अफगानिस्ताननामा : सबको हराने वाला खुद कुदरत से हार गया

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 23-10-2021
अफगानिस्ताननामा
अफगानिस्ताननामा

 

अफगानिस्ताननामा 14

 

हरजिंदर

भारत पर राज करने का लोभ तो तैमूर ने छोड़ दिया लेकिन नई जगहों पर आक्रमण करने और नए देश जीतने का लोभ वह नहीं छोड़ सका.भारत से लौटते ही वह फिर सक्रिय हुआ और उसने पश्चिम एशिया में वह सारा इलाका पूरी तरह से जीत लिया जिसे लेवांत कहा जाता था.इसके बाद बच गया था चीन। चीन को जीते बिना चंगेज खान बनने का उसका ख्वाब अधूरा ही रहता.

चंगेज खान के जाने के बाद चीन तब तक काफी बदल चुका था.चंगेज खान के बाद चीन का इलाका उनके वंशज कबुलई खान के पास आ गया.कबुलई ने वहां युआन साम्राज्य की स्थापना की.लेकिन कुछ समय बाद ही चीन में मंगोल शासन की उलटी गिनती शुरू हो गई.एक बार फिर चीन की मूल हाॅन जनजाति ने अपना दबदबा बनाना शुरू कर दिया.और यही सिलसिला जब आगे बढ़ा तो वहां मिंग साम्राज्य की स्थापना हुई.

शुरू में ऐसा नहीं लग रहा था कि तैमूर मिंग साम्राज्य पर आक्रमण करेगा.इसकी एक वजह थी कि तैमूर के साम्राज्य और मिंग साम्राज्य के बीच उस समय तक अच्छे व्यापारिक रिश्ते थे.जैसा कि हम पहले भी देख चुके हैं कि यही वह दौर था जब चीन से निकल कर मध्य एशिया के रास्ते यूरोप तक जाने वाले रेशम मार्ग पर आवागमन सबसे ज्यादा था.

लेकिन तैमूर की प्राथमिकता किसी समृद्ध देश का नायक बनने के बजाए युद्ध का नायक बनने की थी। चीन को जीतने का सपना आंखों में भरकर उसने अपनी फौज को चीन की ओर बढ़ने का आदेश दिया.

तैमूर किसी भी मौसम में किसी भी तरह के भूभाग पर युद्ध लड़ सकता था.लेकिन सर्दी बीत जाने के बाद वसंत का मौसम हमला करने के लिए उसका प्रिय मौसम था.लेकिन चीन के मामले में उसने वसंत का इंतजार करने की भी जरूरत नहीं समझी और सर्दी के मौसम में ही 70साल का यह बूढ़ा सम्राट अपने 20हजार सैनिकों के साथ हमला करने निकल पड़ा.

कहा जाता है कि रास्ते में ही उसे निमोनिया हो गया और इसी वजह से दुनिया के सबसे ताकतवर सम्राट का निधन हो गया.अपने 35साल के शासनकाल में तैमूर ने कभी एक भी लड़ाई नहीं हारी थी.उसने हर जगह हर मोर्चे पर जीत हासिल की थी, हर किसी को हराया था.

लेकिन प्रकृति की ताकत को वह भला कैसे जीत सकता था.किसी भी लड़ाके की तरह ही वह युद्ध के मैदान में तो मारा गया लेकिन युद्ध लड़ते हुए नहीं बल्कि बीमारी से.इसी के साथ चंगेज खान जितना प्रतापी बनने का तैमूर का सपना भी हमेशा के लिए मिट गया.

तैमूर ने अपने शासन क्षेत्र को नाम दिया था तूरान.उस दौर के स्मारकों में कईं जगह तूरान शब्द का जिक्र आता है.यह एक बहुत बड़ा क्षेत्र था जो एक तरफ सिंधु नदी के पार पंजाब से शुरू होकर यूरोप में रूस, जार्जिया और क्रीमिया तक जाता था, तो दूसरी तरफ ईरान, इराक और सीरिया वगैरह बहुत से इलाके इसमें शामिल थे.

तैमून के निधन के बाद यह सारा भूभाग उसके वंशजों को मिल गया.लेकिन उनकी आंखों में न तो तैमूर वाले सपने थे और न ही वह सामरिक कुशलता जिससे युद्ध के मैदान पर किसी को भी धूल चटाई जा सकती थी.इसलिए धीरे-धीरे सब बिखरने लगा.

अपने जीवन काल में तैमूर एक-एक करके जो इलाके जीतता गया उनके शासन को अपने बेटों और पोतों के हवाले करता गया.तैमूर के निधन के बाद उनके बीच विवाद शुरू हो गया.हर किसी ने अपने इलाके को आजाद घोषित कर दिया.जिस भूभाग का तैमूर तूरान कहता था, उसका तैमूर से पहले का कोई इतिहास नहीं था, तैमूर के बाद उसका कोई भविष्य भी नहीं रह गया

हालांकि तैमूर के वंशज अगले कुछ साल तक शासन करते रहे, लेकिन मध्य एशिया में एक और बड़े बदलाव की तैयारी शुरू हो गई थी.

नोट: यह लेखक के अपने विचार हैं

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )