फरहान इसराइली / जयपुर
यौन स्वास्थ्य के प्रति समाज में व्याप्त चुप्पी को तोड़ना अब सिर्फ एक सामाजिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय आवश्यकता बन चुकी है.इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर जागरूकता फैलाने के लिए, ऑल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस-राजस्थान स्टेट ने विश्व यौन स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर जयपुर में एक प्रभावी राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया.इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य यूनानी चिकित्सा पद्धति के दृष्टिकोण से यौन स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं को उजागर करना और विशेष रूप से युवा पीढ़ी को इस पर खुलकर बात करने के लिए प्रेरित करना था.
इस संगोष्ठी की सबसे खास बात इसमें छात्र-छात्राओं की उत्साहपूर्ण भागीदारी थी.राजस्थान के विभिन्न शहरों जैसे अजमेर, जोधपुर, सीकर, टोंक और भीलवाड़ा से आए यूनानी चिकित्सा के विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में इसमें हिस्सा लिया.उनकी उपस्थिति ने यह साबित कर दिया कि युवा पीढ़ी अब यौन स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील विषयों पर न केवल जागरूक है, बल्कि इस पर चर्चा करने के लिए भी तैयार है.
संगोष्ठी के संयोजक प्रो. गुलाम कुतुब चिश्ती ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि इस सेमिनार का उद्देश्य समाज में यौन स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता फैलाना और एक ऐसा माहौल तैयार करना है जहाँ इस विषय पर बिना किसी संकोच के बात हो सके.
उन्होंने बताया कि यह आयोजन हर साल 5 सितंबर को मनाए जाने वाले विश्व यौन स्वास्थ्य दिवस के महत्व को रेखांकित करता है, जिसका मकसद लोगों को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचाना है.मंच संचालन कर रहे डॉ. सय्यद अब्दुल मुजीब ने भी इस बात को दोहराया कि स्वास्थ्य का कोई भी पहलू तब तक अधूरा है, जब तक हम यौन स्वास्थ्य को गंभीरता से नहीं लेते.
विशेषज्ञों का जोर: यौन स्वास्थ्य केवल शारीरिक नहीं, मानसिक भी
संगोष्ठी में शामिल हुए विशेषज्ञों ने यौन स्वास्थ्य को सिर्फ शारीरिक क्रियाकलाप तक सीमित न मानकर, इसे मानव के समग्र स्वास्थ्य, ऊर्जा और मानसिक संतुलन से जुड़ा हुआ बताया.प्रो. डॉ. मोहम्मद इदरीस और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सरफराज अहमद ने अपने व्याख्यानों में यह समझाया कि आज की तनावपूर्ण जीवनशैली में यौन स्वास्थ्य की अनदेखी न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक स्तर पर भी गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकती है.
उन्होंने जोर देकर कहा कि समाज में इस विषय को लेकर फैली झिझक के कारण लोग अक्सर सही समय पर चिकित्सा परामर्श नहीं लेते, जिससे समस्याएँ और भी गंभीर हो जाती हैं.विशेषज्ञों ने इस चुप्पी को तोड़ने और लोगों को खुलकर चिकित्सकों से सलाह लेने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर बल दिया.
राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर से आए डीन प्रो. आज़म अंसारी और डॉ. एस.आर. ने भी अपने संबोधन में यौन स्वास्थ्य को गंभीरता से लेने की अपील की.उन्होंने चेतावनी दी कि इसे नजरअंदाज करने से मानव स्वास्थ्य पर गंभीर और दीर्घकालिक दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं, जिसका असर समाज की उत्पादकता और खुशहाली पर भी होगा.
सरकार का रुख: पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को बढ़ावा
इस कार्यक्रम में भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत नेशनल काउंसिल फॉर इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन (NCISM) के नीति अध्यक्ष प्रो. मोहम्मद मजाहिर आलम की उपस्थिति खास रही.उन्होंने भारत सरकार की पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता पर जोर दिया.उन्होंने कहा कि यूनानी जैसी प्राचीन पद्धतियाँ आज भी आधुनिक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान प्रदान कर सकती हैं.
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे ऑल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस (AIUTC) के सेक्रेटरी जनरल डॉ. सय्यद अहमद खां ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि यूनानी चिकित्सा का दर्शन केवल रोग का उपचार नहीं, बल्कि व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य को संतुलित करना है, और यौन स्वास्थ्य इसी समग्र दृष्टिकोण का एक अभिन्न अंग है.
इस महत्वपूर्ण आयोजन में सुरेश ज्ञान विहार विश्वविद्यालय, जयपुर के चेयरमैन डॉ. सुनील शर्मा, राजस्थान सरकार के उपमुख्यमंत्री के ओएसडी प्रो. राजेश कुमार भारद्वाज, और राजस्थान यूनानी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, जयपुर की मैनेजमेंट कमेटी के सचिव डॉ. परवेज अख्तर जैसे गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे, जिन्होंने संगोष्ठी के विषय की प्रासंगिकता और समाज के लिए इसके महत्व पर प्रकाश डाला.
इस मौके पर सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि यौन स्वास्थ्य के मुद्दे को गंभीरता से लेना आज की आवश्यकता है.इस विषय को लेकर फैली सामाजिक संकोच और झिझक को दूर करके ही एक स्वस्थ और जागरूक समाज का निर्माण किया जा सकता है.यह संगोष्ठी इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुई है, जो भविष्य में इस तरह के संवाद के लिए एक मजबूत नींव रखेगी.