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रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने की दिशा में एक अहम राजनीतिक संकेत देते हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा है कि उनका देश पूर्वी यूक्रेन के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों से अपने सैनिकों को वापस बुलाने के लिए तैयार है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह कदम तभी उठाया जाएगा जब रूस भी समान रूप से अपने सैन्य बलों को पीछे हटाए और संबंधित क्षेत्र को पूरी तरह विसैन्यीकृत क्षेत्र घोषित किया जाए।
जेलेंस्की ने यह बयान उस व्यापक योजना के तहत दिया है, जिसके जरिए युद्ध को समाप्त करने और क्षेत्रीय स्थिरता बहाल करने की कोशिश की जा रही है। प्रस्ताव के अनुसार, यह विसैन्यीकृत इलाका किसी एक पक्ष के नियंत्रण में नहीं होगा, बल्कि इसकी निगरानी अंतरराष्ट्रीय शांति बलों के हाथों में दी जाएगी। माना जा रहा है कि इस पहल से लंबे समय से जारी सैन्य टकराव में एक ठोस विराम की संभावना बन सकती है।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, जेलेंस्की का यह प्रस्ताव पूर्वी यूक्रेन के संवेदनशील डोनबास क्षेत्र को लेकर एक संभावित समझौते की ओर इशारा करता है। डोनबास लंबे समय से रूस और यूक्रेन के बीच सबसे बड़ा विवादित क्षेत्र रहा है और शांति वार्ताओं में यही मुद्दा सबसे बड़ी अड़चन बनता रहा है।
मंगलवार को पत्रकारों से बातचीत में जेलेंस्की ने यह भी बताया कि अमेरिका ने इस क्षेत्र में एक “मुक्त आर्थिक क्षेत्र” (फ्री इकोनॉमिक ज़ोन) बनाने का सुझाव दिया है। उनके अनुसार, आर्थिक गतिविधियों को दोबारा शुरू करने और आम नागरिकों की ज़िंदगी पटरी पर लाने के लिए इस इलाके का विसैन्यीकरण बेहद जरूरी है। इससे न केवल निवेश को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि युद्ध से तबाह हुए बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण का रास्ता भी खुलेगा।
इसके अलावा, जेलेंस्की ने कहा कि इसी तरह की विसैन्यीकृत व्यवस्था रूस के कब्जे वाले जापोरिज़िया परमाणु ऊर्जा संयंत्र के आसपास के क्षेत्र में भी लागू की जा सकती है। यह संयंत्र यूरोप का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र है और इसके सैन्यीकरण को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय पहले से ही गहरी चिंता जता चुका है।
जेलेंस्की के इस बयान को ऐसे समय में अहम माना जा रहा है जब रूस-यूक्रेन युद्ध ने न केवल दोनों देशों को बल्कि वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि मॉस्को इस प्रस्ताव पर क्या रुख अपनाता है और क्या यह पहल वास्तव में शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सफल हो पाती है या नहीं।