सिंध के सूफी-पीरों ने महात्मा गांधी के आंदोलनों को आधार बनाया

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 07-12-2022
लुवारी सिंध दरगाह
लुवारी सिंध दरगाह

 

साकिब सलीम

बॉम्बे सरकार के सचिव ने 6 अगस्त, 1920 को भारत सरकार के सचिव को लिखा, ‘‘गांधी ने पीर को असहयोग आंदोलन के परिणामस्वरूप गिरफ्तार होने वाले पहले व्यक्ति होने पर बधाई देते हुए टेलीग्राफ किया है और कोई बचाव नहीं करने के उनके फैसले की सराहना की है.’’

कौन थे ये पीर?

राष्ट्रवादी इतिहास लेखन ने पीर, सूफियों, इस्लामिक विद्वानों, महंतों, पुजारियों, हिंदू विद्वानों और अन्य धार्मिक नेताओं को हाशिये पर रखा है. जबकि महात्मा गांधी एक केंद्रीय व्यक्ति बने रहे. अहिंसक आंदोलन में जनता को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कई लोगों को ऐतिहासिक आख्यानों से बाहर रखा गया था. अगार उन लोगों को छोड़ दें, जिन्होंने हिंसक तरीके से अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी थी.

उल्लिखित पीर सिंध के पीर महबूब शाह थे. उनके बड़े भाई पीर झंडेवाला रशीदुल्ला सिल्क लेटर कॉन्सपिरेसी के मुख्य षड्यंत्रकारियों में से एक थे, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विदेशी सेनाओं की मदद से ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने की कोशिश की थी.

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद जब 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया गया था, तो पीर महबूब गिरफ्तार होने वाले पहले महत्वपूर्ण व्यक्ति थे. पीर को 1 अगस्त, 1920 को हैदराबाद (सिंध) में ब्रिटिश विरोधी भाषण देने के लिए गिरफ्तार किया गया था.

बताया जाता है कि पीर ने एक जनसभा में कहा था, ‘‘मेरा जीवन (बलिदान के लिए) तैयार है. मैं युद्ध करने और स्वेच्छा से अपना सिर देने के लिए तैयार हूं.... हम अपने दुश्मनों को शांति से शासन नहीं करने देंगे. यह मत सोचो कि कोई हिन्दू हमारे साथ नहीं है. वे भी हमारे साथ हैं.’’

उन्हें गिरफ्तार करते हुए प्रांतीय सरकार ने दिल्ली में सचिव को लिखा कि ‘‘आदमी व्यावहारिक रूप से हजारों लोगों द्वारा पूजा जाता है.’’ एक सरकारी रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि उन्होंने ‘ग्रामीणों को अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध जारी रखने के लिए धन की सदस्यता लेने के लिए प्रेरित किया’ और ‘सरकार के प्रति अधिक शत्रुतापूर्ण और स्वयं पीर झंडेवाला से अधिक धर्मांध’ थे. हैदराबाद (सिंध) के जिला मजिस्ट्रेट ने बताया, ‘पीर महबूब शाह जिले का सबसे खतरनाक और कट्टर आदमी था.’

5 अगस्त को पीर को दो साल की कैद की सजा सुनाई गई और उन्होंने इसके खिलाफ भूख हड़ताल शुरू कर दी. लाखों अनुयायियों वाला एक धार्मिक नेता भूख हड़ताल पर था. सरकार को नहीं पता था कि इससे कैसे निपटा जाए. एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, ‘‘वह जानता है कि उसके साथ लोगों की सहानुभूति है.

जब उन्हें गिरफ्तार किया गया, तो लगभग हंगामा हो गया था. वायसराय ने सरकार से कहा कि वह उसे इस सावधानी के साथ जबरदस्ती खाना खिलाए कि कहीं वह पीर को न मार डाले. वायसराय ने कहा, ‘‘मैं इस आदमी की रिहाई को खतरनाक मानता हूँ और इस तरह के किसी भी पाठ्यक्रम के लिए सहमत नहीं हो सकता.’’ एक रास्ता दिया गया था कि उसे निर्वासन में यमन भेज दिया जाए. बल्कि, अधिकांश अधिकारियों का मानना था कि उसे यमन में निर्वासित करना उससे निपटने का सबसे अच्छा तरीका है.

15 अगस्त को काफी विचार-विमर्श के बाद पीर को रिहा कर दिया गया. अंग्रेजों ने दावा किया कि उन्होंने माफी मांगी थी और इसलिए उन्हें माफ कर दिया. पीर और उनके अनुयायियों ने इस कथानक को स्वीकार नहीं किया और दिलचस्प बात यह है कि यही लोग 1947 तक हिंसक तरीके से अंग्रेजों से लड़ते रहे.

यह और भी दिलचस्प है कि यह पहली बार नहीं था, जब सिंध के पीरों ने गांधी के साथ गठबंधन किया था. वास्तव में, सिंध के पीर भारत में गांधी का समर्थन करने वाले पहले नेता थे. मार्च 1916 में, गांधी लुवारी के पीर से मिलने सिंध गए, क्योंकि ‘‘उन्होंने पीर के बारे में कुछ मेमन मुरीदों के माध्यम से सुना था, जो दक्षिण अफ्रीका में उनके ग्राहक थे और हाल ही में पोरबंदर में पीर के अनुयायियों ने उन्हें यह समझया था कि पीर ने उन्हें अपने यहाँ आमंत्रित किया.’’

सीआईडी ने बताया, ‘‘शाम को पीर के साथ (गांधी का) साक्षात्कार एक भीतरी कक्ष में हुआ. एकमात्र अन्य व्यक्ति को उपस्थित होने की अनुमति दी गई थी, जो पीर का एक वृद्ध सेवक था, संभवतः खलीफा हाजी महमूद. बातचीत करीब 20 मिनट तक चली.’’

बैठक के बाद पीर ने अपने अनुयायियों को निर्देश दिया कि ‘‘अंग्रेजों के साथ कोई लेन-देन न करें, न ही अंग्रेजी सामान खरीदें.’’ इसके बाद गांधी ख्वाजा मोहम्मद अशरफ, एक और पीर भवनशाह से मिले, जहां उन्हें भारत में दक्षिण अफ्रीका जैसा आंदोलन शुरू करने के लिए कहा गया.

एक साल बाद, मार्च 1917 में, लुवारी के पीर ने फिर से अंग्रेजों को डरा दिया. सीआईडी ने उच्च अधिकारियों को बताया, ‘‘यह एक असाधारण तथ्य है कि जब श्री गांधी, जो एक संत हैं, लगभग एक साल पहले सिंध में थे, तो उन्होंने हैदराबाद (सिंध) जिले के एक बड़े मुहम्मडन पीर का दौरा किया. यह और भी असाधारण तथ्य है कि यह पीर, जिसकी पुश्तैनी परंपरा कभी भी अपने मिट्टी के किले को छोड़ने की नहीं है सिवाय हज की तीर्थ यात्रा पर जाने की, उसी ट्रेन से पिछली शाम कराची पहुंचे, जिस ट्रेन में श्री गांधी थे, उनके साथ बड़ी संख्या में अनुयायी लोग थे.

अंग्रेजों का मानना था कि गांधी और पीर का एक ही ट्रेन से यात्रा करना एक संयोग से अधिक था और ‘‘यह श्री गांधी और पीर के सहयोग से आकर्षित करने के लिए एक वैध निष्कर्ष प्रतीत होता है कि इस प्रांत में अशांति की हिंदू और मुस्लिम ताकतों के आंदोलनकारी वर्ग द्वारा एकत्रित होने का प्रयास किया जा रहा है

आज सिंध के ऐसे स्वतंत्रता सेनानी पीर या तो पूरी तरह गायब हैं या हमारी इतिहास की किताबों के हाशिए पर हैं.