पाकिस्तान में जिंदा है बनारस और बिहार

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 08-02-2024
Banaras and Bihar are alive in Pakistan
Banaras and Bihar are alive in Pakistan

 

कराची. बिहार और बनारस भी हैं पाकिस्तान में, कराची में खाएं बनारसी पान और बिहारी कबाब, बिक रही हैं बनारसी साड़ियां. जैसे ही आप कराची के उत्तरी निजामाबाद से पुल पार करके दूसरी तरफ उतरते हैं, ऐसा लगता है कि आप कहीं और आ गए हैं. शहर की सड़कें, गलियां और लोग कराची के दूसरे हिस्सों जैसे ही दिखते हैं, लेकिन होर्डिंग्स पर बनारस लिखा हुआ है. ये है पाकिस्तान का शहर बनारस. आजादी के बाद यूपी के बनारस से आए लोग हजारों मील दूर अपने छोटे से बनारस कराची में बस गए.

यहां के लोग दूसरों से तो उर्दू में बात करते हैं, लेकिन अपनों से बात करते समय बनारसी ही बोलते हैं. यह सब सुनकर ऐसा लगता है कि आप बनारस में खड़े हैं, बनारस शहर के ज्यादातर लोग बनारसी साड़ी का कारोबार करते हैं और पान बेचते हैं.

यहां एक मिनी स्प्रिंग भी है. इस जगह का नाम तो ओरंगी है, लेकिन यह पटना या दानापुर लगता है. खान-पान, पहनावा, व्यवहार और बोल-चाल हर मामले में बिहार जैसा. पाकिस्तान में आम चुनाव आज 8 फरवरी को हो रहे हैं. चुनाव कवरेज के दौरान छह भारतीय पत्रकार पाकिस्तान के बनारस और बिहार पहुंचे.

बनारस शहर में उन्हें बनारसी साड़ी बेचने वाला मोहम्मद तल्हा मिले. वह कहते हैं, मैं बनारस के अंसारी परिवार से हूं. आजादी के बाद दादा कराची आ गये. हमारी दुकान 1974 से है. यहां ज्यादातर लोग बनारस से आये हैं. उनमें से 70 फीसद भारत से आए, शेष 30 फीसद बाद में पूर्वी पाकिस्तान से चले गए. तल्हा बनारसी विभिन्न प्रकार के परिधानों का प्रदर्शन करते हैं. वह कहते हैं, घरारा, शरारा, शलवार कमीज और बनारसी, पशमीना शॉल की यहां काफी डिमांड है.

शुद्ध लिनेन रेशम से बनी एक साड़ी थोक में 65,000 रुपये में बिकती है. इसकी खुदरा कीमत एक लाख से अधिक है. लोग हमारे पास आते हैं और पुरानी बनारसी साड़ियां मांगते हैं. मुहम्मद तल्हा ने भारत में अपने चचेरे भाई के साथ वीडियो कॉल पर हमसे बात की.

उनका भाई वाराणसी के निक्की घाट पर रहता है. बनारसी अंदाज में बात करते हुए तल्हा उनसे कहते हैं, मैं एक बार देखना चाहता हूं कि भारत का बनारस कैसा होता है. कराची के बनारस कस्बे के लगभग हर घर में पावरलूम है. यहां की सड़कों पर घुसते ही आपको मशीनों की आवाजें सुनाई देने लगती हैं. यहां घर तो छोटे हैं, लेकिन उनमें फैक्ट्रियां भी चलती हैं.

ग्राउंड फ्लोर पर फैक्ट्रियां हैं, ऊपर परिवार रहते हैं. बाजार में बने मकानों और दुकानों की कीमतें बहुत ज्यादा हैं. स्थान के आधार पर एक दुकान की कीमत 1 से 1.5 करोड़ रुपये तक होती है. घरों की कीमत 20 से 25 करोड़ रुपये के बीच है. बनारसी कपड़ों के एक अन्य व्यापारी वसीम अहमद कहते हैं, ‘‘हमारे पूर्वज बनारस के बड़ी बाजार, लधनपुरा इलाके से कराची आए थे. वहां हिंदू-मुसलमान सभी बनारसी कपड़ों का व्यापार करते हैं. कराची में बसने वाले भी यही काम करने लगे.’’

शुरुआत में हर कोई खादी का काम करता था, लेकिन अब इनोवेशन का जमाना है. सभी पावरलूम पर शिफ्ट हो गए हैं. बनारस शहर में बने कपड़ों की मांग पूरी दुनिया में है. हमारे बने कपड़े दुबई, मस्कट और यूके तक जाते हैं. वसीम कहते हैं, ‘‘हमारे रिश्तेदार अब भी भारत में रहते हैं. लगभग आधा परिवार वहीं है. वहां हमारे चचेरे भाई-बहन हैं, जिन्हें मैंने पहले कभी नहीं देखा. हम व्हाट्सएप पर बात करते हैं. इसी तरह हम एक दूसरे को जानते हैं.’’

बनारस से आये सनाउल्लाह अब बूढ़े हो गये हैं. वह कहते हैं, ‘‘मैं जीतपुरा में रहता था. मुझे अपने जन्म का वर्ष याद नहीं है, लेकिन इतना याद है कि उस समय अंग्रेजों का शासन था. मेरे चार भाई थे, वे सभी अब इस दुनिया में नहीं हैं. भारत में मेरे भतीजे और पोते हैं. कभी-कभी मैं उनसे बात करता हूं. क्या आप कभी बनारस जाएंगे?’’ सनाउल्लाह ने कहा कि अगर मौका मिला तो एक बार बनारस जरूर जाऊंगा.

बनारस शहर आने वाले लोगों को अल्ताफ भाई की बनारसी बिरयानी जरूर चखनी चाहिए. इस बिरयानी को पकाने में इस्तेमाल होने वाले मसाले तो वही हैं, लेकिन स्वाद बिल्कुल अलग है. चावल का रंग शहर की अन्य बिरयानी की तरह पीला नहीं, बल्कि सफेद है. इसमें काली मिर्च के टुकड़े मिलाये जाते हैं .अल्ताफ भाई इसे कच्चे प्याज के साथ परोसते हैं.

बिरयानी खाने के बाद लोग मोईन भाई का बनारसी पान खाना नहीं भूलते. आमतौर पर कराची में ज्यादातर पान विक्रेता बंगाल से हैं, लेकिन मोइनभाई बनारस के मदनपुरा से आए थे. बनारस ही नहीं, कराची में भी झरना है. बनारस शहर से थोड़ा आगे बढ़ें, तो ऐसा लगेगा जैसे आप पटना, गया,बिहारशरीफ या दानापुर में हैं. यहां के लोग, उनके कपड़े और खान-पान सब बिहार की संस्कृति को दर्शाते हैं.

मणि बिहार या ओरंगी टाउन का पारंपरिक स्ट्रीट स्नैक एक त्वरित नाश्ता है. यहां हर दूसरे कोने पर आपको सामान बेचने वाली गाड़ियां मिल जाएंगी. 50 रुपए में चना, नींबू, प्याज, अदरक और मसाले का स्वाद लाजवाब है. 1947 में जब देश का विभाजन हुआ, तो भारत के विभिन्न हिस्सों से लोग यहां आकर बस गये. शुरुआत में बिहार से लोग पंजाब, खैबर पख्तूनख्वा और पश्चिमी पाकिस्तान के सिंध में चले गए थे. बाद में वापस लौट आए.

 

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