असमः नलबाड़ी में दो लाख हिंदू-मुस्लिम एक साथ शामिल होंगे दिवाली और श्यामा पूजा में

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 13-11-2023
Diwali and Shyama Puja together
Diwali and Shyama Puja together

 

दौलत रहमान / गुवाहाटी

आधी सदी से भी पहले पश्चिमी असम के नलबाड़ी जिले में हिंदू और मुस्लिम ग्रामीणों ने शांति और सद्भाव से रहने की पहल शुरू की थी. इस पहल ने अब एक नया रूप ले लिया है और संधेली, पोकुआ और पानीगांव गांवों के लगभग 2 लाख ग्रामीण अब अपनी विविध धार्मिक पहचान के बावजूद दिवाली मनाते हैं और काली पूजा एकसाथ करते हैं.

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मिलन चौक की सर्बोजनिन श्री श्री श्यामा पूजा समिति के अध्यक्ष मोहम्मद इब्राहिम अली ने बताया, ‘‘कई साल पहले संधेली, पोकुआ और पानीगांव के हमारे पूर्वजों (हिंदू और मुस्लिम दोनों) ने कसम खाई थी कि वे सांप्रदायिक गड़बड़ी को कहीं भी और कभी इन तीन गांवों तक नहीं पहुंचने देंगे. वे प्रतिदिन तीन गांवों की ओर जाने वाली सड़कों के संगम स्थल पर मिलते थे और चर्चा करते थे कि विविधताओं के बीच अपनी अद्वितीय एकता कैसे कायम रखी जाए. हमारे पूर्वजों के मिलन स्थल का नाम अब ‘मिलन चौक’ रखा गया है. ऐसी बैठकों के दौरान, ग्रामीणों ने एक-दूसरे के त्योहारों को आयोजित करने और अच्छी भावनाएं साझा करने में मदद करने का फैसला किया था.’’ उन्होंने कहा, ‘‘लगभग एक दशक पहले हमारे पूर्वजों के सद्भाव में रहने के प्रयास के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि के रूप में हम दोनों हिंदू और मुस्लिमों ने मिलन चौक पर एक साथ दिवाली मनाना शुरू किया था और जोर आज भी जारी है.’’

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तीनों गांवों के पूर्वजों द्वारा मिलन चौक पर नियमित बैठकों से ग्रामीणों को सबसे कठिन समय में भी सद्भाव बनाए रखने में मदद मिली है. अली ने आवाज-द वॉयस को बताया कि मिलन चौक पर श्यामा पूजा के आयोजन के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं. उन्होंने कहा कि श्यामा पूजा और दिवाली के माध्यम से ग्रामीण (हिंदू और मुस्लिम) अपने गांवों से सभी बुरी ताकतों और तत्वों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं. ‘श्यामा’ मां काली का ही एक नाम है, जो विघटन और विनाश की हिंदू देवी हैं और बुरी ताकतों का ध्वंस करती हैं.

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अली ने कहा, ‘‘इस तरह की पूजा और दिवाली के आयोजन का दूसरा उद्देश्य ग्रामीणों के बीच भाईचारे की भावना को और मजबूत करना है. तीसरा उद्देश्य हमारे पूर्वजों के अच्छे कार्यों को याद करना है.’’

समिति के उपाध्यक्ष परमेश सरमा ने कहा कि हिंदुओं और मुसलमानों द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित त्योहार तीन गांवों के लोगों के लिए एकसाथ जुड़ने का अवसर होते हैं. सरमा ने कहा, “पुराने समय के विपरीत, इन दिनों काम के लिए कई लोगों को गांवों से बाहर जाना पड़ता है. इसलिए इस प्रकार के त्योहार कई लोगों के लिए साल में एक बार अपने गांवों में वापस आने और अपनी जड़ों को समझने का अवसर पैदा करते हैं.”

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समिति दोनों धर्मों के लोगों द्वारा मनाए जाने वाले त्योहारों जैसे ईद और रोंगाली बिहू का भी आयोजन करती है. सरमा ने कहा कि उत्सव की रस्मों के बाद सामुदायिक भोज का ग्रामीण बेसब्री से इंतजार करते हैं.

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अली ने कहा कि समिति 11 और 12 नवंबर को मिलन चौक पर श्यामा पूजा और दिवाली का आयोजन करेगी. गांवों को हरा-भरा और स्वच्छ बनाने के लिए दो दिवसीय उत्सव के दौरान धार्मिक अनुष्ठानों के अलावा वृक्षारोपण अभियान भी चलाया जाएगा.

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