सातवीं कक्षा के बच्चों ने बनाई फिल्म क्लासमेट, बेंगलूरू फिल्म फेस्टिवल में बनी बेस्ट शॉर्ट फिल्म

Story by  शाहताज बेगम खान | Published by  [email protected] | Date 11-05-2022
बच्चों की बनाई फिल्म ने जीता दिल और अवॉर्ड
बच्चों की बनाई फिल्म ने जीता दिल और अवॉर्ड

 

शाहताज खान/ पुणे

क्लासमेट (classmate) फ़िल्म को बेंगलुरू फ़िल्म फेस्टिवल में बेस्ट शॉर्ट फिल्म घोषित किया गया है. शिक्षा के महत्व को प्रस्तुत करने वाली इस फिल्म को सातवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों ने बनाया है. स्वतंत्र फ़िल्म निर्माता जुनैद इमाम शेख़ और उनकी टीम ने बच्चों के विचारों को कैमरे में क़ैद करने में उनकी सहायता की है.

हैरत है कि तालीम _ओ _तरक्की में है पीछे

जिस कौम का आगाज़ ही इकरा से हुआ था

जब भी मौका मिलता है तो साबित कर देते हैं कि हम भी किसी से कम नहीं हैं. गरीबी भूख और मुश्किल हालात के बीच जब गांव के लोगों को शिक्षा की एक किरण, डाक्टर नकादार इंस्टीट्यूट ऑफ नॉलेज की शक्ल में नज़र आई तो उन्होने अपने बच्चों को स्कूल भेजने में देर नहीं की.

गुजरात के गांव नंदासन में डॉक्टर नकदार की कोशिश का ही नतीजा है कि बच्चों को अंग्रेज़ी और गुजराती माध्यम से नर्सरी से बारहवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के लिए दूर नहीं जाना पड़ता.

डॉ. नाकादार इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल दीवान इमरान का कहना है कि हमारे संस्थान की हमेशा यह कोशिश रही है कि बच्चों को उचित वातावरण में फलने फूलने के अवसर प्रदान किए जाएं. ताकि उनका सर्वांगीण विकास हो सके.

उनका कहना है कि बच्चों की रुचि और योग्यता को उभारने के लिए हम उन्हें प्रोत्साहित करते रहते हैं.

कैंपस के हैड अमानुल्लाह शेठवाला कहते हैं, “बच्चों में योग्यता की कमी नहीं होती. उचित वातावरण और थोड़े से प्रयास से उन्हें संवारा जा सकता है. हमारा इंस्टीट्यूट स्कूली शिक्षा के साथ बच्चों में मौजूद विभिन्न सलाहियतों को भी उभारने का प्रयास करता रहता है ताकि हमारे इंस्टीट्यूट के बच्चे न केवल स्कूल बल्कि गांव और देश का नाम पूरी दुनिया में रोशन करें.”

बढ़ते चले गए जो वो मंज़िल को पा गए

पुणे महाराष्ट्र के स्वतन्त्र फ़िल्म निर्माता जुनैद इमाम शेख़ फ़िल्म बनाने के दौरान हुए अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहते हैं, “जब मैं बच्चों से मिला तो मैं ने पाया कि उनके पास आइडिया भी है और उसे कैसे प्रस्तुत करना है उसका एक खाका भी उन्होने तैयार किया हुआ है.”

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वह बताते हैं कि स्टोरी से लेकर फ़िल्म कंपलीट होने तक हर क़दम पर बच्चे उनके साथ थे. वह खुश हो कर बताते हैं कि क्लासमेट का पूरा आईडिया बच्चों का ही है. उन्होनें केवल बच्चों के विचारों और उनके डिज़ाइन को विकसित किया है. हम बच्चों के साथ चलते रहे और खूबसूरत और परभावी शॉर्ट फिल्म बन कर तैयार हो गई जो क्लासमेट की शक्ल में सब के सामने है. जिसकी सराहना चारों ओर हो रही है.

इल्म की शम्मा से रोशन हो गया जब ज़हनो दिल

शिक्षा केवल क्लास में बैठ कर ही प्राप्त नहीं की जाती. आज साइंस और टेक्नोलॉजी के दौर में हर तरफ़ इल्म बिखरा हुआ है जिसे जब चाहे समेटा और सीखा जा सकता है.

सातवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों ने जिस तरह एक क्लासरूम की चारदीवारी से बाहर निकल कर ज्ञान को प्राप्त करने की कोशिश की उसी का नतीजा है कि कि उनकी कोशिश को बेंगलुरू फ़िल्म फेस्टिवल में न केवल सराहना मिली बल्कि अवॉर्ड भी प्रदान किया गया.

इन बच्चों का कहना है कि हालात कितने ही मुश्किल क्यों न हों लेकिन हर हाल में शिक्षा प्राप्त करना है. उज्वल भविष्य की कामना शिक्षा के बिना असंभव है.

शिक्षा के महत्व को आज सभी जानते और मानते हैं. लॉक डॉउन और महामारी ने बच्चों की शिक्षा को बहुत अधिक प्रभावित किया है. लेकिन इसी दौरान टेक्नोलॉजी के सही इस्तेमाल ने बच्चों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचने का रास्ता भी दिखाया है.

क्लासमेट के रूप में बच्चों की सोच की उड़ान को पंख देने में डॉक्टर नाकादार इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने अपना भरपूर सहयोग दिया है. उम्मीद की जा सकती है कि बच्चों की यह कोशिश दूसरे बच्चों के लिए प्रेरणा स्त्रोत साबित होगी.