अफगानिस्ताननामा : गुलामों का सत्ता पर काबिज होना और महमूद गजनवी की लूट

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 22-09-2021
अफगानिस्ताननामा : गुलामों का सत्ता पर काबिज होना और महमूद गजनवी की लूट
अफगानिस्ताननामा : गुलामों का सत्ता पर काबिज होना और महमूद गजनवी की लूट

 

अफगानिस्ताननामा भाग 5

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उन दिनों मध्य एशिया और पश्चिम एशिया वगैरह में जंग सिर्फ फौजी ही नहीं लड़ते थे, इनमें बड़े पैमाने पर गुलामों को भी इस्तेमाल होता था.जंग के मैदानों पर अपना शौर्य दिखाने वाले कईं गुलाम फौज में उंचे ओहदों पर भी पहंुच जाते थे.

समानिद साम्राज्य में ऐसा ही एक गुलाम था- अल्पटेजिन, जो उसका प्रमुख सिपहसालार बन गया था.गज़नी के रहने वाले इस तुर्क गुलाम ने एक दिन अपने मालिक से बगावत कर दी और एक लंबी लड़ाई के बाद सत्ता पर काबिज हो गया.

 इस्लाम स्वीकार कर चुके इस गुलाम ने सबसे पहले गज़नी पर कब्जा किया और फिर अपने गजनवी साम्राज्य को अबू दरिया और खोरोस्तान की तरफ बढ़ाते हुए पूरे बुखरिस्तान में फैला दिया.यह भी कहा जाता है कि यह साम्राज्य कैस्पियन सागर तक पहंुच गया था.अब जो नया मुल्क सामने आया उसकी राजधानी थी गज़नी.

हालांकि अपना साम्राज्य फैलाने के बाद वह बहुत दिन जीवित नहीं रहा और फिर इस साम्राज्य की बागडोर आ गई उसके बेटे अबू इश्क इब्राहिम के हाथ.अल्पटेजिन के निधन के बाद उनके कुछ पुराने दुशमनों ने गजनी पर हमला बोला लेकिन इब्राहिम उन्हें मात देने में कामयाब रहा.

एक बादशाह के रूप में इब्राहिम की पारी भी बहुत लंबी नहीं चली और तीन साल से कुछ ज्यादा समय तक सत्ता में रहने के बाद उनका निधन हो गया. इब्राहिम की कोई संतान नहीं थी इसलिए वह वंश तो खत्म हो गया लेकिन उनका एक गुलाम तुर्क सिपहसालार था बिल्गेटेजिन जिसने बादशाह के निधन के बाद सत्ता को अपने कब्जे में ले लिया.

बिल्गेटेजिन भी गजनी का ही रहने वाला था इसलिए यह माना जाता है कि इब्राहिम के निधन के साथ सत्ता में बैठा वंश जरूर बदल गया लेकिन गजनवी साम्राज्य जारी रहा.

बिल्गेटेजिन के बाद गजनी की सत्ता बोरीटिजिन के पास आई लेकिन थोड़े ही समय में एक और तुर्क सिपहसालार ने उस पर हमला बोला.यह था साबूटिजिन जो अल्पटेजिन का दामाद भी था.इसी साबूटिजिन ने कभी बुखारा में समानिद साम्राज्य को परास्त किया था.लेकिन आगे के इतिहास में साबूटिजिन को उतना नहीं याद किया जाता जितना उसे बेटे महमूद को याद किय जाता है.

 वही महमूद जिसे हम भारत में महमूद गजनवी के नाम से जानते हैं.हालांकि महमूद को सत्ता आसानी से नहीं मिली.अंतिम समय में साबूटिजिन ने अपने छोटे बेटे इस्माइली को अपना वारिस घोषित कर दिया.

इस्माइली के हाथ में सत्ता आई तो 27 वर्षीय महमूद ने बहुत दिन तक इंतजार नहीं किया और जल्द ही अपने भाई अब्दुल मुजफ्फर को साथ लेकर बगावत कर दी.इसके बाद वह युद्ध हुआ जिसे गजनी की लड़ाई के नाम से ही जाना जाता है.महमूद ने यह लड़ाई जीती और खुद को शाह घोषित करने के बजाए सुल्तान घोषित कर दिया.

सत्ता हाथ में आते ही महमूद अपने राज्य के विस्तार को निकल पड़ा। उसने सबसे पहले उत्तर में हावी हो रहे कबीलों को खदेड़ा और उसके बाद भारत की ओर निकल पड़ा.कहते हैं उसने भारत पर 17 बार आक्रमण किए.

पेशावर में उसकी जंग महाराजा जयपाल से हुई.जयपाल का जब निधन हो गया तो सत्ता उसके बेटे अनंगपाल के हाथ आ गई,लेकिन आखिर में महमूद गजनवी भारत में घुसने में कामयाब हो गया.पेशावर के बाद उसने हमला बोला भयरा नाम के शहर पर जो कभी पोरस की राजधान हुआ करता था.

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भारत के इतिहास का वह अध्याय महमूद गजनवी की सेना द्वारा की गई लूटपाट और अत्याचारों के लिए याद किया जाता है.खासकर दो शहरों में ये अत्याचार सबसे ज्यादा हुए.इनमें से एक शहर था मथुरा.कहते हैं कि मथुरा उस समय उत्तर भारत का सबसे स्मृद्ध शहर था.वहां के मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ दिया गया और सोने-चांदी के सामानों को लूट लिया गया.

 जिन्हें वह गलवा कर अपने साथ ले गया.इसके बाद महमूद की सेना काठियावाड़ तक गई जहां दूसरी भीषण लूटपाट हुई सोमनाथ के मंदिर में.वहां अमीर लोगों के घरों के अलावा मंदिर से सिर्फ सोने चांदी को ही नहीं लूटा गया बल्कि महमूद को मंदिर का भव्य द्वार भी पसंद आ गया और वह उसे उखाड़ कर अपने साथ ले गया.

  कहा जाता है कि उसने सिर्फ सोमनाथ से ही जो सामान लूटा उसकी कीमत 20 लाख दीनार के बराबर थी.
विडंबना यह है कि भारत में उस समय तक इतिहास लेखन की परंपरा नहीं थी इसलिए बहुत कम ही जगह हमें इस लूटपाट का ठीक से जिक्र मिलता है.इस सबका जो भी थोड़ा बहुत जिक्र मिलता है वह उस दौर के मुस्लिम इतहासकारों के लेखन से ही मिलता है.

महमूद ने जो कुछ लूटा उन्हें अपने साथ गजनी ले गया.भारत से की गई इस लूट के चलते जल्द ही गजनी उस दौर का सबसे स्मृद्ध और मशहूर शहर हो गया.भारत पर अपने आक्रमण की याद में उसने गज़नी में दो मीनारें भी बनवाईं.इसी के बाद महमूद ने मशहूर फारसी कवि फिरदौसी और इतिहासकार इब्ने बतूता को बुलाकर अपने दरबार में स्थाई जगह दी.

 इसका मकसद था महमूद के दरबार के यश को पूरी दुनिया में फैलाना,
लेकिन सत्ता का इस तरह यश किसी के भी साथ बहुत दिन तक ठहरता नहीं है.जीत के तमाम अफसानों और भीषण लूट के जरिये जब वह अपनी सल्तनत को चमकाने में लगा था तो बुखरिस्तान में एक ऐसी नई ताकत उभर रही थी जो महमूद का ही नहीं गजनवी साम्राज्य का भी अंत करने वाली थी.

…..जारी

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )