नई दिल्ली।
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) वर्ष 2026 की शुरुआत में बैंकिंग प्रणाली में बड़ी मात्रा में तरलता डाल सकता है। एचएसबीसी एसेट मैनेजमेंट की एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, आरबीआई जनवरी से मार्च 2026 की पहली तिमाही में खुले बाजार परिचालनों (ओपन मार्केट ऑपरेशंस—OMO) के ज़रिये करीब 1.5 लाख करोड़ से 2.5 लाख करोड़ रुपये तक की तरलता प्रणाली में प्रवाहित कर सकता है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पहली तिमाही के बाद, पूरे कैलेंडर वर्ष 2026 के दौरान आरबीआई अतिरिक्त 2 लाख करोड़ से 3 लाख करोड़ रुपये के ओएमओ कर सकता है। हालांकि, यह काफी हद तक केंद्रीय बैंक की बैलेंस शीट में विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों के बढ़ने या घटने पर निर्भर करेगा। रिपोर्ट में कहा गया, “हमें 2026 की पहली तिमाही में 1.5–2.5 लाख करोड़ रुपये के ओएमओ की उम्मीद है, जबकि साल के बाकी हिस्से में 2–3 लाख करोड़ रुपये और डाले जा सकते हैं।”
एचएसबीसी के मुताबिक, इतनी बड़ी तरलता आपूर्ति से सरकारी बॉन्ड बाजार में मांग–आपूर्ति का संतुलन अनुकूल हो सकता है, जिससे केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों को समर्थन मिलेगा। बॉन्ड बाजार के लिए एक अहम ट्रिगर भारत का ब्लूमबर्ग ग्लोबल एग्रीगेट इंडेक्स में शामिल होना भी हो सकता है। यदि 2026 की पहली तिमाही में इसकी पुष्टि होती है, तो विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) से 15–20 अरब डॉलर तक का निवेश आ सकता है, जो सरकारी बॉन्ड के लिए बेहद सकारात्मक माहौल बनाएगा।
मैक्रोइकॉनॉमिक मोर्चे पर रिपोर्ट का कहना है कि मौजूदा परिस्थितियां ब्याज दरों को स्थिर रखने और लंबे समय तक निचले स्तर पर बनाए रखने के पक्ष में हैं। हालांकि, बाहरी क्षेत्र और वैश्विक घटनाक्रम से जुड़े जोखिम अभी भी बने हुए हैं। जैसे-जैसे मौद्रिक नीति में ढील का दौर अपने अंत की ओर बढ़ेगा, फिक्स्ड-इनकम बाजारों में उतार-चढ़ाव और अस्थिरता बढ़ सकती है।
रिपोर्ट में रुपये की चाल को एक बड़ी चिंता बताया गया है। 2025 के दौरान डॉलर की बढ़ती मांग, व्यापार घाटे में इज़ाफा और पूंजी के बहिर्गमन ने रुपये पर दबाव डाला है। हालांकि, अमेरिका के साथ किसी शुरुआती व्यापार समझौते से भारत को अन्य निर्यातक देशों के मुकाबले बेहतर स्थिति मिल सकती है।
एचएसबीसी का मानना है कि ऐतिहासिक रूप से रुपया हर दो–तीन साल में तेज़ गिरावट देखता है, जिसके बाद वह घरेलू आर्थिक बुनियाद के अनुरूप स्थिर हो जाता है। मौजूदा हालात में रिपोर्ट का आकलन है कि रुपया अब तेज़ गिरावट के अंत के करीब है और 2026 के बाकी हिस्से में अपेक्षाकृत स्थिर दायरे में रह सकता है।






.png)