मॉस्को
बीते सप्ताह यूक्रेन में रूसी ड्रोन हमलों के बाद जब ड्रोन विशेषज्ञों ने मलबा इकट्ठा किया, तो उन्हें एक ऐसा ड्रोन मिला जो बाकी से अलग था।
इस ड्रोन में एक उन्नत कैमरा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से संचालित कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्म और रेडियो लिंक मौजूद था, जिससे इसे रूस से दूर से संचालित किया जा सकता था। इसमें नई ईरानी एंटी-जैमिंग (जाम विरोधी) तकनीक भी पाई गई, जो इसे यूक्रेन की इलेक्ट्रॉनिक सुरक्षा प्रणाली से बचाने में सक्षम बनाती है।
यूक्रेनी इलेक्ट्रॉनिक्स विशेषज्ञ सर्गेई बेस्करेस्टनोव, जिन्हें ‘फ्लैश’ के नाम से जाना जाता है, ने बताया कि आमतौर पर रूसी ड्रोन काले होते हैं, लेकिन यह नया ड्रोन सफेद रंग का था और इसमें ईरानी लेबलिंग प्रणाली के अनुरूप निशान थे।
ईरान से मिल रही तकनीकी सहायता
विशेषज्ञों ने कहा कि लेबलिंग ईरान से आए होने का पुख्ता प्रमाण नहीं है, लेकिन यह संभावना जताई गई है कि यह ड्रोन ईरान द्वारा रूस को परीक्षण के लिए दिया गया हो सकता है। युद्ध के चौथे वर्ष में रूस लगातार ईरानी डिजाइन वाले ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है।
ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि ईरान द्वारा रूस को बड़ी मात्रा में ड्रोन आपूर्ति की गई थी, लेकिन हाल ही में इजराइल द्वारा ईरानी सैन्य ठिकानों पर किए गए हमलों से इन आपूर्तियों पर असर पड़ सकता है।
रूस में बना रहा है ईरानी मॉडल पर आधारित ड्रोन
रूस ने 2022 में ईरान के साथ 1.7 अरब डॉलर का सौदा करने के बाद Tatarstan क्षेत्र के अलाबुगा प्लांट में Shahed ड्रोन का निर्माण शुरू किया था। प्रारंभ में इन्हें ईरान से मंगाकर जोड़ा गया और बाद में रूस ने स्वयं ही उत्पादन शुरू कर दिया।
एपी द्वारा प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, 2023 की शुरुआत में ईरान ने रूस को करीब 600 अनसंपूर्ण ड्रोन भेजे, जिन्हें रूस में जोड़ा गया। 2024 में रूस ने इन ड्रोन में बदलाव कर उनमें थर्मोबैरिक वारहेड लगाए, जो लक्ष्य के क्षेत्र से ऑक्सीजन खींच लेते हैं और गंभीर शारीरिक क्षति पहुंचाते हैं।
नई तकनीक और रणनीति
अब रूस ऐसे ड्रोन तैनात कर रहा है जो रेडियो लिंक के जरिए रूस से संचालित किए जा सकते हैं और जिनमें एआई आधारित नेविगेशन सिस्टम लगा है। यदि संचार बाधित हो जाए तो यह प्रणाली ड्रोन को स्वतः संचालित करने में सक्षम बनाती है। यह तकनीक पहले यूक्रेन द्वारा रूसी एयरबेस पर गहरे हमलों में प्रयोग की जा चुकी है।
बेस्करेस्टनोव ने बताया कि नए ड्रोन में आठ एंटीना लगे थे, जबकि पहले केवल चार होते थे। इससे इन्हें इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग से रोकना और मुश्किल हो गया है। इसके अलावा, ऐसे एंटीना पहले केवल यमन में हूती विद्रोहियों के लिए भेजे गए ईरानी मिसाइलों में देखे गए थे।
यूक्रेनी रक्षा मंत्रालय का कहना है कि पिछले चार महीनों में ऐसे ड्रोन मिले हैं जिनमें चीन और रूस में बने आठ से बारह एंटीना लगे हैं।
बदलती रणनीति
रूस सिर्फ तकनीक ही नहीं, बल्कि अपने हमले की रणनीति भी बदल रहा है। अब Shahed ड्रोन को ऊंचाई पर उड़ाया जा रहा है ताकि स्नाइपर्स इन्हें न गिरा सकें, और कभी-कभी यह रडार से बचने के लिए बहुत नीचे उड़ते हैं।
इनका प्रयोग कभी-कभी मिसाइलों के लिए रास्ता साफ करने या यूक्रेनी वायु सुरक्षा को भ्रमित करने के लिए किया जाता है — पहले ढेर सारे नकली ड्रोन भेजे जाते हैं और फिर असली वारहेड वाला ड्रोन हमला करता है।
यूक्रेनी वायुसेना के डेटा के अनुसार, नवंबर 2024 में केवल 6% रूसी ड्रोन ही किसी लक्ष्य को भेद पाए थे। लेकिन जून 2025 तक यह आंकड़ा बढ़कर 16% हो गया। कुछ रातों में यह सफलता दर 50% तक पहुंच गई।
भविष्य क्या है?
हालांकि रूस की प्रभावशीलता बढ़ी है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थायी नहीं हो सकता। इजराइल द्वारा ईरानी सैन्य क्षमताओं पर हमले का असर रूस की ड्रोन आपूर्ति पर पड़ेगा।
अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ डेविड ऑलब्राइट ने कहा, "लंबी अवधि में रूस को ईरान से पहले जैसी मदद नहीं मिल पाएगी।"
इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि रूस अपने ड्रोन कार्यक्रम को लगातार बेहतर बना रहा है, लेकिन ईरान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव और इजरायली हमलों के कारण इसकी गति पर लगाम लग सकती है।