बांग्लादेश ने कट्टरपंथी समूह ‘जमात-ए-इस्लामी’ पर हिंसा फैलाने के कारण लगाया बैन

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 02-08-2024
Bangladesh bans radical group 'Jamaat-e-Islami' for inciting violence
Bangladesh bans radical group 'Jamaat-e-Islami' for inciting violence

 

ढाका. बांग्लादेश सरकार ने गुरुवार को कट्टरपंथी इस्लामी समूह जमात-ए-इस्लामी और उसके युवा विंग इस्लामी छात्र शिबिर पर सरकारी नौकरी कोटा के खिलाफ हाल ही में छात्र विरोध प्रदर्शन के दौरान अशांति पैदा करने और हिंसा में भाग लेने के लिए प्रतिबंध लगा दिया.

भेदभाव के खिलाफ छात्रों ने पिछले महीने देश भर में रैलियां कीं, जिसके बाद पुलिस ने कार्रवाई की और कम से कम 206 लोगों की मौत हो गई. शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार का आरोप है कि कट्टरपंथी इस्लामी समूह, जो बांग्लादेश का सबसे बड़ा इस्लामी समूह भी है, ने विरोध प्रदर्शन को हाईजैक कर लिया और लूटपाट, हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का काम किया. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनके राजनीतिक सहयोगियों ने सरकारी नौकरियों के लिए कोटा प्रणाली को लेकर हाल ही में हुए छात्र विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़काने के लिए जमात-ए-इस्लामी, इसके इस्लामी छात्र शिविर छात्र विंग और अन्य सहयोगी निकायों को दोषी ठहराया.

सरकार द्वारा एक कार्यकारी आदेश जारी किए जाने के बाद समूह और इसकी युवा शाखा को बांग्लादेश के आतंकवाद विरोधी अधिनियम की धारा 18(1) के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया था. दोनों संस्थाओं को अब नई अधिसूचना के तहत ‘उग्रवादी और आतंकवादी’ संगठन के रूप में लेबल किया गया है.

बांग्लादेश के कानून मंत्री अनीसुल हक ने प्रोथोम एलो से कहा, ‘‘यह आदेश पारित होने के बाद ये संगठन राजनीतिक दलों के रूप में काम नहीं कर सकते.’’ जमात-ए इस्लामी की स्थापना 1941 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान एक विवादास्पद इस्लामवादी विद्वान द्वारा की गई थी और उसने 1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बांग्लादेश के एक स्वतंत्र राज्य के रूप में निर्माण के खिलाफ अभियान चलाया था.

यह समूह 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना के साथ मिलीभगत करने के लिए भी जाना जाता है और इसने पाकिस्तान से मुक्ति की मांग करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों का शिकार करने, बुद्धिजीवियों की हत्या करने और उन्हें प्रताड़ित करने तथा लोगों को मुक्तिजोधाओं (शेख मुजीबुर रहमान के अधीन स्वतंत्रता सेनानी) और भारतीय सेना के खिलाफ लड़ने के लिए प्रशिक्षित करने में पाकिस्तानी सेना की मदद की, जिसने बांग्लादेश को 1971 के युद्ध में जीत दिलाने में मदद की थी.

मुक्तिजोधाओं और भारतीय सेना के हाथों पाकिस्तानी सेना की हार के बाद कट्टरपंथी संगठन के कई नेता भी पाकिस्तान भाग गए. इसके कई नेताओं जैसे दिलवर हुसैन सईदी, मुहम्मद कमरुज्जमां, गुलाम आजम और अली अहसान मोहम्मद मोजाहिद को 2013 के शाहबाग विरोध प्रदर्शनों के बाद युद्ध अपराधों के लिए मौत की सजा दी गई थी.

इस समूह का नेतृत्व वर्तमान में शफीकुर रहमान कर रहे हैं, जो समूह के अमीर हैं. उन्होंने एक बयान में इस फैसले को खारिज कर दिया, इसे संविधान विरोधी बताया और हाल की हिंसा के पीछे उनका हाथ होने से इनकार किया.

पार्टी प्रमुख शफीकुर रहमान ने कहा, ‘‘सरकार ने छात्रों के गैर-राजनीतिक आंदोलन को दबाने के लिए देश में पार्टी के कार्यकर्ताओं और राज्य कानून व्यवस्था बलों द्वारा नरसंहार किया. देश के शिक्षक, सांस्कृतिक हस्तियां, पत्रकार और विभिन्न व्यवसायों के लोग सरकार के इस नरसंहार के खिलाफ विरोध कर रहे हैं.’’

इस समूह को 2013 में बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध घोषित कर दिया था, जिसने इसे चुनाव लड़ने के लिए भी अयोग्य बना दिया था. जमात को पहले भी दो बार, 1959 और 1964 में पाकिस्तान में सांप्रदायिक भूमिका के लिए प्रतिबंधित किया जा चुका है.