महाराष्ट्र महिला क्रिकेट में नई दस्तक आयशा अमीन शेख

Story by  शाहताज बेगम खान | Published by  [email protected] • 2 Years ago
महाराष्ट्र रणजी टीम में चुनी गई हैं आयशा शेख
महाराष्ट्र रणजी टीम में चुनी गई हैं आयशा शेख

 

शाहताज खान/ पुणे

आयशा अमीन शेख महाराष्ट्र रणजी ट्रॉफी टीम में अपनी जगह बनाने में सफल रही है. उनका चार साल का संघर्ष अंडर -19 टीम में खेलने में मददगार साबित नहीं हुआ, लेकिन महाराष्ट्र सीनियर में एक ऑलराउंडर क्रिकेट खिलाड़ी की मदद से वह अपनी मंजिल तक पहुंच पाईं. आयशा अमीन शेख अब महाराष्ट्र रणजी ट्रॉफी टीम के साथ मैदान पर प्रदर्शन करने के लिए तैयार हैं.

आयशा अमीन शेख महज 19 साल की हैं. उसने 15 साल की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था. इससे पहले उसने तलवारबाजी में रजत पदक जीता था. जब आयशा ने क्रिकेट खेलना शुरू किया, तो उसने अपना सारा ध्यान और समय क्रिकेट पर देना शुरू कर दिया. वह जल्द ही कॉलेज की टीम में शामिल हो गई.

आयशा ने महाराष्ट्र महिला अंडर-19 क्रिकेट टीम में जगह पाने के लिए तीन प्रयास किए. लेकिन विभिन्न कारणों से वह टीम में जगह पाने में असफल रही. घुटने की चोट के कारण पहला प्रयास नाकाम रहा. घुटने की चोट ने आयशा को लंबे समय तक क्रिकेट के मैदान से दूर रहने के लिए मजबूर कर दिया. लेकिन उनकी इच्छाशक्ति ने उन्हें जल्द ही मैदान में ला दिया. और फिर आयशा ने अगले वर्ष अंडर -19 टीम के लिए अभ्यास करना शुरू कर दिया.

दूसरे प्रयास में, आयशा ने अंतिम 25 खिलाड़ियों में तो जगह बनाने में कामयाबी हासिल की पिछले लेकिन इस बार पूरी तरह फिट नहीं होने के कारण वह टीम का हिस्सा नहीं बन पाई. तीसरे प्रयास ने आयशा को अंडर -19 टीम का हिस्सा बना दिया. वह क्रिकेट मैच का इंतजार कर रही थी लेकिन लॉकडाउन ने मौका छीन लिया. उसने फिर कोशिश की लेकिन इस बार उनकी उम्र अधिक हो गई थी.

लेकिन आयशा अमीन ने हार नहीं मानी. आयशा कहती हैं, “मैं हर टूर्नामेंट में, कभी क्लब के लिए तो कभी कॉलेज की टीम में खेलती हैं.”रणजी ट्रॉफी टीम के लिए चयन के समय आयशा ने नाबाद 46 रन बनाकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया.

एक मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखने वाली आयशा को उसके माता-पिता का पूरा समर्थन मिला, जिसने उसे उसकी मंजिल पर नजर रखने में मदद की. उसके पिता अमीन शेख भी एक क्रिकेटर रह चुके हैं. वह कहते हैं, “जब मुझे पता चला कि आयशा को क्रिकेट में दिलचस्पी है, तोमैंने अपने अनुभव के जरिए उसका मार्गदर्शन करने की पूरी कोशिश की.”

वह बताते हैं, “जब भी मैं उसकी गेंद पर आउट होता तो उस खुशी को बयां करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं होते और जब आयशा ने मेरी गेंद पर छक्का मारा तो मैं खुशी से हवा में उड़ जाता था.”अमीन शेख आगे कहते हैं कि कुछ समय पहले तक क्रिकेट को लड़कों का खेल माना जाता था लेकिन अब हालात बदल गए हैं, लड़कियां भी हर क्षेत्र में अपनी काबिलियत के झंडे गाड़ रही हैं.

आयशा अमीन शेख टॉम बॉय है. वह हमेशा घर के काम और पारंपरिक इस्लामी घूंघट से दूर रहती है. अपने पिता के पूर्ण समर्थन के कारण, उसे कभी किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा. उसका ध्यान केवल लक्ष्य पर रहा है. वह महिला क्रिकेट की दुनिया में अपने लिए एक नाम बनाना चाहती है. आयशा अमीन शेख नीली जर्सी का सपना देख रही है. वह राष्ट्रीय टीम में खेलना चाहती है. आयशा अमीन शेख का मानना है कि आत्मविश्वास ही है सफलता की कुंजी है .