शाहताज खान /पुणे
एमपीएससी परीक्षा में कामयाबी हासिल करने वाली वसीमा शेख पिछले वर्ष जून में ही डिप्टी कलेक्टर के ओहदे की हकदार बन गई थीं. हालांकि कोरोना के कारण वह अभी ट्रेनिंग और अपनी पोस्टिंग की प्रतिक्षा कर रही हैं, लेकिन उनकी मेहनत का सिलसिला अभी भी थमा नहीं है. अब वह यूपीएससी की तैयारी में लग गयी हैं. वह आईएएस बनना चाहती हैं.
वसीम शख नांदेड़ से तकरीबन 45 किलोमीटर दूर एक छोटे से गाँव जोशी संघवी की रहने वाली हैं. उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही जिला परिषद के स्कूल में हुई. दसवीं में मराठी माध्यम से 82 प्रतिशत मार्क्स हासिल करके उनहोंने अपनी पहली सफलता अर्जित की थी. इसके बाद बारहवीं की परीक्षा भी उन्होंने 85 प्रतिशत नंबरों से पास कर यह दिखा दिया कि कामयाबी के लिए कोई भी हालात उनका रास्ता नहीं रोक सकते.
वसीमा शेख के वालिद एक लम्बे समय से मानसिक रूप से बीमार हैं. चार बहनों और दो भाइयों की परवरिश की पूरी जिम्मेदारी उनकी वालिदा ने ही संभाली हुई है. वह खेतों में काम करती थीं और घर-घर जाकर चूड़ियां बेचकर घर का खर्च चलाती थीं. वसीमा की मां चाहती थीं की वसीमा अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें. और उन्होंने अपनी वालिदा को मायूस नहीं किया.
वसीमा शेख की मां
वसीमा शेख के लिए बारहवीं की शिक्षा भी प्राप्त करना आसान न था, क्योंकि गांव में दसवीं तक ही स्कूल था. उन्हें अपने गांव से उस्मान नगर तक पैदल कई किलोमीटर का सफर तय करके जाना पड़ता था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. कुछ समय के लिए वह अपने नाना-नानी के घर रहकर भी पढ़ाई करती रहीं.
वसीमा शेख जानती थीं कि ग्रेजुएशन करना जरूरी है, लेकिन घर के हालत भी ऐसे नहीं थे कि वह रेगुलर पढ़ाई कर सकें. इसलिए उन्हों ने यशवंत राव चौहान ओपन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया.
घर पर रहकर उन्हों ने 2015 में 50 प्रतिशत नंबरों के साथ बीए की डिग्री प्राप्त की. उनके पास कोई मार्गदर्शन करने वाला नहीं था. परन्तु वह यह जानती थीं कि उन्हें एमपीएससी की परीक्षा देना है.
वालिदा और भाई की सहायता से वह 2016 में पुणे चली गईं और वहां रह कर अपने इम्तेहान की तैयारी करने लगीं. उस समय उनके भाई ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी और अपनी दो बहनों के साथ पुणे आ गए थे. पुणे में रहने और बहनों की पढ़ाई का खर्च पूरा करने के लिए भाई ने ऑटो रिक्शा चलाना शुरू किया. वसीमा शेख कहती हैं कि उनके घर वालों ने उन्हें दो साल का समय दिया था कि वह जो करना चाहती है, कोशिश कर लें. इसलिए उनके लिए आवश्यक था कि जल्द से जल्द वो किसी इम्तेहान को पास कर लें. उसके बाद आगे का कोई प्रोग्राम बनाएं.
वसीमा कहना है कि इसके लिए उन्होंने क्लास टू सेल्स टैक्स इंस्पेक्टर के इम्तहान को चुना. दूसरे ही अटेम्पट में वो कामयाब हो गईं और उन्हें नागपुर में 2018 में पोस्टिंग मिली, लेकिन वसीमा शैख की नजर डिप्टी कलेक्टर के ओहदे पर थी.
2019 में इम्तेहान में कामयाबी और जून 2020 में फाइनल रिजल्ट के साथ वो डिप्टी कलेक्टर की हकदार बन चुकी थीं. ये सूचना उन्हें उनकी शादी के कुछ ही दिन बाद मिली थी. 8 जून 2020 को उनकी शादी हैदर शेख से हुई है.
वसीमा शेख ने पूरे तालुका में तीसरा स्थान प्राप्त करके यह साबित कर दिया कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती. वसीमा शैख के लिए इतना ही कहा जा सकता हैः
तदबीर के दस्ते रंगीं से तकदीर दरख्शाँ होती है.
कुदरत भी मदद फरमाती है जब कोशिशे-इन्सां होती है.