How PM Modi's 'Har Ghar Tiranga' campaign became a successful home industry for women, Govind Mohan tells the story
नई दिल्ली
'हर घर तिरंगा' अभियान के तहत देश भर में तिरंगा यात्रा निकाली जा रही है. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर कैसे 'हर घर तिरंगा' अभियान महिलाओं के लिए कैसे सफल घरेलू उद्योग बना, इस अभियान को ओ-ऑर्डिनेट करने वाले संस्कृति मंत्रालय के सचिव गोविंद मोहन ने इसकी कहानी खुद बताई.
उन्होंने बताया कि 'आजादी का अमृत महोत्सव' एक अनोखा कार्यक्रम था. ऐसा कार्यक्रम एक दूरदर्शी नेता ही कर सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे की अपनी मीटिंग में कहा कि आपको देश के ऐसे प्रतीक लेने हैं, जिससे लोगों का स्वाभाविक जुड़ाव हो. उन्होंने तिरंगे और देश की मिट्टी का उदाहरण दिया था. ये सब उनके दिमाग से निकली सारी योजनाएं हैं. इस प्रकार के कार्यक्रम को आपको सफल बनाना है. 140 करोड़ भारतीयों को इस भावना से जोड़ना है कि देश और राष्ट्रभक्ति उनके लिए सर्वोपरि है. देश के आपको कुछ ऐसे प्रतीक चिह्नित करने होंगे. जिससे लोग अपने आप को आसानी से पहचान सकें.
गोविंद मोहन ने आगे बताया कि 'हर घर तिरंगा' अभियान भी उन्हीं (पीएम मोदी) की एक कल्पना थी. जिसके फलस्वरूप हमने इस पूरे कार्यक्रम को किया. जब 2022 में पहली बार हमने यह कार्यक्रम किया था. उन्होंने (प्रधानमंत्री मोदी) कहा कि इस बार झंडे की दिक्कत होगी. क्योंकि देश में हम इतनी बड़ी संख्या में झंडे नहीं बनते है. इस प्रकार से एक पूरी इंडस्ट्री बनी और एक इकोनॉमी एक्टिविटी शुरू हुई. इस वर्ष भी 'हर घर तिरंगा' अभियान हो रहा है देशभर की हजारों-लाखों महिलाएं झंडे निर्मित करके सप्लाई कर रही है.
उन्होंने कहा कि जब पहले वर्ष कार्यक्रम किया तो सरकार ने राज्यों को साढ़े 7 करोड़ के करीब झंडे सीधे और पोस्ट ऑफिस के माध्यम से सप्लाई किए. दूसरे वर्ष में तिरंगे जो सरकार द्वारा सीधे या पोस्ट ऑफिस के द्वारा सप्लाई हुए और जिनकी सोर्सिंग बड़े विक्रेताओं से होती थी वो साढ़े 7 करोड़ से घटकर ढाई से पौने तीन करोड़ हो गए. बाकी के झंडे महिला स्वयं सहायता समूह के द्वारा तैयार किए गए थे. जिस उत्तर प्रदेश की सरकार ने संस्कृति मंत्रालय से साढ़े चार करोड़ झंडे खरीदे थे. साल 2023 में उसी यूपी सरकार ने हमसे एक भी झंडा नहीं खरीदा और ये कहा कि स्वयं सहायता समूह सारे झंडे बनाने में सक्षम है.
संस्कृति मंत्रालय के सचिव गोविंद मोहन ने कहा कि साल 2024 में अभी तक हमारे पास केवल 20 लाख झंडे की डिमांड आई है. पूरे देश में इस कार्यक्रम के दौरान 25 करोड़ झंडे की मांग होती है क्योंकि 25 करोड़ घर हैं और हर घर अपने प्रांगण में एक झंडा लगाता है, 25 करोड़ में जो पहला वर्ष था उसमें हमने साढ़े सात करोड़ झंडे बड़े विक्रेताओं के माध्यम से बनाकर बांटे थे. दूसरे साल में यह संख्या कम होकर लगभग ढाई करोड़ हो गई और इस साल वो ना करे बराबर रह गई है. महिला स्वयं सहायता समूह के लिए यह पूरा उद्योग बन गया है जो झंडे तैयार कर रही और बेच रही हैं . ये झंडे बाजार में 15 से 20 रुपये में बेच जाती हैं और इस कार्यक्रम के दौरान उनकी अच्छी कमाई भी हो रही है.