मोहम्मद रफ़ीक़ चौहान – समाजसेवा, शिक्षा और न्याय के प्रहरी

Story by  फिरदौस खान | Published by  onikamaheshwari | Date 10-12-2025
Mohammed Rafiq Chauhan – a guardian of social service, education, and justice
Mohammed Rafiq Chauhan – a guardian of social service, education, and justice

 

माज में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनकी उपलब्धियां केवल उनके परिवार के लिए गर्व का कारण नहीं होतीं, बल्कि पूरे शहर और प्रदेश के लोग उन पर गर्व महसूस करते हैं। हरियाणा के करनाल के वरिष्ठ अधिवक्ता और समाजसेवक मोहम्मद रफ़ीक़ चौहान ऐसे ही बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। वे न केवल एक अनुभवी वकील हैं, बल्कि एक समर्पित शिक्षक और गंभीर लेखक भी हैं, जिन्होंने अपने जीवन को जनसेवा और न्याय के मार्ग पर समर्पित कर दिया है। आवाज द वॉयस की सहयोगी डॉ. फ़िरदोस खान ने हरियाणा से द चेंजमेकर सीरीज के लिए मोहम्मद रफ़ीक़ चौहान पर यह विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है।  

मोहम्मद रफ़ीक़ चौहान कहते हैं, “ज़िन्दगी को बेहतर बनाने के लिए केवल भाग्य ही पर्याप्त नहीं होता, इंसान को स्वयं भी मेहनत करनी पड़ती है। भाग्य और प्रयास मिलकर ही सफलता सुनिश्चित करते हैं। जो केवल भाग्य पर भरोसा करता है, वह कभी वास्तविक उपलब्धि नहीं हासिल कर सकता। मेरी ज़िन्दगी इसी सिद्धांत का प्रमाण है।” उनका जन्म 22 अप्रैल 1954 को हरियाणा के करनाल ज़िले के गांव उचाना के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता नवाब खेतीबाड़ी करते थे और मां मक़सूदी घरेलू महिला थीं। माता-पिता के अनपढ़ होने के बावजूद रफ़ीक़ का पढ़ाई में विशेष रुचि थी, जिसने उन्हें उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर किया।
 
उनकी शिक्षा का सफर आसान नहीं था। वे बताते हैं कि आठवीं कक्षा के बाद उनकी मां उन्हें किसी के घर काम करने के लिए भेजना चाहती थीं, लेकिन ईश्वर की इच्छा कुछ और थी। उन्होंने कठिन परिश्रम करते हुए दसवीं पूरी की और आगे की पढ़ाई जारी रखी। अपने जीवन निर्वाह के लिए उन्होंने साइकिल पर फेरी लगाई, चाय की दुकान चलायी और एक डॉक्टर के पास दो साल तक कम्पाउडरी का काम किया। इसके बाद उन्होंने रेडियो और ट्रांजिस्टर की मरम्मत का काम सीखकर 1975 में करनाल के रामनगर में एक दुकान खोली, जिसे वे 1995 तक चलाते रहे। इस दौरान वे सुबह से दोपहर तक कॉलेज जाते और दोपहर से रात तक दुकान में काम करते। इसी दौरान उनकी शादी हुई।
 
शिक्षा के महत्व को उन्होंने हमेशा प्राथमिकता दी। उन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से हिंदी और लोक प्रशासन में एम.ए. किया। इसके बाद 1983 में उन्होंने करनाल के तरावड़ी में ‘गीता पब्लिक स्कूल’ खोला। हालांकि शुरूआत में यह योजना सफल नहीं हुई, लेकिन हार नहीं मानी। 1984 से उन्होंने तरावड़ी और पखाना में ‘सरस्वती पब्लिक स्कूल’ स्थापित किए, जो आज उनके दोनों बेटों के नेतृत्व में चल रहे हैं। उनके स्कूल में बच्चों को सिर्फ़ किताबों का ज्ञान नहीं, बल्कि व्यवहारिक और नैतिक शिक्षा पर भी जोर दिया जाता है। महापुरुषों की जयंती और पुण्यतिथियों पर बच्चों को उनके जीवन और शिक्षाओं से परिचित कराया जाता है।
 
रफ़ीक़ चौहान का मानना है कि शिक्षा केवल नौकरी पाने का साधन नहीं, बल्कि व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास का माध्यम है। वे कहते हैं, “अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को जीवन मूल्यों की शिक्षा दें। आजकल प्रेम विवाह एक फ़ैशन बन गया है। युवा माता-पिता की सलाह को नज़रअंदाज़ करके घर से भागकर विवाह कर लेते हैं। इसके परिणामस्वरूप कई बार उनकी ज़िंदगी असमय कठिनाइयों का शिकार हो जाती है। बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार करके ही उन्हें सही दिशा दी जा सकती है।”
 
रफ़ीक़ चौहान ने न्याय और वकालत को भी अपने जीवन का उद्देश्य बनाया। उन्होंने 1997 से करनाल में वकालत की शुरुआत की और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए समर्पित होकर काम किया। गरीब और असहाय महिलाओं के मुकदमों में वे बिना कोई शुल्क लिए उनकी मदद करते हैं। वे कहते हैं, “कई महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें उनके पति या ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया। उनके पास खाने का भी साधन नहीं होता। ऐसे लोगों को न्याय दिलाना मेरा कर्तव्य है।” वे अपने ग्राहकों के लिए क़ानूनी सलाह और स्टेशनरी का खर्च भी स्वयं वहन करते हैं।
 
रफ़ीक़ चौहान अपने ज्ञान को साझा करने में विश्वास रखते हैं। उन्होंने कई व्हाट्सएप समूह बनाए हैं, जैसे ‘क़ानून_संदर्भ’, ‘क़ानूनी_अपडेट’ और ‘#क़ानूनी_अपडेट’, जिनमें नए और वरिष्ठ अधिवक्ताओं को नि:शुल्क क़ानूनी ज्ञान और दैनिक अपडेट्स प्रदान किए जाते हैं। इसके अलावा उन्होंने ‘क़ुरान-ए-पाक तालीमात’ नामक समूह भी चलाया, जिससे लोगों को धर्म और नैतिकता के बारे में जानकारी मिलती है। उनका मानना है कि किसी भी धर्म का मूल संदेश मानवता को सर्वोपरि मानना है, इसलिए बिना भेदभाव के हर जरूरतमंद की मदद करनी चाहिए।
 
सामाजिक क्षेत्र में भी रफ़ीक़ चौहान सक्रिय हैं। वे ‘हरियाणा मुस्लिम ख़िदमत सभा’ नामक स्वयंसेवी संस्था चलाते हैं, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और महिला अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाती है। उन्होंने तरावड़ी में एक पुरानी मस्जिद की मरम्मत करवाई और वहां इमाम की नियुक्ति करवाई। इसके अलावा पंजाब के संगरूर जिले के गांव मजारा में मस्जिद का पुनर्निर्माण कराकर मुस्लिम समुदाय को उनकी धार्मिक आवश्यकता पूरी की।
 
लेखन के क्षेत्र में भी वे सक्रिय रहे। 1986 से 2006 तक उन्होंने विभिन्न समाचार पत्रों में लेख लिखे और 2021 में उनकी पुस्तक ‘फ़ैमिली लॉ इन इंडिया’ प्रकाशित हुई, जिसे पाठकों ने खूब सराहा।
 
मोहम्मद रफ़ीक़ चौहान का जीवन युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि शिक्षा, ईमानदारी, मेहनत और समाजसेवा के द्वारा व्यक्ति न केवल अपने जीवन को संवार सकता है, बल्कि पूरे समाज के लिए मिसाल कायम कर सकता है। अल्लामा इक़बाल के शब्द उनके जीवन दर्शन को बखूबी व्यक्त करते हैं:
 
“ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है।”
 
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रफ़ीक़ चौहान की ज़िन्दगी यह संदेश देती है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कठिन परिस्थितियों के बावजूद भी सफलता और समाज सेवा का मार्ग संभव है। उनका जीवन हर युवा के लिए सीख और प्रेरणा का स्रोत है।