हैदराबाद की साजिदा कैसे बनीं पहली महिला संगीत टेक्नीशियन

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  AVT | Date 23-01-2021
हैदराबाद की साजिदा बेगम हजारों लड़कियों की प्रेरणा हैं
हैदराबाद की साजिदा बेगम हजारों लड़कियों की प्रेरणा हैं

 

 
वाजिदुल्लाह खान / हैदराबाद

ज्यादातर महिलाएं सरकारी नौकरियों, बैंकिंग और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करने की इच्छुक रहती हैं. जो इन क्षेत्रों में कुछ नहीं कर पातीं वह कटिंग, ब्यूटीशिन जैसे कोर्स कर जिंदगी की गाड़ी खींचती हैं. ऐसे दौर में हैदराबाद के मौला अली इलाके की साजिदा बेगम ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. उन्होंने न केवल ऑडियो इंजीनियरिंग और संगीत में नाम कमाया, अपने काम में महारत हासिल कर अपनी काबिलियत भी साबित की है. उनकी सेवाओं से प्रभावित होकर राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने उन्हें ‘प्रथम महिला संगीत तकनीशियन‘ पुरस्कार से सम्मानित कर चुके हैं. संगीत का उनका जुनून जोरों पर है.

ऑडियो इंजीनियर बनने का विचार कैसे आया? इस सवाल के जवाब में उन्होंने अपनी जिंदगी के सारे पन्ने खोल दिए. वह बताती हैं कि स्कूल जमाने से ही उन्हें संगीत उद्योग में प्रवेश की चाह थीं. स्कूल से निकलने के बाद विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लिया. हैदराबाद के प्रसिद्ध रविन्द्र भारती थियेटर के कार्यक्रमों में भी शामिल हुईं. इस दौरान उन्होंने दूरदर्शन, ऑल इंडिया रेडियो पर कार्यक्रम पेश किए.

उन्होंने बताया कि एक लोकगायक ने उनके जुनून से प्रभावित होकर उन्हें लोक, पारंपरिक और विभिन्न प्रकार के संगीत की कइ गूढ़ जानकारियां दीं. उसके बाद उनका जुनून और बढ़ गया. तभी से कुछ नया करने की कोशिश में जुट गईं.

अपने प्रयासों का जिक्र करते हुए साजिदा बताती हैं कि इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान उन्होंने एनीमेशन कोर्स और फिर पीजी डिप्लोमा पूरा किया. बाद में ऑडियो संपादन के साथ कई और चीजें सीखीं.

साउंड इंजीनियरिंग में रुचि

 

अपनी रुचि के बारे में बताया कि उन्हें अपने दोस्त के साथ एक स्टूडियो में जाने का अवसर मिला. वहां उन्हें संगीत पर एक प्रोजेक्ट तैयार करने के लिए कहा गया. विभिन्न ऑडियो पाठ्यक्रमों को पूरा करने के बाद, वह संगीत में कुछ बेहतर करने की सोचने लगीं. इस दौरान स्टूडियो में संगीत निर्देशक के सहायक के रूप में नौकरी मिल गई और वहां उन्होंने लगभग पांच वर्षों तक काम किया.

वर्तमान परियोजनाओं पर टिप्पणी करते हुए वह कहती हैं कि उनका लक्ष्य डिजिटल प्रारूप में अधिक स्टोरीबुक लाना है. इससे लेखक को अपनी कहानी सुनाने का मौका मिलेगा. उन्होंने कहानीकार, ऑडियो संपादक के साथ कई प्रोडक्शन हाउस के लिए फ्रीलांसर के तौर पर भी काम किया है. पिछले एक दशक में साउंड इंजीनियर की हैसियत से वह कई दक्षिण भारतीय फिल्में कर चुकी हैं.

पेशेवर ऑडियो इंजीनियर के तौर पर तेलुगू, मलयालम और तमिल फिल्मों के लिए वह डबिंग, साउंड, बैकग्राउंड म्यूजिक और ऑडियो मिक्स करने का काम कर चुकी हैं. 

साजिदा ने लगभग 6 तेलुगु, हिंदी, तमिल, मलयालम, भोजपुरी फिल्मों में की हैं. अपने काम के लिए कई बार पुरस्कृत भी हुईं. उन्हें देश की एकमात्र महिला संगीत तकनीशियन के रूप में इंटरनेशनल ऑडियोबुक में जगह मिल चुकी है .

संगीत का करियर

वह बताती हैं ’मैंने संगीत को करियर के रूप में अपनाने के बारे में कभी नहीं सोचा था. मगर प्रमुख निर्देशकों दासरी नारायण राव, तेजा और पुरी जगन्नाथ के लिए डबिंग, रिकॉर्डिंग, ऑडियो मिक्सिंग का काम करने के बाद उन्हें अपना इरादा बदलना पड़ा. उन्होंने कई संगीत एलबम और टीवी धारावाहिकों के लिए भी काम किए हैं.

यही नहीं, लगभग 40 छात्रों को ऑडियो फॉर्मेट में अपनी कविता रिकॉर्ड करने में भी मदद की. इन उपलब्धियों के बावजूद, उनका मानना है कि जनता को ऑडियो तकनीशियनों, विशेषकर महिला ऑडियो तकनीशियनों की सेवाओं को पहचानने में समय लगेगा.

महिला के नाते मिला अधिक काम

साजिदा मानती हैं कि फिल्म उद्योग में कोई लैंगिक भेदभाव नहीं है, बल्कि उन्हें महिला होने का लाभ भी मिला और ज्यादा काम भी.

उन्होंने कहा कि लड़कियों के लिए इस उद्योग में प्रवेश करना आसान है. इस क्षेत्र में आने वाली लड़कियों को उनके परिवारों द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. यदि उनके परिवार ने उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित नहीं किया होता तो आज वह यहां तक नहीं पहुंच पातीं. इस क्षेत्र में बहुत कम लड़कियां हैं. उन्हें आगे आना चाहिए. लड़कियां मल्टीमीडिया कोर्स करती हैं, लेकिन आगे जारी नहीं रख पातीं और कुछ दिनों बाद काम छोड़ देती हैं.

नए लोगों में धैर्य की कमी

जो बच्चे इस क्षेत्र में आते हैं, अधिकांश में धैर्य की कमी होती है. वे शॉर्टकट्स के जरिए बाजार से जल्दी पैसा बनाना चाहते हैं. उनमें अनुशासन की भी कमी देखी गई है. साजिदा ने कहा कि हर निर्देशक के निर्देशन का अलग तरीका होता है, इसलिए हमें उस आधार पर काम करना होगा.

साजिदा ने तेलंगाना के लगभग 100 जिला परिषद स्कूलों और कॉलेजों में विभिन्न कार्यक्रम पेश किए हैं. साथ ही इस उद्योग में प्रवेश के लिए बच्चों को प्रेरित भी किया. वह शिक्षा पूरी करने में छात्रों का मार्गदर्शन भी करती हैं.

मुस्लिमों में जागरूकता की कमी

आज की मुस्लिम लड़कियां मेंहदी डिजायनिंग, ब्यूटीशियन और टेलरिंग कोर्स अधिक पसंद करती हैं. उन्हें खुद को जगाने की जरूरत है. यह काम स्कूलों में किया जाना चाहिए. लड़कियों को शिक्षा के माध्यम से सशक्त बनाना होगा, ताकि वे अपने बच्चों को शिक्षित कर सकें. मुस्लिम समुदाय में इस तरह की जागरूकता जरूरी है. साजिदा पैन इंडिया और डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट्स से जुड़ कर लेखकों को संगीत, संस्कृति, कला की पुस्तकों को ऑडियो में बदलने और उन्हें प्रकाशित करने की कला सिखा चुकी हैं.

म्यूजिक स्कूल का इरादा

उन्होंने कहा कि उनकी योजना पोस्ट-प्रोडक्शन स्टूडियो या म्यूजिक स्कूल शुरू करने का है. वह चाहती हैं कि लड़कियां इन स्टूडियो के पोस्ट-प्रोडक्शन में काम करें. वर्तमान में उनका हैदराबाद के मलापुर नाचरम में एक छोटा सा सेटअप है. वह काचीगोड़ा की श्रीनगर कॉलोनी में स्टूडियो में काम करती हैं. उन्होंने कुछ सरकारी परियोजनाओं का भी काम ले रखा हैै. कोरोना की वजह से फिल्म उद्योग की स्थिति खराब हुई है. उन्होंने कहा कि इस स्थिति से निकलने में समय लगेगा. कोविड के चलते डिजिटल क्षेत्र व्यापक हुआ है. ऐसे में अब उद्योग को डिजिटल प्लेटफॉर्म के बारे में सोचना होगा. वह कहती हैं, ’सरकार को इस दिशा में काम करना चाहिए. कोविड के चलते प्रोडक्शंस स्टूडियो होल्ड पर हैं. लोग कोरोना वैक्सीन लगवाने के बाद ही काम शुरू करने की सोच रहे हैं.

पुरस्कार

  • साजिदा को 80 से अधिक पुरस्कार मिले हैं
  • राष्ट्रपति पुरस्कार 2018 और तेलंगाना सरकार का पुरस्कार 2019 में मिला
  • विश्वविद्यालय के डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिली      

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