ज़ुबीनवाद : एक सामंजस्यपूर्ण समाज बनाने का मार्ग

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 15-11-2025
Zubinism: The path to a harmonious society
Zubinism: The path to a harmonious society

 

महबूबुल हक़

ज़ुबीन गर्ग (Zubeen Garg) के निधन के बाद हाल ही में 'ज़ुबीनवाद' (Zubeenism) नामक एक शब्द गढ़ा गया है। प्रत्यय '-वाद' किसी विचारधारा, सिद्धांत या आंदोलन को इंगित करता है, जैसे कि देशभक्ति (Patriotism) अपने देश के प्रति प्रेम और ज़िम्मेदारी है। उसी प्रकार, ज़ुबीनवाद को दिग्गज कलाकार ज़ुबीन गर्ग के जीवन, संगीत और विचारधारा से प्रेरित सांस्कृतिक पहचान, भावनात्मक अभिव्यक्ति और सामाजिक चेतना की एक भावना माना जा सकता है।

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1990 का दशक असम में सामाजिक-राजनीतिक अशांति, पहचान संकट और सांस्कृतिक बदलाव का दौर था, और ज़ुबीन गर्ग ने ऐसे समय में संगीत और संस्कृति को लोगों को एक उद्देश्य से जोड़ने का माध्यम बनाया। उनके गीतों, जैसे "शान्तिर शुभ्र रथ, मुकुतिर शुद्ध पथ" (शांति का श्वेत रथ, मुक्ति का पवित्र मार्ग), ने आधुनिक शैलियों को असमिया लोक-संस्कृति के साथ मिलाकर युवा पीढ़ी को गहराई से प्रभावित किया।

उनके संगीत ने असमिया लोकप्रिय संस्कृति को पुनर्जीवित किया और सामाजिक अनिश्चितताओं के बीच लोगों में गर्व और एकता को बहाल किया, जिससे वे केवल संगीतकार नहीं, बल्कि क्षेत्रीय पहचान की आवाज़ बन गए। ज़ुबीनवाद का विकास तीन चरणों में देखा जा सकता है: 1990के दशक में उत्पत्ति (सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में उदय), 2000के दशक में विकास (सांस्कृतिक समावेशिता का प्रतिनिधित्व), और 2010से एकत्रीकरण (भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ लोगों की आवाज़ बनना)। ज़ुबीनवाद उनकी सादगी, करुणा और मानवता से समृद्ध है, जिसे सांस्कृतिक गौरव, करुणा, अंतरात्मा और सह-अस्तित्व (4 C's) के रूप में समझा जा सकता है।

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ज़ुबीन गर्ग में अद्भुत प्रतिभा थी, लेकिन उन्होंने मुंबई में स्थापित होने के बजाय अपनी मातृभूमि और लोगों के प्रति प्रेम के कारण असम लौटना चुना। ज़ुबीनवाद स्थानीय पहचान को बनाए रखने के साथ ही बदलाव के प्रति खुलेपन को प्रोत्साहित करता है।

उनके लिए, कला महज़ मनोरंजन नहीं थी, बल्कि यह दिलों को जगाने और लोगों को एकजुट करने का एक साधन थी। उन्होंने असमिया सिनेमा में 'मिशन चाइना' के साथ क्रांति ला दी और "किताब नोपोहा जाति के गामोचाई बोसाबो नुवारे" (बिना पढ़ने की आदत वाली जाति को गमोचा नहीं बचा सकता) जैसे बयानों के माध्यम से यह दर्शाया कि समुदाय की वास्तविक शक्ति केवल प्रतीकों में नहीं, बल्कि शिक्षित और प्रबुद्ध पीढ़ी में निहित है।

उनकी करुणा उनके संगीत, शब्दों और कार्यों में झलकती थी। वह एक निडर आवाज़, बच्चों जैसी ईमानदारी और लोगों के प्रति प्रेम के लिए प्रशंसित थे। सार्वजनिक रूप से वे flamboyant दिखते थे, लेकिन उनका दिल बहुत कोमल था; वे चुपचाप और बिना प्रचार के दूसरों की मदद करते थे।

बाढ़ के दौरान उन्होंने व्यक्तिगत रूप से राहत का आयोजन किया और गरीब रोगियों के इलाज में मदद की। उन्हें 'प्रामाणिकता का प्रतीक' कहा जाता था, क्योंकि वह भ्रष्टाचार, असहिष्णुता और अन्याय पर बेबाकी से बोलते थे।

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उन्होंने कहा था, "पॉलिटिक्स नोकोरबा बोंधु" (राजनीति मत करो दोस्त)। जहाँ अधिकांश हस्तियाँ अपनी छवि बचाने के लिए सोच-समझकर बोलती हैं, वहीं ज़ुबीन दिल से बोलते थे, और इसी साहस ने लोगों को उनसे और भी ज़्यादा प्यार करने पर मजबूर किया। उन्होंने अपनी निराशा में कहा था, "मोरी कुनु जाति नाई, मोरी कुनु धर्मो नाई, मोई मुक्तो, मोई कंचनजुंगा" (मेरी कोई जाति नहीं, मेरा कोई धर्म नहीं, मैं मुक्त हूँ, मैं कंचनजुंगा हूँ), जिसके माध्यम से उन्होंने जाति, धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर यह संदेश दिया कि वास्तविक दिव्यता दयालुता, ईमानदारी और सभी के प्रति प्रेम में निहित है।

उनके अंतिम संस्कार में पहली बार पुजारी, मौलवी और भिक्षु एक साथ खड़े हुए और प्रार्थना की, जिससे उनके संदेश की शक्ति और बढ़ गई। सोनापुर में 'ज़ुबीन क्षेत्र' अब एकता और आस्था का एक नया केंद्र बन चुका है।

ज़ुबीन गर्ग ने दिखाया कि सच्चा धर्म कर्मकांडों में नहीं, बल्कि करुणा और मानवीय जुड़ाव में निहित है। ऐसे संसार में जो पहचान और विश्वास के आधार पर बंटा हुआ है, ज़ुबीन का जीवन हमें याद दिलाता है कि मानवता के लिए प्रेम ही पूजा और आस्था का सबसे बड़ा रूप हो सकता है।

अंततः, ज़ुबीनवाद एक सांस्कृतिक और भावनात्मक आंदोलन है, जिसका अनुयायी वह व्यक्ति है जो सांस्कृतिक गौरव और देखभाल के साथ निस्वार्थ भाव से लोगों के कल्याण के लिए काम करता है, भाईचारे का संदेश फैलाता है, और वंचितों के लिए मज़बूती से आवाज़ उठाता है।

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उनके गीत "जगत पोहोर कोरी" की तरह, हम ज़ुबीनवाद के माध्यम से दुनिया से अंधकार और बुराइयों को दूर कर सकते हैं, जिससे प्रेम का कमल खिले और एक नया इतिहास लिखा जाए। यह ज़रूरी है कि शैक्षणिक मंचों पर ज़ुबीनवाद के मूल मूल्यों को शामिल किया जाए, ताकि हितधारक उनकी विरासत की रक्षा (Protect), संरक्षण (Preserve) और प्रचार (Propagate) करें, और हम मानवता व सह-अस्तित्व पर आधारित एक सामंजस्यपूर्ण समाज देख सकें।