सीता की आंखें थीं कि लंका जल गई.

यहां उर्दू रामायण के कुछ खूबसूरत छंद हैं. जो न सिर्फ रामायण को अनोखे और अनूठे अंदाज में पेश करते हैं, बल्कि देश की गंगा-जमनी तहजीब की गवाही भी देते हैं. बीकानेर में हर वर्ष दिवाली के अवसर पर इसका समां ‘महफिल रामायणश् में बांधा जाता है. इसका इतिहास या कहानी देश के सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता का जीवंत प्रमाण भी है, क्योंकि उर्दू रामायण का पाठ एक कश्मीरी पंडित के आग्रह पर किया जाता है और जो बादशाह हुसैन खान राणा लखनवी द्वारा प्रस्तुत है. वो बीकानेर के प्रमुख शायर रहे. याद रहे कि यह उर्दू रामायण 1937 में लिखी गई थी. जिसे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में स्वर्ण पदक के योग्य माना गया, जबकि बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने इसे स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करवाया था. स्मरण रहे कि मौलवी बादशाह हुसैन खान राणा लखनऊ और बीकानेर में उर्दू और फारसी पढ़ाते थे. अपने एक कश्मीरी पंडित शिष्य के अनुरोध पर उन्होंने उर्दू कविता के रूप में रामचरित मानस की रचना की, जो अब बीकानेर के लोगों के लिए एक ऐतिहासिक संपत्ति है.

बीकानेर में उर्दू रामायण का आयोजन प्रीतम लाख सिंह (टूरिज्म राइटर्स एसोसिएशन) द्वारा किया जाता है, जिसकी आत्मा बीकानेर में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान से जुड़े डॉ. जियाउल हसन कादरी हैं. बुजुर्गों से परंपरा सुनी और फिर 2012 में एक अच्छी पहल हुई. तब से यह सिलसिला चल रहा है और लोकप्रिय हो रहा है. उन्होंने बताया कि मौलवी खान राणा की उर्दू रामायण का पुनरुद्धार बीकानेर के लिए गौरव का विषय है. कादरी साहब के अनुसार, उर्दू रामायण एक उत्कृष्ट प्रस्तुति है, क्योंकि मौलवी खान राणा ने रामजी की बनवास से अयोध्या तक की यात्रा को आधे घंटे की उर्दू रामायण में जिस सुंदरता से प्रस्तुत किया है, वह किसी से कम नहीं है.

उर्दू रामायण की कहानी

दरअसल, यह उर्दू रामायण मौलवी बादशाह हुसैन खान राणा का करिश्मा है. कादरी के अनुसार यह आजादी से पहले की घटना है. राणा खानवी उत्तर प्रदेश के संडीला से आकर बीकानेर में बस गये. वह उर्दू और फारसी के शिक्षक और कवि भी थे. उनके एक छात्र कश्मीरी पंडित थे. उन्होंने उन्हें बताया कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में तुलसीदास जयंती के अवसर पर एक रामायण प्रतियोगिता आयोजित की गई है. लेकिन मौलवी खान राणा ने कहा कि चूंकि उन्होंने रामायण नहीं पढ़ी है, इसलिए यह संभव नहीं है. जिस पर कश्मीरी पंडित शिष्य ने मौलवी खान राणा से कहा कि अगर आप चाहें, तो मैं आपको हर दिन रामायण पढ़ाऊंगा. जिस पर मौलवी ने सहमति जताई.

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उनके छात्र प्रतिदिन उन्हें रामायण सुनाते थे और सुनते-सुनते उन्होंने रामायण भी लिख दी. परिणाम यह हुआ कि रामायण समाप्त होने के कुछ दिन बाद मौलवी ने उर्दू रामायण को पद्य में प्रस्तुत किया. इसके बाद छात्र ने उसे डाक से बनारस भेजा. कुछ दिनों बाद खबर आई कि मौलवी खान राणा द्वारा रचित उर्दू रामायण ने स्वर्ण पदक जीता है. खास बात यह है कि यह स्वर्ण पदक उन्हें बीकानेर में प्रसिद्ध कश्मीरी पंडित बुद्धिजीवी सर तेज बहादुर सप्रू ने प्रदान किया था.

पाठ्यक्रम में भागीदारी

बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह को जब मौलवी खान राणा की उर्दू रामायण की लोकप्रियता की खबर मिली, तो वे बहुत खुश हुए. स्मरण रहे कि मौलवी खान राणा ने 1911 से 1922 तक के राजाओं की राजाज्ञाओं का संडीला से बीकानेर महाराजा गंगा सिंह तक का अनुवाद किया था. इस स्वर्ण पदक के जश्न में नागरिक भंडार में एक समारोह आयोजित किया गया ािा, जिसमें मौलवी खान राणा ने उर्दू रामायण का पाठ किया. महाराजा गंगा सिंह इसे सुनकर इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने तुरंत घोषणा की कि कविता को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए. हालाँकि, देश के विभाजन के बाद हालात बदल गए, नफरत की आंधी उठी. उसके बाद उर्दू रामायण के पन्ने भी उड़कर बिखर गए. लोग धीरे-धीरे इसे भूल गए. जब धार्मिक सहिष्णुता और सद्भाव की कमी हुई, तो उर्दू रामायण भी इतिहास के पन्नों में खो गई.

उर्दू रामायण की वापसी कैसे हुई?

डॉ. जिया-उल-हसन कादरी के अनुसार, मैंने उर्दू रामायण की कहानियां वर्षों तक सुनीं, शहर के बुजुर्गों से इसकी कहानियां सुनीं, यहाँ तक कि मौलवी खान राणा के छात्र मुहम्मद इब्राहिम गाजी के मुंह से भी यादें सुनीं, जो बीकानेर की सभ्यता के प्रतीक थे. इसके बाद 2006 में राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने उर्दू रामायण को 12वीं पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की घोषणा की. उसके बाद 2012 में उर्दू रामायण का पाठ शुरू हुआ. अब हर साल दिवाली के मौके पर शहर में यह त्योहार मनाया जाता है और शहर के हिंदू और मुस्लिम एक साथ बैठकर इसे सुनते हैं. इसे सांप्रदायिक सौहार्द का गवाह माना जाता है.

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डॉ. कादरी का कहना है कि बीकानेर हिंदू-मुस्लिम एकता और गंगा-जमुनी सभ्यता का एक सुंदर उदाहरण रहा है. उर्दू रामायण कविता प्रस्तुत करने और इसे शहर में एक वार्षिक कार्यक्रम बनाने का उद्देश्य अपनी परंपराओं और सभ्यता को जीवित रखना है. आज समाज में दीवारें खड़ी की जा रही हैं, दूरियां पैदा की जा रही हैं, लेकिन हमारी गंगा-जिमनी संस्कृति एक संपत्ति है. इसे संरक्षित करने के लिए छंदबद्ध उर्दू रामायण की शृंखला शुरू की गई है, जो बेहद रोचक और धार्मिक सद्भाव का बेहतरीन उदाहरण है. उन्होंने कहा कि एक समय था, जब गैर मुस्लिम शायर बानी की शान में और मुस्लिम शायर हिंदू अवतारों की शान में नात पढ़ते थे. यह हमारी साझी संस्कृति रही है. धार्मिक सहिष्णुता हमारी भारतीय सभ्यता का आधार रही है.

अली के शब्दों में

इस उर्दू रामायण को हर साल अपने अनोखे अंदाज में सुनाने वाला एक चेहरा जाना जाता है, जो हैं असद अली. पत्रकारिता से जुड़े असद अली असद ने उर्दू रामायण को लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई है. असद अली असद से पूछा गया कि उर्दू में रामायण पेश करने का मकसद क्या है और उन्हें इसमें इतनी दिलचस्पी क्यों है? उन्होंने कहा कि आज भारत में उर्दू रामायण की सख्त जरूरत है, इसे पढ़ने से सभी धर्मों और वर्गों के लोग एकसाथ आते हैं. जिससे एक दूसरे के बीच कोई मतभेद नहीं रहता है. यह हमारे समाज में प्रेम और शांति का पाठ पढ़ाता है. दुनिया में इस वक्त हर तरफ नफरत और हिंसा का माहौल है. ऐसे में अगर किसी तरफ से प्यार का पैगाम आता है तो उसका स्वागत करना चाहिए. उनकी इस व्यवस्था का उद्देश्य बस इतना ही है.

सांस-सांस में खुदा बसा है, रोम-रोम में राम

सीधे-साधे इंसा को झगड़े से क्या काम

मंदिर से कब मस्जिद लड़ती, कब गीता से कुरान

लोग रोटियां सेंक रहे हैं, लेकर उनका नाम

बहुत कम प्रचार हुआ

बीकानेर के इतिहास में मौलवी खान राणा, उर्दू रामायण के कारण ही बचे हुए हैं, अन्यथा देश के विभाजन के बाद जो विभाजन का तूफान आया, उसमें बहुत कुछ मिट्टी में मिल गया. कादरी साहब ने आवाज-द वॉयस को बताया कि इंटरनेट पर भी उर्दू रामायण के बारे में ज्यादा सामग्री नहीं है, लेकिन फिर भी दिल्ली के जाकिर हुसैन कॉलेज के प्रोफेसर मुकुल चतुर्वेदी ने संपर्क किया और उर्दू रामायण प्राप्त की. उन्होंने इसे हिंदी में पढ़ने के बाद अंग्रेजी में पेश किया. इसके बाद उन्होंने एक आर्टिकल भी लिखा. इसी तरह पिछले दिनों बीबीसी द्वारा दो मिनट की वीडियो फिल्म बनाई गई थी. 2021 में मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी ने ड्रामा फेस्टिवल में हिंदू अवतारों पर शायरी लिखने वाले एक मुस्लिम कवि पर एक नाटक प्रस्तुत किया था, जिसमें मौलवी खान राणा शामिल थे. लेकिन मौलवी खान राणा और उर्दू रामायण को अभी तक वह प्रचार या लोकप्रियता नहीं मिल पाई है, जिसके वे हकदार हैं.

कादरी के मुताबिक, 1943 में जब राणा लखनऊ शीतकालीन अवकाश के दौरान अपनी जन्मभूमि संडीला गए, तो वहीं उनकी मृत्यु हो गई. लेकिन वे अपने पीछे एक ऐसा स्मारक छोड़ गए, जो देश की गंगा-जमनी सभ्यता के पन्नों पर पत्थर की लकीर बन गई है. बीकानेर को यह छंद अब हर साल याद रहता है और राज्य के बच्चे अपनी शिक्षा के दौरान पाठ्यपुस्तकों में इसके बारे में पढ़ते हैं. जो नई पीढ़ी को याद दिला रहा है कि हमारी संस्कृति साझी है, हमने हमेशा एक-दूसरे के पैगम्बरों या अवतारों का सम्मान किया है. हमने सभी को अच्छे शब्दों में याद किया है. ये भारत है और हमें इस भारत को जिंदा रखना है.