छत्तीसगढ़ की मिट्टी से जन्मा कवि, जो लोगों के दिलों में बसता है

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 10-10-2025
A poet born from the soil of Chhattisgarh, who lives in the hearts of the people.
A poet born from the soil of Chhattisgarh, who lives in the hearts of the people.

 

xजब भी छत्तीसगढ़ में कविता की बात होती है, तो जो पहला नाम मन में कौंधता है, वह है मीर अली 'मीर'.एक ऐसा कवि जिनकी रचनाएँ लोगों के दिलों को छू जाती हैं. उनकी संवेदनाओं को जगाती हैं और लोक-जीवन की सच्चाइयों को शब्दों में ढालती हैं.उनका असली नाम सैयद अय्यूब अली मीर है, लेकिन साहित्यिक गलियारों में वे मीर अली 'मीर' के नाम से ही पहचाने जाते हैं.छत्तीसगढ़ी बोली की सहज लय और उसमें रची-बसी जनसंवेदना को हास्य, व्यंग्य, ग़ज़ल और लोकगीतों के माध्यम से अभिव्यक्त करने में उन्हें महारत हासिल है.यही वजह है कि वे "जनता के कवि" के रूप में व्यापक रूप से स्वीकार किए जाते हैं.आवाज द वाॅयस की सहयोगी मंदकिनी मिश्रा ने रायपुर से द चेंज मेकर्स सीरिज के लिए जनकवि मीर अली ‘मीर’ पर यह विस्तृत और विशेष रिपोर्ट की है.

मीर अक्सर कहा करते हैं, “छत्तीसगढ़ी मुझे माँ के दूध की तरह मिली,” और यह कथन मात्र एक भावुकता नहीं, बल्कि उनके गहरे भाषाई और सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रमाण है.यह वही भाषा है जो उन्होंने अपनी माँ से सीखी, और अपने गाँव की मिट्टी में खेलते-बढ़ते आत्मसात की.उनकी कविताओं में जो सादगी है, वह कहीं भी कृत्रिम नहीं लगती, बल्कि उसमें जीवन के गहरे अनुभव और सत्य अंतर्निहित होते हैं.

उनकी ग़ज़लें प्रेम और विरह के कोमल भावों से लेकर जीवन के कटु यथार्थ तक को स्पर्श करती हैं, जबकि छत्तीसगढ़ी sरचनाओं में लोक परंपराओं, रीति-रिवाजों और ग्रामीण जीवन की खुशबू स्पष्ट झलकती है.वे न केवल भाषा के प्रति गौरव जगाते हैं, बल्कि समाज के उपेक्षित, संघर्षशील और भावनात्मक पक्षों को स्वर देते हैं.

15 मार्च 1953 को कवर्धा में जन्मे मीर अली 'मीर' का जीवन छत्तीसगढ़ की साहित्यिक धारा से गहराई से जुड़ा हुआ है.उनके पिता सैयद रहमत अली मीर और माता सैयद शरीफ़ा बानो ने एक ऐसे पुत्र का पालन किया जो आगे चलकर छत्तीसगढ़ी साहित्य को नई ऊँचाइयों तक ले जाने वाला बना.उन्होंने बी.ए. और सी.पी.एड. की शिक्षा ग्रहण की, लेकिन जल्द ही साहित्य ही उनका जीवन बन गया.उन्होंने अपनी शिक्षा की शुरुआत कवर्धा से की और आगे की पढ़ाई रायपुर में पूरी की.

युवावस्था में ही उन्होंने लेखन में रुचि लेना शुरू कर दिया और मीर तकी मीर, ग़ालिब और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जैसे महान शायरों से प्रेरणा पाई.उनकी साहित्यिक यात्रा उर्दू ग़ज़लों और नज़्मों से शुरू हुई, लेकिन उन्होंने स्वयं को मात्र उर्दू या हिंदी तक सीमित नहीं रखा.उन्होंने छत्तीसगढ़ी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया और इस भाषा को साहित्यिक मंच पर नई प्रतिष्ठा दिलाई.

dउनकी कविताएँ न केवल भावनाओं की सच्ची अभिव्यक्ति हैं, बल्कि वे छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति, पर्व-त्योहारों, लोकगीतों और जनजीवन की आत्मा को भी समेटे हुए हैं.उनका मानना है कि साहित्य का कोई भी रूप तब तक अधूरा है, जब तक वह समाज की नब्ज़ को नहीं छूता.यही वजह है कि पिछले 25 वर्षों से उनकी कविताएँ दूरदर्शन, ऑल इंडिया रेडियो, क्षेत्रीय चैनलों और सरकारी सांस्कृतिक आयोजनों में नियमित रूप से गूंजती रही हैं.

मीर अली 'मीर' संत पवन दीवान को अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं और कहते हैं कि उन्होंने बचपन से ही अपने जीवन के अनुभवों को कविता में ढालना शुरू कर दिया था.सामाजिक मूल्यों और ग्रामीण सद्भावना को वे अपनी कविताओं में ऐसे पिरोते हैं कि श्रोता या पाठक बरबस ही जुड़ जाता है.वे राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय अनेक काव्य मंचों पर देश के लगभग सभी प्रमुख कवियों के साथ कविता पाठ कर चुके हैं और साथ ही छत्तीसगढ़ के युवा कवियों को भी आगे बढ़ने का मंच प्रदान किया है.

मीर अली 'मीर' को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए हैं.उन्हें पंडित सुंदरलाल शर्मा राज्य पुरस्कार, राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा 2019 में छत्तीसगढ़ राज्य अलंकरण पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

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उनकी कई पुस्तकें और कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिन्होंने छत्तीसगढ़ी साहित्य को समृद्ध करने में बड़ी भूमिका निभाई है.वर्तमान में वे कवर्धा से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका ‘अरुण चौरा’ का संपादन करते हैं और चेतना कला साहित्य परिषद का संचालन भी कर रहे हैं, जो स्थानीय रचनाकारों को एक सार्थक मंच उपलब्ध कराती है.

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मीर अली 'मीर' ने अपने साहित्यिक जीवन में अनेक महत्वपूर्ण मंचों पर कविता पाठ किया है, जिनमें छत्तीसगढ़ विधानसभा (2012), राज्योत्सव (2012), नवभारत हास्य कवि सम्मेलन, रायगढ़ का चक्रधर समारोह, जांजगीर का जाज्वलदेव महोत्सव, सिरपुर और डोंगरगढ़ महोत्सव, भोरमदेव उत्सव और छत्तीसगढ़ उर्दू अकादमी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय मुशायरे शामिल हैं.इन मंचों से उन्होंने न केवल छत्तीसगढ़ी साहित्य को एक नई पहचान दी, बल्कि इसे राज्य की सीमाओं से बाहर देश भर में सम्मान दिलवाया.

जनकवि मीर अली ‘मीर

मीर अली 'मीर' का साहित्यिक जीवन इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार एक कवि समाज की आत्मा से जुड़कर अपनी भाषा और संस्कृति को जीवंत बना सकता है.उनकी रचनाएँ मनोरंजन से कहीं आगे जाकर सामाजिक संवाद का माध्यम बन जाती हैं.आज जब क्षेत्रीय भाषाओं और लोक-संस्कृति को वैश्वीकरण के प्रभाव से चुनौती मिल रही है, ऐसे समय में मीर अली 'मीर' जैसे कवियों की उपस्थिति न केवल सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा करती है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़े रखने का मार्ग भी प्रशस्त करती है.