फ्रांस एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता के दौर में प्रवेश कर चुका है, जब प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बैरू की सरकार संसद में विश्वास मत हार गई। संसद में 364 सांसदों ने सरकार के खिलाफ और केवल 194 ने पक्ष में वोट दिया। यह परिणाम 280 वोटों की न्यूनतम आवश्यकता से कहीं अधिक था, जिससे बैरू की सरकार का पतन तय हो गया।
बैरू ने यह विश्वास मत इसलिए बुलाया था ताकि वे अपना विवादास्पद €44 अरब (करीब 52 अरब डॉलर) का बजट सुधार पैकेज लागू कर सकें। इस योजना में दो सार्वजनिक छुट्टियाँ खत्म करने और सरकारी खर्चों पर रोक लगाने जैसे कठोर उपाय शामिल थे। हालांकि, यह कदम विपक्ष और जनता दोनों के बीच बेहद अलोकप्रिय साबित हुआ।
अब प्रधानमंत्री बैरू को मात्र नौ महीनों में पद छोड़ना पड़ेगा, ठीक उसी तरह जैसे उनके पूर्ववर्ती मिशेल बार्नियर को भी दिसंबर 2024 में विश्वास मत हारने के बाद इस्तीफा देना पड़ा था।
अर्थव्यवस्था पर संकट की छाया
बैरू की नीतियाँ फ्रांस की बिगड़ती वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए थीं। देश का बजट घाटा 2024 में GDP का 5.8% था, जिसे 2026 तक घटाकर 4.6% पर लाने का लक्ष्य था। इसके लिए उन्होंने खर्चों में भारी कटौती की योजना बनाई थी।
हालांकि, उनके प्रयासों से फ्रांस के निवेशक चिंतित हो गए हैं। फ्रांसीसी सरकारी बॉन्ड्स पर ब्याज दरें अब स्पेन, पुर्तगाल और ग्रीस जैसे देशों से भी ऊपर पहुँच गई हैं — जो कभी यूरोज़ोन ऋण संकट के केंद्र में थे। यदि इस सप्ताह फ्रांस की क्रेडिट रेटिंग घटाई जाती है, तो यह देश की आर्थिक छवि को और नुकसान पहुँचा सकता है।
बैरू का विदाई भाषण
बैरू ने संसद में कहा, “आपके पास सरकार गिराने की शक्ति है, लेकिन आप हकीकत को मिटा नहीं सकते। खर्च बढ़ते रहेंगे और कर्ज का बोझ और महँगा होता जाएगा।” उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि फ्रांस की मौजूदा पीढ़ी ने अगली पीढ़ी के साथ सामाजिक अनुबंध तोड़ दिया है।
अब आगे क्या?
बैरू मंगलवार को राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को औपचारिक रूप से अपना इस्तीफा सौंपेंगे। एलिजे पैलेस ने कहा है कि कुछ दिनों में नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाएगा।हालांकि, यह काम राष्ट्रपति के लिए आसान नहीं होगा। तीन मध्यमार्गी प्रधानमंत्रियों की विफलता के बाद अब विपक्ष किसी और ऐसे नाम को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। चरम दक्षिणपंथी नेशनल रैली और वामपंथी फ्रांस अनबोव्ड दोनों ने चेतावनी दी है कि यदि नया प्रधानमंत्री भी मध्यमार्गी हुआ तो वे तत्काल अविश्वास प्रस्ताव लाएँगे।
संभावित नाम और मुश्किलें
न्याय मंत्री जेराल्ड डारमैनिन और सशस्त्र बल मंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नु संभावित उम्मीदवारों में हैं, लेकिन किसी को भी नियुक्त करना "ज़हर से भरा प्याला" साबित हो सकता है।नया प्रधानमंत्री यदि वामपंथी नीतियाँ अपनाता है – जैसे कि अमीरों पर टैक्स बढ़ाना या कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती को पलटना – तो दक्षिणपंथी लेस रिपब्लिकन पार्टी इसका विरोध करेगी। और अगर नीतियाँ दक्षिणपंथी हुईं, तो वामपंथी दल उन्हें गिराने में देर नहीं लगाएंगे।फ्रांस की राजनीति में “ग्रैंड कोएलिशन” का कोई इतिहास नहीं रहा है, जिससे कोई व्यापक सहमति बनाना और भी कठिन हो गया है।
बाजार की प्रतिक्रिया और आर्थिक जोखिम
बाजारों ने इस राजनीतिक घटनाक्रम पर संयमित प्रतिक्रिया दी है। फ्रांस का प्रमुख शेयर सूचकांक CAC 40 मंगलवार को 0.25% ऊपर खुला। हालांकि 10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड पर ब्याज दर 3.47% तक बढ़ गई है, जो निवेशकों की चिंता को दर्शाता है।
विश्लेषकों के अनुसार, यदि फ्रांस की राजनीतिक अस्थिरता जारी रही और कोई कारगर सरकार न बन सकी, तो देश की रेटिंग में कटौती हो सकती है। फिच रेटिंग एजेंसी शुक्रवार को फ्रांस की साख की समीक्षा करने वाली है, और यदि डाउनग्रेड हुआ, तो आर्थिक संकट गहरा सकता है।
जनता का गुस्सा और विरोध प्रदर्शन
सरकार के खर्चों में कटौती और कल्याणकारी योजनाओं पर अंकुश लगाने के प्रस्तावों ने जनता में नाराजगी बढ़ा दी है। वामपंथी दलों और ट्रेड यूनियनों ने 10 और 18 सितंबर को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है। प्रदर्शनकारियों ने सोमवार को "बैरू की विदाई पार्टी" भी आयोजित की, जिससे स्पष्ट है कि जनता का धैर्य जवाब दे रहा है।
भविष्य की चुनौतियाँ
मैक्रों अब दो कठिन विकल्पों के बीच फंसे हैं – या तो वह पांचवें प्रधानमंत्री की नियुक्ति करें या फिर नया चुनाव करवाएँ। लेकिन दोनों ही स्थितियाँ राजनीतिक अस्थिरता को और बढ़ा सकती हैं।
हाल ही में आए Elabe सर्वेक्षण के अनुसार, यदि चुनाव हुए तो सबसे अधिक सीटें नेशनल रैली को मिलेंगी, वामपंथी गठबंधन दूसरे और मैक्रों की पार्टी तीसरे स्थान पर रहेगी। इससे संसद में और अधिक विभाजन होगा और कोई स्थिर सरकार बनना मुश्किल हो जाएगा।
अंततः, फ्रांस को अपने आर्थिक संकट का हल तो निकालना ही होगा। लेकिन सवाल यह है कि कैसे? एक ओर वामपंथी दल सामाजिक सुरक्षा में कटौती का विरोध करते हैं, वहीं दक्षिणपंथी कर बढ़ाने को लेकर सख्त रुख अपनाए हुए हैं।
फ्रांस इस समय एक गहरे राजनीतिक और आर्थिक संकट से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री बैरू की विदाई से समस्या सुलझने की बजाय और उलझती जा रही है। अब देखना यह होगा कि राष्ट्रपति मैक्रों किस तरह की सरकार बनाते हैं – क्या वह फिर से मध्यमार्गी नेता को मौका देंगे, या किसी बड़े राजनीतिक समझौते की ओर बढ़ेंगे?
जो भी हो, देश के लिए यह समय अत्यंत निर्णायक साबित हो सकता है। एक तरफ आर्थिक संकट की घड़ी है, दूसरी ओर जनता का असंतोष और अंतरराष्ट्रीय हालात – जैसे यूक्रेन युद्ध और मध्य-पूर्व तनाव – फ्रांस की भूमिका को और चुनौतीपूर्ण बना रहे हैं।क्या फ्रांस इस संकट से उबर पाएगा? इसका जवाब आने वाले हफ्तों में सामने आएगा।