आफगानिस्ताननामा: तलावर की ताकत और मुहब्बत का पुल

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 13-10-2021
आफगानिस्ताननामा: तलावर की ताकत और मुहब्बत का पुल
आफगानिस्ताननामा: तलावर की ताकत और मुहब्बत का पुल

 

आफगानिस्ताननामा 11

 

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इंसान कभी पूरी तरह हार नहीं मानता और इंसानियत को कभी पूरी तरह हराया नहीं जा सकता.इसलिए तमाम जुल्म और कत्लोगारत के बीच भी मुहब्बत के स्वर फूटते हैं और कभी-कभी तो ये पूरी दुनिया में छा जाते हैं.यही तेरहवीं सदी के मध्य एशिया में भी हुआ.

जिस समय चंगेज खान का जुल्म शुरू हुआ तभी 30 सितंबर 1207 में बल्ख में एक बच्चे का जन्म हुआ जिसे जलालुद्दीन मुहम्मद का नाम दिया गया. हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि उसका जन्म बल्ख में नहीं वख्श में हुआ जो आज तजाकिस्तान में है.लेकिन इससे कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि ये दोनों ही जगहें उस समय ख्वारजमशाह के नियंत्रण में थीं और जल्द ही इन जगहों पर चंगेज खान का कब्जा हो गया.

मजहबी शिक्षा और साहित्य से प्रेम करने वाला यह बच्चा जब बड़ा हुआ सूफी परंपरा का सबसे बड़ा शायर बना.वह रम नाम की जगह का रहने वाला था इसलिए उसने अपने नाम के आगे रूमी का तखल्लुस लगा लिया.

कुछ जगह यह भी कहा गया है कि जिसे आज हम जलालुद्दीन मोहम्मद रूमी नाम से जानते हैं.दरअसल,उसका पूरा नाम मुहम्मद बिन अल-हुसैन अल-किताबी अल-बल्खी अल-बक्री था.यह भी कहा जाता है कि रूमी अबू बकर की वंश परंपरा में था.हालांकि इतिहास के सभी विद्वान इससे सहमत नहीं हैं.

बल्ख आज अफगानिस्तान में है लेकिन उस दौर में वह पारसी संस्कृति और खासकर सूफी परंपरा एक बड़ा केंद्र था.रूमी के पिता बहाउद्दीन वलद भी सूफी परंपरा में ही यकीन करते थे और इस परंपरा की शिक्षा भी देते थे.इसी वजह से उन्हें सुल्तान अल-उलेमा भी कहा जाता था और सुल्तान वलद भी,इसलिए मुमकिन है कि रूमी पर पहला प्रभाव उनके पिता का ही पड़ा हो.

रूमी अभी आठ साल के ही थे कि बल्ख पर मंगोल सेनाओं ने हल्ला बोल दिया.उसके पिता अपने पूरे परिवार और कुछ खास शागिर्दों के साथ वहां से निकल कर ईरान के शहर निशपुर में पहंुच गए.इसी शहर में पारसी के प्रसिद्ध शायर अतर रहते थे.अतर ने न सिर्फ रूमी की प्रतिभा को पहचाना बल्कि उसे निखारा भी.

वह अस्थिरता का दौर था और इस परिवार को जल्द ही निशपुर भी छोड़ना पड़ा, उसके बाद वे बगदाद गए और फिर पूरा परिवार शहर दर शहर भटकता रहा.आखिर में यह परिवार अगले सात साल के लिए करमन नाम के शहर में बस गया जो इस समय तुर्की में है.इस बीच रूमी की मां और उनके एक भाई का निधन हो गया.जाहिर है रूमी पर इन सब चीजों का गहरा असर पड़ा.

फिर एक बार जब यह परिवार वहां से निकल कर कोन्या नाम के शहर में पहुंचा तो वहां उसके पिता एक मदरसे के प्रमुख मौलवी हो गए.सुल्तान वलद के निधन के बाद यह ओहदा रूमी को मिल गया और रूमी ने फिर अपना बाकी जीवन इसी शहर में गुजारा.

इस बीच रूमी की मुलाकात शम्स-ए-तरब जी नाम के एक दरवेश से हुई और इस मुलाकात के बाद रूमी का जीवन पूरी तरह से बदल गया.शम्स पूरी दुनिया घूम चुके थे और रूहानियत का उनका तजुर्बा बहुत लंबा था.उनसे मिलने के बाद रूमी ने जिंदगी, मौत और इस दुनिया को नए तरीके से समझना शुरू किया.

फिर एक दिन शम्स की हत्या हो गई। कहा जाता है कि यह हत्या रूमी के बेटे ने ही की थी क्योंकि वह दोनों की दोस्ती से खुश नहीं था.तब तक सूफी शायरी की दुनिया में रूमी का नाम बहुत बड़ा हो चुका था.अपने दोस्त की याद में उन्होंने एक किताब लिखी जिसे दीवान-ए-शम्स-ए-तरबीजी के नाम से जाना जाता है.

इसमें वे अपने दोस्त के बारे में लिखते हैं- मुझे उसे क्यों खोजना चाहिए/ मैं तो वही हूं जो वे हैं/ उनकी आत्मा ही मेरी जबान से बोलती है/ मैं तो बस अपने आप को खोज रहा हूं.तब तक रूमी दुनिया के एक बड़े शायर बन चुके थे.उनकी शायरी, उनकी रुबाइयां और उनकी गजलें मोहब्बत की बात करती थीं और जिंदगी के हर लम्हे को भरपूर जीने की.

जिंदगी के लिए उनके नजरिये को सिर्फ उनकी एक पंक्ति से ही समझा जा सकता है- तुम्हारे और हर चीज के बीच बस मुहब्बत का एक पुल है.मुहब्बत के इस पुल की अपील उस जितनी थी आज भी उतनी ही है.बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका में जिस कवि की किताबें आज भी सबसे ज्यादा बिकती हैं वे रूमी ही हैं.तकरीबन यही हाल बाकी दुनिया में भी है.

चंगेज खान के बारे में कहा जाता है कि वे पूरी दुनिया जीत लेना चाहता था.बहुत से देशों को उसने जीता भी लेकिन पूरी दुनिया को उसकी तलवार कभी नहीं जीत पाई,लेकिन रूमी की शायरी ने पूरी दुनिया के दिलों को जीत लिया.

बेशक उनकी शायरी तलवारों के अत्याचार और उनसे पैदा की गई नफरत को कभी हमेशा के लिए नहीं खत्म कर पाई, लेकिन तलवारों की ताकत भी मुहब्बत के उन लफ्जों को कहां खत्म कर पाती है जो कभी भी किसी भी युद्ध भूमि में अचानक ही अंकुरित होकर तलवार की ताकत को चुनौती देने लगते हैं.

….जारी

नोट: यह लेखक के अपने विचार हैं

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )