टोक्यो
जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन को सोमवार को ऊपरी सदन (हाउस ऑफ काउंसिलर्स) के चुनाव में बड़ा झटका लगा। सार्वजनिक प्रसारणकर्ता एनएचके के अनुसार, 248 सदस्यीय सदन में बहुमत हासिल करने में गठबंधन विफल रहा।
इशिबा की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) और उसके सहयोगी कोमेइतो को बहुमत बनाए रखने के लिए 75 मौजूदा सीटों के अलावा 50 और सीटें जीतनी थीं, लेकिन अंतिम सीट के परिणाम से पहले ही गठबंधन के पास केवल 47 सीटें थीं।
यह हार इशिबा सरकार के लिए एक और बड़ा झटका है, क्योंकि पिछले साल अक्टूबर में निचले सदन के चुनाव में भी गठबंधन बहुमत से वंचित रह गया था। इससे जापान की राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ गई है। यह 1955 में एलडीपी की स्थापना के बाद पहली बार है जब पार्टी दोनों सदनों में अल्पमत में है।
फिर भी, प्रधानमंत्री इशिबा ने पद छोड़ने से इंकार करते हुए कहा कि वे देश को "राजनीतिक शून्य" में नहीं छोड़ेंगे और अमेरिकी व्यापारिक दबाव व बढ़ती महंगाई जैसी चुनौतियों का सामना करेंगे। उन्होंने कहा, "मैं देश की सेवा के लिए जिम्मेदारी निभाऊंगा और नंबर वन पार्टी के प्रमुख के तौर पर काम करता रहूंगा।"
इशिबा ने चुनाव से पहले सिर्फ 125 सीटों का लक्ष्य रखा था, यानी एलडीपी और कोमेइतो को कुल 50 सीटों की जरूरत थी। रविवार रात वोटिंग समाप्त होते ही आए एग्जिट पोल ने संकेत दे दिए थे कि गठबंधन का प्रदर्शन कमजोर रहेगा।
एलडीपी ने अकेले 39 सीटें जीतकर उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन बहुमत हासिल करने में विफल रही। इशिबा ने माना कि उनकी सरकार की महंगाई नियंत्रण की योजनाएं अभी जनता तक प्रभावी तरीके से नहीं पहुंची हैं। उन्होंने एनएचके से कहा, “यह कठिन परिस्थिति है। मैं इसे विनम्रता से स्वीकार करता हूं।”
हालांकि ऊपरी सदन के पास प्रधानमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की शक्ति नहीं है, फिर भी यह हार इशिबा की कुर्सी पर संकट गहरा सकती है। एलडीपी में उनके नेतृत्व को लेकर सवाल उठने लगे हैं और एक नए गठबंधन सहयोगी की तलाश का दबाव बढ़ सकता है।
बढ़ती कीमतें, ठहरी हुई आय और सामाजिक सुरक्षा भुगतान का बोझ इस चुनाव के प्रमुख मुद्दे रहे। विदेशी नागरिकों और पर्यटकों के खिलाफ कड़े नियमों की मांग भी सामने आई। एक दक्षिणपंथी पॉपुलिस्ट पार्टी ने इसी मुद्दे को अपने प्रचार का केंद्र बनाया।
पिछले साल अक्टूबर में निचले सदन की हार और भ्रष्टाचार के पुराने घोटालों ने इशिबा सरकार की साख को कमजोर किया है। महंगाई रोकने और मजदूरी बढ़ाने के प्रयासों में सुस्ती ने जनता की नाराजगी और बढ़ाई।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जापान से व्यापार वार्ता में प्रगति न होने और अमेरिकी कारों व चावल की कम बिक्री पर नाराजगी जताई है। 1 अगस्त से लागू होने वाली 25 प्रतिशत टैरिफ दर ने इशिबा की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
चुनाव से पहले इशिबा किसी समझौते के पक्ष में नहीं थे। अब चुनावी हार के बाद विपक्ष के साथ सहमति बनाना और भी कठिन हो सकता है।
मतदाता नए विकल्प तलाश रहे हैं। हालांकि विपक्षी दल एकजुट नहीं हो पाए। दक्षिणपंथी पॉपुलिस्ट पार्टी सांसितो ने "जापानी फर्स्ट" नीति के साथ विदेशी नागरिकों पर सख्ती, एंटी-वैक्सीन और पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को बढ़ावा देने की बात की।
कंज़र्वेटिव डेमोक्रेटिक पार्टी (डीपीपी) और सांसितो ने एलडीपी की सीटें खींच लीं। डीपीपी की सीटें 4 से बढ़कर 17 हो गईं, जबकि सांसितो 1 से 14 सीटों तक पहुंच गई। डीपीपी प्रमुख युइचिरो तामाकी ने कहा, “वोटरों ने हमें नए विकल्प के रूप में चुना।”
सीडीपीजे (सेंट्रिस्ट विपक्ष) की गति धीमी रही, लेकिन उसके नेता योशिहिको नोदा ने कहा कि जनता ने इशिबा सरकार को स्पष्ट संदेश दिया है।
चुनावी अभियान और सोशल मीडिया पर विदेशी विरोधी बयानबाजी बढ़ने से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विदेशी निवासियों में चिंता फैल गई है।
एलडीपी ने युद्धोत्तर जापान की राजनीति में लंबे समय तक स्थिरता बनाए रखी है। लेकिन अब मतदाता स्थिरता और बदलाव के बीच बंटे हुए हैं।
43 वर्षीय परामर्शदाता युको त्सुजी ने कहा, “हमने ऐसे उम्मीदवारों को वोट दिया जो विभाजन नहीं फैलाएंगे। अगर सत्तारूढ़ पार्टी कमजोर हुई, तो कंज़र्वेटिव आधार चरमपंथ की ओर जा सकता है।”
वहीं, 57 वर्षीय दाइची नसु, जो खुद का व्यवसाय करते हैं, ने कहा कि वे अधिक समावेशी और विविध समाज चाहते हैं, जिसमें आप्रवासन और लैंगिक नीतियों में उदारता हो। उन्होंने कहा, “इसीलिए मैंने सीडीपीजे को वोट दिया। मैं इन क्षेत्रों में प्रगति देखना चाहता हूं।”